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बढ़ईगीरी से लेकर बम बनाने तक... सीरियल ब्लास्ट में बरी होने वाले अब्दुल करीम 'टुंडा' की कहानी

पहले अब्दुल करीम टुंडा पिलखुवा में ही बढ़ई का कार्य करता था लेकिन बाद में वह गुजरात के अहमदाबाद चला गया और वहां पर बढ़ई का कार्य करने लगा। बाद में उसका नाम वर्ष 1993 में पांच शहरों में सिलसिलेवार हुए बम धमाकों में आया था। अब्दुल करीम पर पहला मुकदमा वर्ष 1956 में कोतवाली पिलखुवा में दर्ज हुआ था।

By jitender sharma Edited By: Shyamji Tiwari Updated: Thu, 29 Feb 2024 05:23 PM (IST)
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सीरियल ब्लास्ट में बरी होने वाले अब्दुल करीम टुंडा की कहानी

जागरण संवाददाता, पिलखुवा। देश भर में हैंडलूम नगरी को दाग लगाने वाले अब्दुल करीम उर्फ टुंडा को टाडा कोर्ट ने बेशक बरी कर दिया हो, लेकिन उस पर लगे आरोपों ने हैंडलूम नगरी का नाम देश भर में बदनाम कर दिया था। अब्दुल करीम कोतवाली पिलखुवा का हिस्ट्रीशीटर भी रह चुका है। वर्ष 1993 को सिलसिलेवार बम धमाकों के आरोपित अब्दुल करीम को राजस्थान के अजमेर की टाडा कोर्ट ने गुरुवार को बरी कर दिया है।

पिलखुवा में हुई थी परवरिश

कोतवाली पिलखुवा में उस पर कुल 13 मुकदमे दर्ज हुए थे और वह कोतवाली पिलखुवा का 9 बी का हिस्ट्रीशीटर रहा है। स्वजनों से मिली जानकारी के अनुसार, अब्दुल करीम उर्फ टुंडा का जन्म तो वैसे दिल्ली में हुआ था, लेकिन उसकी परवरिश पिलखुवा के मोहल्ला अशोकनगर में हुई। स्वजनों के अनुसार, पहले वह पिलखुवा में ही बढ़ई का कार्य करता था, लेकिन बाद में वह गुजरात के अहमदाबाद चला गया और वहां पर बढ़ई का कार्य करने लगा।

1956 में दर्ज हुआ था पहला मुकदमा

बाद में उसका नाम वर्ष 1993 में पांच शहरों में सिलसिलेवार हुए बम धमाकों में आया था। जिसके बाद गुप्तचर एजेंसियों व पुलिस ने उसके मकान पर कई बार छापेमारी भी की। फिलहाल टाड़ा कोर्ट ने उसे सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। अब्दुल करीम पर पहला मुकदमा वर्ष 1956 में कोतवाली पिलखुवा में चेारी का हुआ, जबकि 1994 में उसके खिलाफ विस्फोटक एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था।

कोतवाली पिलखुवा में उसके खिलाफ नौ मुकदमे दर्ज हुए। इसी वर्ष उसके खिलाफ राजस्थान के अजमेर में टांडा के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। टुंडा अशोकनगर स्थित जिस मकान में रहता था, उसके जेल जाने के बाद उसका साढ़ू महमूद आलम परिवार सहित रहने लगा था। अब्दुल करीम पर इसी से ट्रेनिंग लेने और लश्कर ए तैयबा के लिए काम करने के भी आरोप हैं।

2013 में टुंडा की हुई थी गिरफ्तारी

टुंडा को वर्ष 2013 में सीबीआई ने बम धमाकों को लेकर नेपाल बॉर्डर से गिरफ्तार किया। टुंडा पर बम धमाके करने के साथ-साथ युवाओं को आतंकी ट्रेनिंग देने का भी आरोप लगा है।  साल 2000 से 2005 तक कई बार ऐसी खबरें आई जिसमें उसके मारे जाने की बात कही गई। हालांकि, 2005 में अब्दुल रजाक मसूद के पकड़े जाने के बाद ये खुलासा हुआ कि टुंडा जिंदा है। बम बनाने के दौरान हुए ब्लास्ट में उसका बायां हाथ उड़ गया था, एक हाथ खत्म हो जाने के बाद से उसे अब्दुल करीम टुंडा कहा जाने लगा।

सोशल मीडिया से अब्दुल करीम टुंडा के टाडा कोर्ट से बरी होने की जानकारी है, इसके अलावा वह पिलखुवा कोतवाली का हिस्ट्रीशीटर भी है। उस पर कुल 13 मुकदमे दर्ज हैं। अखिलेश कुमार त्रिपाठी, कोतवाली प्रभारी, पिलखुवा

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