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राजधानी दिल्ली के दिल कनाट प्लेस में दो घंटे के लिए भीख मांगना छोड़ देते हैं 20 बच्चे, जानिए इसके पीछे का कारण

पढ़ने-लिखने की उम्र में जब बच्चे भीख मांगना शुरू कर दें और दिन भर रेड लाइट व मंदिरों के बाहर भीख मांगते रहें तो उनका भविष्य अंधकारमय ही होगा। ऐसे बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने के लिए सामाजिक संस्था बेटी फाउंडेशन के वालंटियरों ने मुहिम शुरू की है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Sun, 05 Sep 2021 12:49 PM (IST)
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इस मुहिम के तहत कनाट प्लेस स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर के परिसर में बच्चों को पढ़ाया जाता है।
नई दिल्ली [राहुल चौहान]। पढ़ने-लिखने की उम्र में जब बच्चे भीख मांगना शुरू कर दें और दिन भर रेड लाइट व मंदिरों के बाहर भीख मांगते रहें तो उनका भविष्य अंधकारमय ही होगा। ऐसे बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगाने के लिए सामाजिक संस्था बेटी फाउंडेशन के वालंटियरों ने मुहिम शुरू की है। इसके तहत संस्था के वालंटियरों ने रेड लाइट, मंदिर व अन्य सार्वजनिक स्थलों के बाहर भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया है। इस मुहिम के तहत कनाट प्लेस स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर के परिसर में आसपास की रेड लाइट पर भीख मांगने वाले बच्चे दो घंटे के लिए भीख मांगना छोड़ देते हैं और यहां चलने वाली पाठशाला में पढ़ने आते हैं। शनिवार और रविवार को सुबह 11 से दोपहर एक बजे तक इनकी दो घंटे की कक्षाएं चलती हैं।

इस दौरान 20 से ज्यादा बच्चे पढ़ाई के लिए यहां आते हैं। बच्चों को पढ़ाने वाली वालंटियर सुरेखा ने बताया कि पाठशाला में चार साल से लेकर 15 साल तक के बच्चे पढ़ने आते हैं। छोटे बच्चों को दो घंटे रोकने के लिए उन्हें चाकलेट और टाफी देकर बहलाया जाता है। सुरेखा सहित तीन अन्य वालंटियर फिजा, पूनम और विशाल भी इन बच्चों को पढ़ाते हैं, वहीं अनुज और वालंटियर सोनू भीख मांग रहे अन्य बच्चों को पाठशाला में आने के लिए समझाने का कार्य करते हैं। दो घंटे तक दोनों लोग बच्चों से उनके माता-पिता से मिलवाने के लिए बात करते हैं। डेढ़ माह में यहां पढ़ने वाले कुछ बच्चों ने अपना नाम भी लिखना सीख लिया है। इन्हें संस्था की ओर से स्टेशनरी आदि भी दी जाती है। इनकी संख्या घटती बढ़ती रहती है।

बेटी फाउंडेशन के संस्थापक अनुज भाटी ने बताया कि हनुमान मंदिर परिसर में पाठशाला शुरू करने के पीछे यहां बड़ी संख्या में आसपास की रेड लाइट और मंदिर परिसर में बच्चों का भीख मांगना है। उन्होंने बताया कि फिलहाल, यहां 20-25 बच्चे ही पढ़ने आते हैं, जबकि हनुमान मंदिर के आसपास भीख मांगने वाले बच्चों की संख्या 100 से ज्यादा है। हमारा प्रयास है कि ये सभी बच्चे पाठशाला में पढ़ने आएं। इसके लिए हमारे वालंटियर लगातार प्रयास कर रहे हैं। जो बच्चे यहां पढ़ने नहीं आ रहे हैं उनके माता-पिता से बात कर उनसे दो घंटे के लिए बच्चों का भीख मांगना बंद कराकर पाठशाला में भेजने के लिए कहा जा रहा है। अनुज ने यह भी बताया कि उनकी एक अन्य पाठशाला आइआइटी फ्लाईओवर के नीचे प्रतिदिन दो से चार बजे तक चलती है।

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पहले मुझे अपना नाम भी लिखना नहीं आता था। डेढ़ माह से पाठशाला की अधिकतर कक्षाओं में शामिल रहा हूं। इससे अब हिंदी और अंग्रेजी में अपना नाम लिखना सीख गया हूं। यहां दो घंटे तक पढ़ने में अच्छा लगता है। शनिवार और रविवार को पाठशाला लगने के दिन का इंतजार रहता है।

गौतम

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पहले मैं हनुमान मंदिर के पास ही एक स्कूल में पढ़ती थी। अब कोरोना के कारण डेढ़ साल से स्कूल बंद है। आनलाइन पढ़ाई नहीं कर पाती थी। अब पाठशाला में दीदी और भैया अच्छा पढ़ाते हैं। कापी-पेंसिल भी यहीं मिलती हैं। पहले हम मंदिर में खाना बांटने वाले लोगों से सारे दिन ले-लेकर खाना खाते रहते थे।

काजल

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पहले मैं मंदिर में बंटने वाला खाना खाने आता था। यहां लोग तरह-तरह की खाने की चीजें बांटने आते रहते हैं। इसलिए यहां आने की आदत बन गई। अब यहां पढ़ने को भी मिल रहा है तो अच्छा लगता है। मैं खुद समय से यहां पढ़ने आ जाता हूं। अजय

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