Delhi MCD Politics: नगर निगम में आप-भाजपा की नूराकुश्ती, तमाशबीन कांग्रेस
आम आदमी पार्टी के पार्षद स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सत्तापक्ष भाजपा पर हमलावर हो गए।
नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। सियासत में नूराकुश्ती दिलचस्प हिस्सा है। मतलब, यह नहीं तो नेतागीरी फीकी है। इससे ज्ञानवर्धन के साथ जुबान की जोरदार जुगाली हो जाती है। इसमें नेताओं की श्रेष्ठता और वाकपटुता आंकी जाती है। इसलिए नेता कभी-कभी बिना बात के भी भिड़ जाते हैं। जैसे आओ वार-प्रत्यावार खेलें। बैठे-बैठाए सबका मनोरंजन हो जाता है। मतलब, कुछ निष्कर्ष न निकले तब भी तुम्हारी भी जय और हमारी भी जय तो हो ही जाएगी। उत्तरी निगम की बैठक में यही हुआ।
बैठक शुरू होते ही आम आदमी पार्टी के पार्षद स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सत्तापक्ष भाजपा पर हमलावर हो गए। जोरदार आरोप-प्रत्यारोप। कांग्रेस पार्टी के पार्षद तो जैसे दर्शक दीर्घा में बैठे हों, कभी इधर देखते तो कभी उधर। आखिकार, वे भी आपे से बाहर। बोले, खेल सब समझ रहे। ये हंगामा तुम दोनों की मिलीभगत है। लो, तुम दोनों के खिलाफ नारेबाजी।
हम है तो क्या गम है..
...तो वर्चुअल मीटिंग सज गई। व्यापारी मुखातिब हो गए। जुबान पर मनुहार के साथ मांग भी। उधर, मुख्यमंत्री चिरपरिचित मुस्कान के साथ। बारी-बारी से हालचाल और हालेदिल बयां। खान मार्केट के प्रधान संजीव मेहरा भी तैयार बैठे थे। एक अरसा हो गया है व्यापारियों के मुद्दे उठाते और एनडीएमसी का चक्कर लगाते। सो, संक्षिप्त समय की ताकीद के साथ जब उनका माइक ऑन किया गया तो वे सीधे मुद्दे पर आए। बोले, एनडीएमसी में हमारा सीधे प्रतिनिधित्व नहीं है। इसलिए अक्सर सुनवाई नहीं होती। निगम की तरह हमारे भी पार्षद होते तो जहां चाहे वहां पकड़ लेते। अर्जी लगाई-चुनाव न सही, अलग से कमेटी ही बना दी जाए। उसमें हम लोगों को भी रखा जाए। मुख्यमंत्री मुस्कराए, बोले कि नई दिल्ली का विधायक होने के नाते वे उनके जनप्रतिनिधि हैं। उनके दरवाजे सदा खुले हैं। बात खत्म। चर्चा, चांदनी चौक की तर्ज पर अन्य बाजारों के विकास की होने लगी।
धुएं से ढक रही नाकामी
पुरानी दिल्ली की संकरी गलियां जुदा हैं तो यहां के किस्से और रोजाना की घटनाएं भी थोड़ी अलग किस्म की ही होती हैं। मसलन, धुएं को ही लें। कोरोना का काल चल रहा है। बाकी स्थानों के नेताओं में भी सैनिटाइजेशन की मशीनें हाथ में लेकर फोटो खिंचवाने की होड़ है। वैसे, कोरोना को लेकर चिंता तो यहां के लोगों की भी है पर यहां के नेताओं में फॉगिंग मशीन के पीछे खड़े रहने की होड़ है। इन दिनों जोरदार फॉगिंग-फॉगिंग का खेल चल रहा है। एक हैं दिल्ली गेट के पार्षद आले मोहम्मद इकबाल और दूसरी हैं सीताराम बाजार की पार्षद सीमा ताहिरा। तो सियासत जोरों पर है। रोजाना कोई न कोई गली धुआं-धुआं रहती है। जानकार लोग इस सवाल पर मुस्करा उठते हैं। कहते हैं, अरे मियां, जमीन पर समस्याओं का अंबार है। उसे ढकने के लिए कुछ जुगत लगानी पड़ेगी न। तो धुएं की सियासत जारी है।
अब ये बेफिक्री ठीक नही
यह बेफिक्री डराने वाली है। बिना मॉस्क के लोग सड़क पर हैं। शारीरिक दूरी के नियम भी दरक रहे हैं। लग रहा है जैसे-अनलॉक के साथ कोरोना भी दिल्ली से विदा हो गया है। यह लापरवाही ठीक नहीं है। सरकारें कोरोना से पैदा हुए अभूतपूर्व संकट में एक साथ दो मोर्चे पर लड़ रही हैं। ये लोगों के स्वास्थ्य के साथ रोजी-रोटी और रोजगार की भी चिंता कर रही हैं। इसलिए लॉकडाउन की बंदी के बाद बाजार खोलने के साथ आर्थिक गतिविधियों को प्रारंभ किया गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि कोरोना के प्रति भी हम आश्वस्त हो लें। यह लापरवाही वैसे दिल्ली वालों पर फिर से भारी पड़ने लगी है। संक्रमण के मामले में फिर उछाल देखने को मिल रहा है। अगर अब भी नहीं चेते तो फिर देश की राजधानी दो महीने पहले वाली स्थिति में जा सकती है तब यह बुरी तरह से खौफजदा थी।
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