अभी आसान नहीं है 'आप' की राह, 'लाभ का पद' मामले में विधायकों को मिली है फौरी राहत
पीठ ने कहा कि फैसले पर हस्ताक्षर करने वाले EC के पैनल के सदस्य सुनील अरोड़ा पूरे मामले में न तो शामिल रहे और न ही उनके सामने कोई सुनवाई ही हुई, यह कानून की प्रकृति के खिलाफ है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। लाभ का पद मामले में अयोग्य ठहराए गए आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों को दिल्ली हाई कोर्ट ने फौरी राहत दे दी है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति चंद्रशेखर की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग का फैसला कानून की प्रकृति के खिलाफ है। याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। पीठ ने केंद्र सरकार की अधिसूचना को रद करते हुए चुनाव आयोग को नए सिरे से मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया है।
चुनाव आयोग के फैसले पर राष्ट्रपति की मंजूरी वैध
पीठ ने अपने 79 पेज के आदेश में कहा है कि चुनाव आयोग के फैसले पर राष्ट्रपति की मंजूरी वैध है और 23 जून 2017 को आयोग का सभी पक्षों को सुनवाई का मौका देने का आदेश भी कानून की प्रकृति के अनुरूप है, लेकिन ऐसा किया नहीं गया।
पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए
पीठ ने कहा कि 19 जनवरी 2018 को चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई सिफारिश और 20 जनवरी को केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना कानून की प्रकृति का उल्लंघन है। भले ही 'आप' के 20 विधायक अयोग्य ठहराए गए, लेकिन उन्हें मौखिक सुनवाई और अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए।
कानून की प्रकृति के खिलाफ
पीठ ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग के पैनल में रहे ओपी रावत के एक बार जांच से हटने के बाद दोबारा सुनवाई में शामिल होने की सूचना भी याचिकाकर्ताओं को नहीं दी गई। पीठ ने कहा कि फैसले पर हस्ताक्षर करने वाले चुनाव आयोग के पैनल के सदस्य सुनील अरोड़ा पूरे मामले में न तो शामिल रहे और न ही उनके सामने कोई सुनवाई ही हुई, जोकि पूरी तरह से कानून की प्रकृति के खिलाफ है।
'आप' विधायक अयोग्य हैं या नहीं
पीठ ने चुनाव आयोग को मामले की दोबारा सुनवाई करने का आदेश देते हुए कहा कि वह सभी मामले को गंभीरता से सुने और देखे कि सरकार के लिए लाभ का पद का क्या मतलब है। पीठ ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह पूर्व में दिए गए फैसले से प्रभावित हुए बगैर पूरे मामले का दोबारा से परीक्षण कर तय करे कि लाभ का पद मामले में 'आप' विधायक अयोग्य हैं या नहीं।
यह था मामला19 जनवरी को चुनाव आयोग ने 'आप' के 20 विधायकों की विधानसभा की सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजी थी। आयोग की सिफारिश के बाद 19 जनवरी को ही विधायक राजेश गुप्ता, नितिन त्यागी, मदन लाल, सोमदत्त, शरद कुमार और परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने हाई कोर्ट पहुंचकर अंतरिम राहत देने की गुहार लगाई थी।
28 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था
हाई कोर्ट ने तुरंत राहत देने से इन्कार करते हुए मामले में सुनवाई के लिए 22 जनवरी की तारीख तय की थी, लेकिन 21 जनवरी को ही राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की सिफारिश को मंजूरी दे दी और केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी। अधिसूचना जारी होने के बाद 22 जनवरी को 'आप' विधायकों ने हाई कोर्ट से अपना आवेदन वापस ले लिया था और 23 जनवरी को नए सिरे से याचिका दायर की थी। याचिका पर दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद हाई कोर्ट ने 28 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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-हाई कोर्ट ने कहा, चुनाव आयोग के फैसले पर राष्ट्रपति की मंजूरी वैध है।
-आयोग का सभी पक्षों को सुनवाई का मौका देने का आदेश भी कानून की प्रकृति के अनुरूप है, लेकिन ऐसा किया नहीं गया।