राजधानी दिल्ली में एक्शन प्लान धरातल की बजाय कागजों तक सीमित रहते हैं। यह हम नहीं बल्कि विशेषज्ञ कह रहे हैं। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने दिल्ली की आम आमदी पार्टी की सरकार पर गंभीर सवाल उठाए हैं। गर्मियों भीषण गर्मी का प्लान हो या सर्दियों में प्रदूषण का। इसके क्रियान्वयन में काफी देरी होती है। जो विशेष तौर चिंताजनक है।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। राजधानी में एक्शन प्लान तो तमाम बनाए जाते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर कागजी ही साबित हुए हैं। समर एक्शन प्लान के बावजूद गर्मियां भी प्रदूषित ही रहती हैं तो सर्दियों में भी कमोबेश हर साल ही दिल्ली गैस चेंबर बनती रही है। यही हाल मानसून में जलभराव को लेकर देखने को मिलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोई भी प्लान बनाने से पूर्व उसकी व्यवहारिकता व उपादेयता के लिए जो शोध किया जाना चाहिए, वह होता ही नहीं है।
समर एक्शन प्लान के क्रियान्वयन में देरी चिंताजनक
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) ने दिल्ली सरकार के समर एक्शन प्लान पर सवाल उठाए हैं। सीआरईए के मुताबिक इस वर्ष इसके क्रियान्वयन में काफी देरी हुई, जो विशेष रूप से चिंताजनक है। कारण, वर्ष 2022 में यह प्लान 11 अप्रैल को जारी किया गया था जबकि वर्ष 2023 में एक मई से इस पर क्रियान्वयन शुरू हुआ था।सीआरईए के मुताबिक सरकारी अधिकारियों ने देरी के लिए हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव और आदर्श आचार संहिता लागू होने को जिम्मेदार ठहराया है। इसके चलते गर्मियों के सीजन यानी मार्च, अप्रैल, मई और जून के भी पूर्वार्द्ध में प्रदूषण के बढ़े स्तर से निपटने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।
नतीजा, अबकी बार दिल्ली वासियों को गर्मियों में भी खराब हवा में सांस लेने को बाध्य होना पड़ा। मई तो 2017 के बाद सात साल का सर्वाधिक प्रदूषित माह बन गया है। सीआरईए ने मौजूदा वर्ष के लिए दिल्ली के समर एक्शन प्लान की तुलना पिछले वर्ष के प्लान से भी की है। तुलना के मुताबिक ज्यादातर बिंदु पिछले साल वाले ही हैं। वहीं 2024 के प्लान में रियल टाइम सोर्स अपार्शन्मेंट को हटा देने पर भी सवाल उठाए हैं।
2024 की ग्रीष्मकालीन कार्ययोजना आधी अधूरी है। यह वायु प्रदूषण के तात्कालिक कारणों का शमन करने के लिए, भविष्य के लिए नहीं है। केवल धूल विरोधी अभियान सीधे वायु गुणवत्ता में सुधार को लक्षित करता है। बहुत से कार्य बिंदु जैसे ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, हरित आवरण बढ़ाना और खुले में जलने से रोकना, पहले से ही राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के अभिन्न अंग हैं और मौसमी क्रियान्वयन के लिए नई रणनीतियां नहीं, बल्कि चल रही प्रथाएं होनी चाहिए। पौधारोपण और नगर वनों के विकास जैसी पहल, पर्यावरण की दृष्टि से प्रभावी होते हुए भी तत्काल वायु गुणवत्ता में सुधार नहीं लाती हैं। इसके चलते दीर्घकालिक पर्यावरणीय लक्ष्यों पर फोकस करना चाहिए। -मनोज कुमार, विश्लेषक, सीआरईए
हीट एक्शन प्लान भी साबित हो रहा ‘कागजी’
कहने को मई में ही दिल्ली को पहला हीट एक्शन प्लान (heat action plan) भी मिल गया था। लेकिन दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) द्वारा तैयार यह प्लान अभी भी एक कागजी दस्तावेज ही है। मई-जून में भयंकर लू में भी दिल्ली वासियों को राहत देने के लिए कहीं कोई कदम नहीं उठाए गए। यहां तक कि एलजी ने इस प्लान के आधार पर श्रमिकों को दोपहर 12 से तीन बजे तक ब्रेक देने का आदेश का भी ज्यादातर जगहों पर पालन नहीं ही हुआ।
द इंटरनेशनल फोरम फॉर एन्वायरमेंट, सस्टेनेबिलेटी एंड टेक्नालोजी (आई-फॉरेस्ट) के सीईओ चंद्रभूषण कहते हैं कि हीट एक्शन प्लान बनाने से पहले न इसके प्रभाव का आकलन किया गया, न कोई अलर्ट सिस्टम विकसित हुआ, हाट स्पाट में मुंगेशपुर का नाम तक शामिल नहीं और प्लान के लिए फंड का भी प्रविधान नहीं है।
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