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One Year of Nirbhaya Justice: निर्भया के दोषियों के वकील AP Singh ने फांसी को लेकर दिया बड़ा बयान

One Year of Nirbhaya Justice निर्भया के दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा कि एक निर्भया की मौत का बदला 5 लोगों को मार कर लिया गया? वहीं क्या इन चारों को फांसी चढ़ाने के बाद भी देश में दुष्कर्म के मामलों में कोई कमी आई।

By Jp YadavEdited By: Updated: Sun, 21 Mar 2021 06:48 AM (IST)
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मशहूर वकील एपी सिंह ने कहा कि दुष्कर्म के मामलों को रोकने के लिए फांसी कोई एकमात्र समाधान नहीं है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क।  One Year Of Nirbhaya Justice: निर्भया के चारों दोषियों पवन कुमार गुप्ता, मुकेश कुमार सिंह, अक्षय सिंह ठाकुर और विनय कुमार शर्मा की फांसी को एक साल पूरा हो गया है। 20 मार्च, 2020 को सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर तिहाड़ जेल संख्या 3 में चारों को फांसी पर लटका दिया गया था। निर्भया के दोषियों को फांसी दिए हुए एक साल पूरा होने पर जाने-माने वकील एपी सिंह ने शनिवार को कई सवाल उठाए हैं। एपी सिंह ने देश में फांसी की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि 4 युवकों को केवल इसलिए फांसी दे दी गई क्योंकि समाज को एक संदेश देना था। अरे इस संदेश से क्या हुआ? क्या दुष्कर्म के मामले रुके? क्या हत्या के अपराध रुके? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के रिकॉर्ड इस बात की तस्दीक भी करते हैं कि निर्भया के दोषियों की फांसी के बाद कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया।

'5 लोगों को मार दिया'

निर्भया के दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा कि एक निर्भया की मौत का बदला 5 लोगों को मार कर लिया गया? वहीं, क्या इन चारों को फांसी चढ़ाने के बाद भी देश में दुष्कर्म के मामलों में कोई कमी आई। यहां यह जानना जरूरी है कि चार दोषियों (पवन, विनय, अक्षय और मुकेश) को 20 मार्च, 2020 को सुबह फांसी दी गई थी, जबकि छठा नाबालिग था, इसलिए वह फिलहाल सजा काटकर कहीं काम कर रही है। उधर, छठे आरोपित राम सिंह ने मार्च, 2013 में तिहाड़ जेल में संदिग्ध हालात में फांसी लगाकर जान दे दी थी।

जेल को न बनाएं फांसी घर

सुप्रीम कोर्ट के वकील एपी सिंह ने कहा कि दुष्कर्म के मामलों को रोकने के लिए फांसी कोई एकमात्र समाधान नहीं है। दरअसल, फांसी किसी भी अपराध को रोकने का विकल्प नहीं है। निर्भया के दोषियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन सभी युवकों का यह पहला अपराध था और सभी बेहद गरीब परिवार से थे। इनका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं था। युवाओं में सुधार की गुंजाइश थी। जेल में भी इन सभी का व्यवहार बताता है कि ये कोई दुर्दांत अपराधी नहीं थे। इन चारों को देने से बच्चे अनाथ हुए और कई बीवियां विधवा हो गईं। मां से बेटे छिना, पिता से बेटा तो किसी ने पिता को खो दिया। साल 20 मार्च को जब चारों युवकों को फांसी पर लटकाया गया देश में उस दिन भी दुष्कर्म की घटनाएं हुई। इसका मतलब यहह है कि फांसी से दुष्कर्म के मामलों को नहीं रोका जा सकता।

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कई देशों में नहीं होती है फांसी

एपी सिंह की मानें तो दुनिया में 100 से अधिक ऐसे देश हैं जिन्होंने फांसी की सजा को अपने आप खत्म कर दिया है। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भी हैं, जहां पर फांसी नहीं होती है। एक दो केस हो सकते हैं। फांसी की सजा दोषी से उसके सुधरने का मौका भी छीन लेती है। दोषी ने प्रायश्चित कहां किया, सजा तो उसके परिवार को मिली। यही वजह है कि देश का सिस्टम यह मानता है कि 99 दोषी भले ही छूट जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए।

जेल को बनाएं सुधार गृह, फांसीघर नहीं

एपी सिंह की मानें तो जेलों में लोगों इसलिए डाला जाता है, क्योंकि वह कोई अपराध करता है। जेल उसके लिए प्रायश्चित घर होता है, जहां पर वह बुरे काम को याद कर पछतावा करता है। वहां पर वह सुधरने की दिशा में बढ़ता है। मेरा मानना है कि जेलों को सुधार गृह बनाया जाएगा, फांसी घर नहीं।

यह है दरिंदगी का पूरा मामला

16 दिसंबर, 2012 की रात दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज इलाके में चलती बस में 23 साल की पैरा-मेडिकल छात्रा के साथ पवन, अक्षय, मुकेश, विनय, राम सिंह और एक नाबालिग ने सामूहिक दुष्कर्म की वारदात को अंजाम दिया था। इस दौरान उसके साथ दरिंदगी भी की गई। इसके चलते निर्भया को इलाज के लिए देश से बाहर सिंगापुर भी ले जाया गया था। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद पूरा देश सड़कों पर उतर आया था, खासकर देश की राजधानी दिल्ली में जमकर वाल हुआ। इन छह दोषियों में से एक नाबालिग को  तीन साल की सजा के बाद बाल सुधार गृह से 2015 में रिहा कर दिया गया तथा एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी। बाकी बचे चारों दोषियों पवन, विनय, मुकेश और अक्षय को 20 मार्च, 2020 को फांसी दे दी गई।

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