आखिर दिल्ली को कैसे हरियाली के पीछे की इस ‘काली छाया’ से मुक्ति दिलाई जाए
कीकर के फूल से निकला परागकण दमा रोगियों के लिए बेहद नुकसानदायक है। इसके फूलों के परागकणों के संपर्क में आने से ऐसे लोगों में एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसलिए रिहायशी इलाकों में कीकर का होना स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 04 Aug 2021 12:54 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। कीकर। वही कीकर जिसे बबूल भी कहते हैं। और बबूल का नाम आते ही एक ही कहावत जेहन में आती है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय...सही बात है हरियाली की चादर बिछाने को पौधारोपण के नाम पर कीकर ऐसा उगा दिया गया कि अब जी का जंजाल बन गया है। हवा-पानी, माटी-मानुष सभी इससे त्रस्त हैं। इस कीकर को बोने वाले और इसे हटाकर प्रकृति व पर्यावरण के अनुकूल पौधे रोपित नहीं करने वालों की इच्छाशक्ति भी उस बबूल जैसी ही घातक है जो दावे तो करती है लेकिन कागजों से आगे नहीं निकल पाती। घुन की तरह बजट को खाती है, पर हरियाली के नाम पर कीकर ही लगाती है।
हालांकि बीते कुछ सालों में दिल्ली सरकार और केंद्रीय सरकारी एजेंसियों ने प्रयास किए हैं। कीकर को हटाकर बायोडायर्विसटी पार्कों में देशज और उपयोगी पौधे लगाए हैं। फिर भी अपेक्षित सफलता मिलती नहीं दिख रही है। चिंताजनक यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के समय से दिल्ली को विलायती कीकर से मुक्ति दिलाने की बात होती रही है, लेकिन कई वर्षों बाद भी आज तक इसमें सफलता नहीं मिल सकी है। सवाल यही है कि आखिर विलायती कीकर को दिल्ली से खत्म करने के लिए अब तक कोई ठोस योजना क्यों नहीं बन सकी? वन्य कानून के तहत कीकर को संरक्षण क्यों मिला हुआ है?
केमिकल्स पहुंचाता है नुकसान: कीकर मैक्सिको मूल का पेड़ है। इससे एलीलो केमिकल्स निकलता है, जिससे देशज पेड़-पौधों के लिए नुकसानदायक होता है। यही कारण है कि जहां भी कीकर के पेड़ों की संख्या ज्यादा हो जाती है वहां देशज पेड़-पौधे नहीं उग पाते हैं।मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक: कीकर के फूल से निकला परागकण दमा रोगियों के लिए बेहद नुकसानदायक है। इसके फूलों के परागकणों के संपर्क में आने से ऐसे लोगों में एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इसलिए रिहायशी इलाकों में कीकर का होना स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक है।
भारत में कब से है: यह मूलरूप से दक्षिण और मध्य अमेरिका तथा कैरेबियाई देशों में पाया जाता था, 1870 में इसे भारत लाया गया था।इन पेड़ पौधों को खा गया कीकर 500 प्रजातियों को खत्म कर चुका है। खेजड़ी, अंतमूल,केम, जंगली कदम, कुल्लू, आंवला, हींस, करील और लसौड़ा सहित सैकड़ों देसी पौधे अब दिखाई नहीं देते।
रिहायशी इलाकों में ज्यादा है कीकरओखला, तुगलकाबाद, तेहखंड, कालकाजी, रंगपुरी, वसंत कुंज, किशनगढ़, रजोकरी, वसंत विहार, गुरु रविदास मार्ग में सड़कों के किनारे कीकर की झाड़ियों के कारण फुटपाथ पर चलना भी लोगों के लिए हो गया है दूभर।डीयू की योजनाडीयू के सेंटर फार एनवायरमेंटल मैनेजमेंट आफ डीग्रेडेड ईको सिस्टम प्रोजेक्ट द्वारा बायो डायवर्सिटी पार्कों से कीकर हटाने की है योजना।
ये पहल हुई
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।- 90% तक खत्म हो गया तिलपथ वैली बायो डायर्विसटी पार्क में कीकर। यहां 2015 से अब तक करीब डेढ़ लाख देशज पौधे लगाए जा चुके हैं
- 10 एकड़ में फैले नीला हौज बायो डायर्विसटी पार्क से कीकर पूरी तरह से खत्म हो गया है। यहां 35 देशज प्रजातियों के 10 हजार से अधिक पेड़- पाधे लगाए गए हैं