दिल्ली की 3 लोकसभा सीटों पर राहुल गांधी को लग सकता है झटका, जानें- क्यों और कैसे
राजनीतिक जानकारों की मानें तो दिल्ली के तीन लोकसभा क्षेत्रों की 24 विधानसभा सीटों पर कम या ज्यादा जाट मतदाता हैं। इन सभी पर सज्जन कुमार हमेशा प्रभाव रहा है।
By Edited By: Updated: Thu, 27 Dec 2018 10:09 AM (IST)
नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। दिल्ली के कद्दावर नेता और कांग्रेस पार्टी के पूर्व लोकसभा सांसद सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा से दिल्ली में कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। मिशन 2019 लोकसभा चुनाव में जुटे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की भी इससे मुश्किलें बढ़ गई हैं।
दरअसल लोकसभा की 7 में से 3 सीटों पर सज्जन कुमार का अच्छा खासा प्रभाव रहा है। पार्टी के पास इनका कोई उत्तराधिकारी भी हाल फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। वहीं, सिखों की नाराजगी के कारण पार्टी इनके परिवार को भी किसी स्तर पर साथ में नहीं ले सकती।वर्ष 2007 में हुए परिसीमन से पहले सज्जन बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते थे। 1980, 1991 और 2004 में वह इसी सीट से चुनाव जीते, जबकि 1996 में वह इसी सीट से चुनाव हारे। 2007 में परिसीमन के दौरान बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र को खत्म कर दक्षिणी दिल्ली कर दिया गया। इसके तहत आने वाले 10 विधानसभा क्षेत्र दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में बांट दिए गए।
चूंकि बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र की ज्यादातर विधानसभा सीटें दक्षिणी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के खाते में चली गई तो सज्जन कुमार का क्षेत्र भी वही हो गया। 2009 में उनका टिकट कटने पर उनके भाई रमेश कुमार इसी क्षेत्र से सांसद बने और 2014 में यहीं से हारे। 2019 में इसी क्षेत्र से वह अपने बेटे जगप्रवेश कुमार को चुनाव लड़ाने की तैयारी में थे।राजनीतिक जानकारों की मानें तो इन तीनों लोकसभा क्षेत्रों की 24 विधानसभा सीटों पर कम या ज्यादा जाट मतदाता हैं। इन सभी पर सज्जन का प्रभाव रहा है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि सत्ता से बाहर रहते हुए भी इन सभी जगह उनकी पकड़ खासी मजबूत बनी रही है। लेकिन, सिख विरोधी दंगों में सज्जन को उम्रकैद की सजा हो जाने के बाद उनका अध्याय खत्म माना जा रहा है। समस्या उनके विकल्प को लेकर भी खड़ी हो गई है। जाट और गुर्जर समुदाय से दावेदारी अनेक नेता ठोक रहे हैं, सभी के अपने समीकरण भी हैं। लेकिन, इनमें से सज्जन के कद का कोई नहीं है।
वह विधानसभा सीटें, जहां रहा सज्जन का प्रभावबवाना, मुंडका, नांगलोई, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, विकासपुरी, नजफगढ़, मटियाला, उत्तम नगर, पालम, बिजवासन, द्वारका, देवली, अंबेडकर नगर, महरौली, छतरपुर, शकूरबस्ती, त्रिनगर, रोहिणी, रिठाला, तुगलकाबाद, बदरपुर, संगम विहार और कालकाजी।
संभावित प्रत्याशी और क्योंजाट नेता के तौर पर पूर्व मंत्री एवं विधानसभा अध्यक्ष डॉ. योगानंद शास्त्री पर पार्टी दांव लगा सकती है।
पूर्व विधायक बलराम तंवर गुर्जर समुदाय से हैं और दक्षिणी दिल्ली क्षेत्र में अब जाटों से ज्यादा गुर्जर मतदाता ही बताए जा रहे हैं। लेकिन एक बार पार्टी छोड़ भी चुके हैं।ओमप्रकाश बिधूड़ी गुर्जर नेता हैं। 25 साल से प्रदेश कांग्रेस में महासचिव एवं एआइसीसी में सदस्य हैं। वह शुरू से ही पार्टी से जुडे़ रहे हैं।
पूर्व विधायक रामसिंह नेताजी भी गुर्जर नेता हैं और सज्जन गुट के ही हैं। लेकिन, बसपा में भी रह चुके हैं व एक बार निर्दलीय भी चुनाव लड़ चुके हैं।चतर सिंह भी गुर्जर नेता हैं। प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन और प्रभारी पीसी चाको के करीब हैं। लेकिन वे भी एक बार पार्टी छोड़कर तिवारी कांग्रेस में चले गए थे। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का भी करीबी माना जाता है और वे त्रिनगर विधानसभा सीट से एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं।
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