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Farmer Protest: कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा की अपील, एमएसपी को कानूनी मान्यता दे दुनिया को राह दिखाए भारत

वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि एमएसपी की अनिवार्यता को लेकर यह दावा करना कि इससे सरकार पर 12 से 17 लाख करोड़ रुपये का बोझ आएगा तथ्यात्मक रूप से गलत है। यह मुश्किल से तीन लाख करोड़ रुपये के आसपास बैठेगा।

By Jp YadavEdited By: Updated: Fri, 16 Apr 2021 11:38 AM (IST)
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वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा की फाइल फोटो।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी मान्यता देकर विश्व को राह दिखानी चाहिए, क्योंकि अमेरिका, जर्मनी व फ्रांस समेत अन्य आधुनिक देशों के साथ पूरे विश्व के किसानों की हालत वर्तमान में अच्छी नहीं है। उन्हें अपनी फसलों का वाजिब मूल्य नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि एमएसपी की अनिवार्यता को लेकर यह दावा करना कि इससे सरकार पर 12 से 17 लाख करोड़ रुपये का बोझ आएगा, तथ्यात्मक रूप से गलत है। यह मुश्किल से तीन लाख करोड़ रुपये के आसपास बैठेगा। उसमें भी यह सोचने वाले बात है कि जब केंद्र सरकार वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर कर्मचारियों का वेतन बढ़ाती है और उससे उसपर दो से ढाई लाख करोड़ रुपये का बोझ आता है, तब इस तरह के तर्क अप्रासंगिक है। वह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) परिसर में भारतीय किसान संघ द्वारा आयोजित 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' विषय आधारित गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

इस गोष्ठी में कई वक्ता वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए। तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के बीच भारतीय किसान संघ का एमएसपी पर गोष्ठी महत्वपूर्ण है। यह दो सत्र में आयोजित हुआ। गोष्ठी को संबोधित करते हुए देवेंद्र शर्मा ने कहा कि इसी तरह मंडियों की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है। किसानों को मंडी के पास जाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। मंडियों को किसानों के नजदीक लाने की जरूरत है। पूरे देश में महज सात हजार मंडिया हैं, जबकि जरूरत 42 हजार मंडियों की है। इसी तरह सहकारी खेती व्यवस्था को भी आगे लाया जाना चाहिए।

वहीं, स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्वनी महाजन ने कहा कि नौकरशाह और सरकार को सलाह देने वाली कंपनियों की नीयत में खोट है। एमएसपी अनिवार्यता का मतलब सरकारी खरीद से नहीं है। यह गुमराह करने वाली बात है। जरूरी नहीं कि सरकार ही खरीदे। किसान का उत्पाद जहां भी बिके, उन्हें एमएसपी मिले।

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उन्होंने कपास का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार ने उसका समर्थन मूल्य पांच हजार 850 रुपये तय किया है, लेकिन कपास सरकार नहीं खरीदती। उन्होंने कहा कि सरकार को विशेषज्ञों के साथ बैठना चाहिए। उन्हें यह समझना होगा कि सरकार पर बोझ डाले बिना भी एमएसपी दी जा सकती है।इस दौरान किसान नेता बीएम ¨सह ने कहा कि पंजाब व हरियाणा में किसानों की आय इसलिए अधिक है, क्योंकि वहां अधिकांश खरीद एमएसपी पर होती है, जबकि पंजाब में बिकने के लिए बिहार से अनाज आता है, क्योंकि बिहार में एमएसपी व्यवस्था 14 साल पहले ही खत्म कर दी गई। इससे वहां का किसान बदहाल है।

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भारतीय किसान संघ के महामंत्री बद्री नारायण चौधरी ने कहा कि वर्तमान सरकार ने कई बड़े कदम उठाए हैं। उसे एमएसपी को कानूनी जामा पहनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। क्योंकि वर्तमान पद्धति सरकार की दया पर चल रही है। यह कभी भी बंद हो सकती है। उन्होंने कहा कि किसान आत्महत्या कर रहे हैं। अपनी फसल को लागत से कम पर बेचने को मजबूर है। ऐसे में सरकार को किसान हित को भी देखना चाहिए। गोष्ठी को पंजाब किसान आयोग के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ व कृषि उत्पाद मूल्य निर्धारण आयोग के अध्यक्ष विजय पाल शर्मा समेत अन्य शामिल थे।

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