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यदि सरकार MSP को कानूनी दर्जा दे देगी तो ऐसी दशा में किसान फसल की गुणवत्ता सुधारने पर नहीं देंगे ध्यान

Agriculture Reform Bill 2020 भविष्य में इन कानूनों का नकारात्मक प्रभाव पड़े। ऐसी स्थिति में तब संशोधन किया जा सकता है परंतु यह गलत है कि इन्हें बिना किसी तर्क के केवल संभावनाओं के आधार पर खारिज किया जाए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 11 Dec 2020 10:33 AM (IST)
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किसानों को कुछ संशोधनों के साथ इन कानूनों को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।
कीर्तिदेव। Agriculture Reform Bill 2020 कारपेंटर किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी मान्यता देने की मांग कर रहे हैं। वास्तव में यह मांग अव्यावहारिक एवं समस्या बढ़ाने वाली है। यदि सरकार किसी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर इसे कानून बना दे तो ऐसी दशा में किसान फसल की गुणवत्ता सुधारने पर अधिक ध्यान नहीं देंगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि गुणवत्ता कितनी भी खराब होगी, तब भी उन्हें न्यूनतम कीमत तो मिलेगी ही। यदि सरकार कानून बना देगी तो मांग एवं पूíत का नियम भी काम करना बंद कर देगा। ऐसी दशा में क्रेता एवं विक्रेता दोनों की हालत खराब हो जाएगी, क्योंकि किसान ऐसी फसलों की खेती करेंगे जिन्हें उगाने में कम मेहनत, निम्न लागत लगे।

ऐसा होने पर बाजार में ऐसी फसलों की मात्र अत्यधिक बढ़ जाएगी, परंतु इन्हें खरीदेगा कौन? वह भी अधिक मूल्य देकर, जबकि और अधिक मात्र की बाजार में जरूरत ही नहीं होगी। यदि फसल उगाने में विविधता खत्म होती है तो इसका पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। पंजाब एवं हरियाणा में अधिक सिंचाई वाली फसलें लगातार उगाने से वहां मृदा की उर्वरता का ह्रास हो रहा है एवं जल जैसे अमूल्य प्राकृतिक संसाधन का भी अति दोहन हो रहा है। समय के साथ किसी भी वस्तु की उपयोगिता बदलती रहती है, वैसे ही फसलों का मूल्य भी बदलेगा। ऐसे में उसे स्थिर नहीं रखा जा सकता है। यह गलत होगा।

देखा जाए तो देश में कृषि पर आबादी का पहले ही काफी अधिक दबाव है। लगभग आधी आबादी कृषि कार्यो में लगी है, जबकि कृषि का देश की जीडीपी में योगदान मात्र 15 प्रतिशत के आसपास ही है। भारतीय कृषि की समस्या यहां छोटी जोतों का होना भी है, क्योंकि ऐसे में इसमें तकनीकी का उपयोग बहुत सीमित होता है। जबकि प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने के लिए आज कृषि में तकनीकी की बहुत ही आवश्यकता है।

यदि सरकार एमएसपी को कानूनी दर्जा देती है तो दीर्घकाल में यह घातक ही होगा, चाहे इसके तत्काल प्रभाव कुछ भी हों। किसानों को यह समझना होगा कि यदि कृषि अर्थव्यवस्था मजबूत होगी तो फिर भविष्य में उन्हें ऐसी किसी न्यूनतम मूल्य की गारंटी की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। लिहाजा किसानों को कुछ संशोधनों के साथ इन कानूनों को स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। कोई भी नया बदलाव होता है तो हमेशा दो चीजें होने की संभावना होती है। या तो बदलाव सफल होगा या फिर असफल, परंतु यदि असफलता के भय से बदलाव ही न किया जाए तो फिर हम कभी प्रगति नहीं कर सकते हैं। 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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