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AIIMS Delhi: सफेद दाग के मरीजों को घर में फोटोथेरेपी दे रहा एम्स, अब तक 75 लोगों को मिली यह सुविधा

दिल्ली एम्स सफेद दाग के मरीजों को घर में फोटोथेरेपी दे रहा है। इससे 70-80 प्रतिशत मरीजों में रंग लाया जा सकता है। विटिलिगो की बीमारी पर एक व्याख्यान के दौरान एम्स के डॉक्टरों ने इसकी जानकारी दी है। डॉक्टरों ने कहा कि यह संक्रामक व जेनेटिक बीमारी नहीं है। मरीजों से समाज में भेदभाव होता है। एयरलाइंस कंपनियां और होटल ऐसे लोगों को नौकरी नहीं देते हैं।

By Ranbijay Kumar Singh Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Wed, 14 Aug 2024 08:33 AM (IST)
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70-80 प्रतिशत मरीजों में रंग लाया जा सकता है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। सफेद दाग की बीमारी विटिलिगो के मरीजों को एम्स घर में फोटोथेरेपी की सुविधा उपलब्ध करा रहा है। अब तक 75 मरीजों को यह सुविधा उपलब्ध कराई जा चुकी है। मंगलवार को इस बीमारी को लेकर एम्स में आयोजित एक व्याख्यान में डॉक्टरों ने यह जानकारी दी।

एम्स डीन (एकेडमिक) व त्वचा रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. कौशल वर्मा ने बताया कि इस बीमारी के प्रति लोगों में बहुत गलतफहमी है। इसे कलंक के रूप में देखा जाता है, जो गलत है। समाज में मरीजों के साथ भेदभाव भी होता है। चेहरे व हाथ पर सफेद दाग हो तो एयरलाइंस कंपनियां, होटल व कुछ विभाग नौकरी भी नहीं देते।

संक्रामक और जेनेटिक बीमारी नहीं सफेद दाग

यह संक्रामक व जेनेटिक बीमारी नहीं है। खानपान से भी इसका संबंध नहीं है। यह एक ऑटोइम्यून की बीमारी है। 0.5 से दो प्रतिशत लोग इससे पीड़ित होते हैं। एम्स के डॉक्टर बताते हैं कि अध्ययन में पाया गया है कि बिना इलाज कराए भी 20 प्रतिशत मरीज स्वत: काफी हद तक ठीक हो जाते हैं।

लंबा चलता है इसका इलाज

प्रोफेसर डॉ. सुजय खंडपुर ने बताया कि इससे स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता। देखने में खराब लगता है। इस वजह से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इसका इलाज लंबा चलता है। दाग शरीर के थोड़े हिस्से में हो, तो आइंटमेंट से इलाज किया जाता है।

दाग त्वचा पर अधिक फैला है, तो खाने की दवाएं दी जाती हैं। एक खास तरह की दवा लगाकर धूप सेंकने का भी अच्छा असर देखा गया है, लेकिन खुली जगह धूप सेंकने में मरीज की निजता का मुद्दा रहता है। इसलिए अस्पतालों में मशीन के जरिये फोटोथेरेपी दी जाती है। ये मशीनें महंगी होती हैं।

सप्ताह में दो से तीन बार फोटोथेरेपी करनी होती है। मरीज को अस्पताल आने में भी खर्च होता है। इसके मद्देनजर नैरो बैंड यूवीबी हैंड हेल्ड मशीन से घर में ही फोटोथेरेपी की जाती है। इसकी कीमत आठ हजार से 15 हजार रुपये तक है।

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डॉक्टरों की सलाह के बगैर न करें मशीन का इस्तेमाल

एम्स इन मशीनों को खरीद कर मरीजों को देता है और इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। घर में करीब छह माह तक इससे इलाज से त्वचा की रंग वापस आ जाता है। इलाज के बाद मरीज एम्स को मशीन वापस कर देते हैं। तब मरीज का पैसा भी लौटा दिया जाता है, लेकिन डॉक्टरों की सलाह के बगैर इस मशीन के इस्तेमाल से त्वचा बर्न भी हो सकती है।

अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. कनिका साहनी ने बताया कि जब दवा से बीमारी का फैलाव रुक जाता है, तब सर्जरी या मेलानोसाइट ट्रांसफर के माध्यम से इलाज से त्वचा का रंग ठीक हो जाता है। यदि चेहरे पर सफेद दाग हो, तो कैमोफ्लाज मेकअप से वह नहीं दिखता। इससे मरीजों में आत्मविश्वास बढ़ता है।

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