Delhi AIIMS: अल्फा थेरेपी से न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर के मरीजों के इलाज में जगी नई उम्मीद, 91 मरीजों पर किया शोध
Delhi AIIMS एम्स के न्यूक्लियर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डा. सीएस बल ने कहा कि एडवांस स्टेज के न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित मरीज मुश्किल से चार से छह माह बच पाते हैं। इसके मद्देनजर पहली बार एम्स में न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर के 91 मरीजों पर अल्फा थेरेपी का ट्रायल हुआ।
By Ranbijay Kumar SinghEdited By: Pradeep Kumar ChauhanUpdated: Tue, 29 Nov 2022 08:06 PM (IST)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए अल्फा थेरेपी उम्मीद की नई किरण साबित हो सकती है।एम्स में हुए शोध में यह बात सामने आई है कि अल्फा थेरेपी के इस्तेमाल से एडवांस स्टेज के न्यूरोएंडो क्राइन कैंसर से पीड़ित मरीजों का जीवन 26 माह तक बढ़ाया जा सकता है। एम्स का यह शोध अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (जर्नल आफ न्यूक्लियर मेडिसिन) में प्रकाशित हो चुका है। इस शोध के परिणाम से उत्साहित एम्स के डाक्टर कहते हैं शुरुआती स्टेज के न्यूरोएंडाक्राइन कैंसर से पीड़त मरीजों के इलाज में अल्फा थेरेपी का परिणाम और बेहतर भी हो सकता हैं। अल्फा थेरेपी में इस्तेमाल होने वाली रेडियोएक्टिव दवा मरीज के शरीर में मौजूद न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर को टारगेट करके उसे खत्म कर देती है।
बहुत तेजी से फैलते हैं न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर के ट्यूमर
न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर के ट्यूमर बहुत तेजी से फैलते हैं। इस वजह से यह बहुत घातक बीमारी होती है। अभी तक इसके इलाज के लिए ऐसी कोई कारगर दवा नहीं है, जिससे यह ठीक हो सके। फिल्म अभिनेता इरफान खान का निधन भी इस कैंसर के कारण हुआ था। एम्स के न्यूक्लियर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डा. सीएस बल ने कहा कि एडवांस स्टेज के न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित मरीज मुश्किल से चार से छह माह बच पाते हैं। इसके मद्देनजर पहली बार एम्स में न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर के 91 मरीजों पर अल्फा थेरेपी का ट्रायल हुआ। जिसमें 54 पुरुष और 37 महिला मरीज शामिल की गईं।
एम्स को करीब डेढ़ करोड़ रुपये का ग्रांट दिया
उन मरीजों की उम्र 25 से 75 वर्ष के बीच थी। इस क्लीनिकल शोध के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने एम्स को करीब डेढ़ करोड़ रुपये का ग्रांट दिया है। ट्रायल में शामिल मरीजों के इलाज में सभी विकल्प बेअसर हो चुके थे। इसलिए उन्हें अल्फा थेरेपी दी गई। इस थेरेपी में 225 एसी एक्टिनियम दवा डोटाडेड के साथ इंजेक्शन के माध्यम से नसों दी गई। डोटाडोड दवा को ट्यूमर तक पहुंचाने में व्हीकल के रूप मेंं इस्तेमाल होता है। वह पहचान लेता है कि शरीर में ट्यूमर किस जगह मौजूद है।एम्स के शोध को बाद अमेरिका में शोध शुरू
इसलिए दवा ट्यूमर के पास आसानी से पहुंच जाती है, जिसमें मौजूद 225 एसी एक्टिनियम से अल्फा किरणें निकलकर कैंसर सेल को नष्ट कर देती हैं। ट्रायल के बाद करीब दो साल तक मरीजों का फालोअप किया गया। इस दौरान यह पाया गया कि ज्यादातर मरीज 26 माह तक ठीक रहे। उन्होंने बताया कि सामान्य तौर पर अमेरिका में कोई शोध होने के बाद किसी थेरेपी पर यहां देश में शोध शुरू होता है लेकिन इस मामले में एम्स ने लीड़ लिया है। एम्स के शोध को बाद अमेरिका में शोध शुरू हुआ है।
अल्फा थेरेपी से प्रोस्टेट कैंसर का भी हो रहा इलाज
एम्स में एडवांस स्टेज के प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों का भी अल्फा थेरेपी से ट्रायल के रूप में इलाज हो रहा है। एम्स में अब तक कुल 150 मरीजों का इस तकनीक से इलाज किया जा चुका है।एक डोज दवा की कीमत है पांच लाख 20 हजार रुपये
अल्फा थेरेपी में इस्तेमाल होने वाली दवा की एक डोज की कीमत पांच लाख 20 हजार है। एक से दो डोज मरीजों को यह देने की जरूरत पड़ती है। यह दवा सिर्फ जर्मनी में तैयार होती है। इस वजह से अभी महंगी है। एम्स के डाक्टर ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर बताया है कि देश में ही थोरियम से एक्टिनियम बनाकर यह दवा विकसित की जा सकती है। इसलिए टास्कफोर्स गठित कर शोध कराने की मांग की है। साथ ही वैकल्पिक तौर पर इस दवा पर लगने वाली 18 प्रतिशत जीएसटी हटाने की मांग की है। इससे दवा प्रति डोज करीब 93 हजार सस्ती हो जाएगी।
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