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खून के सैंपल से हो सकेगी अल्जाइमर रोग की जांच, छह मार्कर की हुई पहचान; AIIMS के डॉक्टरों को मिली सफलता

एम्स के बायोफिजिक्स विभाग के डॉक्टरों ने संस्थान के दूसरे कई अन्य विभागों के साथ मिलकर इस शोध को पूरा किया है। हाल ही में यह शोध अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (बीएमसी मेडिसिन) में प्रकाशित हुआ। यह शोध 90 लोगों पर शोध किया जिसमें 35 अल्जाइमर के मरीज 25 मध्यम स्तर के संज्ञानात्मक हानि वाले लोग व 30 स्वस्थ लोग शामिल थे।

By Ranbijay Kumar Singh Edited By: Sonu Suman Updated: Fri, 21 Jun 2024 07:27 PM (IST)
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खून के सैंपल से हो सकेगी अल्जाइमर की जांच, छह मार्कर की हुई पहचान।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। एम्स के डॉक्टरों ने शोध कर शरीर में छह ऐसे मार्कर (प्रोटीन, जीन) की पहचान की है, जिससे खून के सैंपल से आसानी से अल्जाइमर बीमारी की जांच की जा सकती है। इससे अल्जाइमर की जांच आसान होगी। यह शोध करने वाले एम्स के डॉक्टरों का दावा है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से अल्जाइमर की बीमारी का शुरुआती चरण में ही पता लगाकर इलाज के जरिये बीमारी बढ़ने से रोका जा सकता है।

एम्स के बायोफिजिक्स विभाग के डॉक्टरों ने संस्थान के दूसरे कई अन्य विभागों के साथ मिलकर यह शोध किया है। हाल ही में यह शोध अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (बीएमसी मेडिसिन) में प्रकाशित हुआ। यह शोध 90 लोगों पर शोध किया। जिसमें 35 अल्जाइमर के मरीज, 25 मध्यम स्तर के संज्ञानात्मक हानि वाले लोग व 30 स्वस्थ लोग शामिल थे। इन सबके खून का सैंपल लेकर एक्सोसोम से मार्कर अलग कर शोध किया गया।

मरीजों में फास्पो टाउ प्रोटीन का स्तर बढ़ा था

इस दौरान पाया गया कि अल्जाइमर व मध्यम स्तर के संज्ञानात्मक हानि वाले लोगों के एक्सोसोम में अमाइलोइड-बीटा (1–42) प्रोटीन का स्तर सामान्य लोगों की तुलना में बढ़ा हुआ था। इसी तरह मध्यम स्तर के संज्ञानात्मक हानि वाले लोगों व अल्जाइमर के मरीजों में फास्फो टाउ प्रोटीन (पी-टीएयू) का स्तर भी बढ़ा हुआ था।

इसके अलावा इंटरल्यूकिन -1बीटा (आइएल-1बीटा), ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर-अल्फा (टीएनएफ-अल्फा) और जीएफएपी (ग्लियाल फाइब्रिलरी एसिडिक प्रोटीन) का स्तर भी बढ़ा हुआ था। वहीं सिनैप्टोफिसिन कम था। लिहाजा, ये मार्कर अल्जाइमर की जांच में इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

बीमारी बढ़ने पर अल्जाइमर का चलता है पता

एम्स के बायोफिजिक्स विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार ने बताया कि सामान्य तौर पर अल्जाइमर की बीमारी तब पता चलती है, जब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। पेट-स्कैन के माध्यम से यह जांच की जाती है, जो काफी महंगा तकनीक है। जबकि शोध में जो मार्कर पाए गए हैं, वह खून के अलावा लार व यूरिन में भी मौजूद होते हैं।

एम्स ने शोध खून के सैंपल पर किया है, लेकिन लार या यूरिन के सैंपल से भी जांच संभव हो सकती है। उन्होंने बताया कि स्तन कैंसर और पैंक्रियाज के कैंसर की जांच के लिए भी इस तरह के शोध किए गए हैं। इसका एक फायदा यह है कि इस जांच के बाद इलाज के लिए टारगेटेड दवाएं दी जा सकती हैं।

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