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केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को सरकार ने हाई कोर्ट में दी चुनौती

मंत्रालय का कहना है कि सीआइसी ने सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के नियमों की गलत तरीके से व्याख्या करते हुए मंत्रालय को सत्यापित प्रति देने के निर्देश दिए।

By Edited By: Updated: Thu, 31 Jan 2019 08:54 PM (IST)
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केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को सरकार ने हाई कोर्ट में दी चुनौती

नई दिल्ली, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख में सैन्य यूनिट के अंदर हुए बवाल के मामले में आर्मी जज एडवोकेट जनरल (जैग) की सलाह की सत्यापित प्रति आवेदक को उपलब्ध कराने से केंद्र सरकार ने इन्कार कर दिया है। रक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) के आदेश को अब हाई कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ के समक्ष चुनौती दी है।

मंत्रालय का कहना है कि सीआइसी ने सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के नियमों की गलत तरीके से व्याख्या करते हुए मंत्रालय को सत्यापित प्रति देने के निर्देश दिए, जबकि उक्त जानकारी गोपनीय है और आरटीआइ में इसे छूट दी गई है।

रक्षा मंत्रालय की अपील याचिका के अनुसार, 11-12 मई 2012 को जम्मू-कश्मीर के लद्दाख में अधिकारी की पत्नी से बदसलूकी के मामले में अफसर द्वारा जवान की पिटाई के बाद उसकी मौत की अफवाह फैली थी। इससे नाराज 226 फील्ड रेजिमेंट के 100 जवानों ने यूनिट की मेस पर हल्ला बोल दिया था। इस हमले में कई अफसर घायल हुए थे और उनकी पत्नियों के साथ दु‌र्व्यवहार किया गया था।

इस मामले में समरी जनरल कोर्ट मार्शल (एसजीसीएम) की कार्रवाई पूरी होने के बाद घटना में शामिल रहे गनर बिक्रमजीत सिंह को 2015 में नौकरी से बर्खास्त करते हुए दस साल की सजा सुनाई गई थी। बिक्रमजीत सिंह वर्तमान में होशियारपुर स्थित केंद्रीय जेल में सजा काट रहे हैं।

बिक्रमजीत ने दिसंबर 2015 में इस मामले में जैग द्वारा दी गई सलाह की जानकारी मांगी थी। सीआइसी ने जनवरी 2017 में रक्षा मंत्रालय को यह सूचना उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। मंत्रालय ने मई 2018 को हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी थी। एकल पीठ ने याचिका को पहली सुनवाई में यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसे देरी से दायर किया गया है। अब रक्षा मंत्रालय ने इसे दो सदस्यीय पीठ के समक्ष चुनौती दी है।

बृहस्पतिवार को मुख्य पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हुई इस याचिका पर एक न्यायमूर्ति के न होने के कारण सुनवाई नहीं हो सकी। मामले में अगली सुनवाई अप्रैल में होगी। अपील याचिका में मंत्रालय ने दलील दी है कि एकल पीठ ने देरी होने का कारण जानने का मौका दिए बगैर ही याचिका खारिज कर दी।

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