आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से आइसीयू में भर्ती गंभीर मरीजों का इलाज होगा आसान
एम्स के निदेशक डा. एम श्रीनिवास और डीन (शोध) डा. रमा चौधरी ने भी संबोधित किया और शोध को बढ़ावा देने के लिए संस्थान द्वारा किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। हाल ही में एम्स ने शोध आइआइटी दिल्लीखड़गपुर आजीआइबी सहित कई संस्थानों के साथ समझौता किया है।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से ऐसे उपकरण तैयार हो रहे हैं जिससे बीमारियों की जांच आसान होगी। इसके अलावा आइसीयू में भर्ती गंभीर मरीजों की देखभाल और इलाज में भी मददगार साबित होगा। एम्स में शोध पर आयोजित कार्यक्रम में यह बात सामने आई। खास बात यह है कि एम्स के डाक्टर व आइआइटी दिल्ली के साथ मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर शोध भी कर रहे हैं। इसके अलाव जांच, इलाज और लकवा मरीजों के रिहैबिलिटेशन के लिए सस्ते उपकरण तैयार करने में जुटे हैं, जो इलाज में मददगार साबित होंगे।
कोरोना मरीजों की स्क्रीनिंग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बहुत इस्तेमाल हुआ
स्वास्थ्य के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विषय पर आइआइटी दिल्ली के सेंटर फार बायोमेडिकल इंजीनियरिंग और एम्स के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के संयुक्त फैकल्टी डा. अमित मेहंदीरत्ता ने कहा कि कोरोना मरीजों की स्क्रीनिंग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बहुत इस्तेमाल हुआ है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से तैयार स्मार्ट निगरानी के उपकरण अस्पतालों में इस्तेमाल हो रहे हैं जिससे आइसीयू में भर्ती मरीज के शरीर के पैरामीटर की जानकारी नर्सिंग स्टेशन पर मौजूद नर्सिंग कर्मचारी को मिलती रहती है।
जल्द मिलती है मदद
मरीज के स्वास्थ्य में थोड़ा भी गिरावट होने पर आइसीयू वार्ड के नर्सिंग स्टेशन पर अलर्ट पहुंच जाता है। इससे तुरंत चिकित्सकीय मदद पहुंचती है। सामान्य तौर पर नर्सिंग कर्मचारी हर 10-15 मिनट पर आइसीयू में जाकर मरीज के स्वास्थ्य की निगरानी करते हैं। जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से 24 घंटे मरीज की निगरानी की जा सकती है। इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से रेडियोलाजी जांच भी आसान हो जाएगी।
लकवा मरीजों के लिए तैयार किया रोबोटिक डिवाइस
डा. अमित मेहंदीरत्ता ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से रोबोटिक डिवाइस तैयार किया है, जिससे लकवा पीड़ित मरीज के रिहैबिलिटेशन के लिए हाथों का व्यायाम कराया जा सकता है। इसके दो फेज का क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है। अभी एम्स में 200 मरीजों पर तीसरे फेज का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। अब तक के ट्रायल में यह पाया गया है कि चार सप्ताह में ही लकवा मरीजों के हाथ में अच्छा सुधार होता है और इस रोबोटिक डिवाइस की मदद से लकवा पीड़ित व्यक्ति हाथ से ग्लास उठा पाते हैं। उनके इस शोध को एम्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सबसे बेहतरीन शोध का पुरस्कार दिया गया।
एम्स ने आइआइटी दिल्ली व खड़गपुर के साथ किया है समझौता
कार्यक्रम को एम्स के निदेशक डा. एम श्रीनिवास और डीन (शोध) डा. रमा चौधरी ने भी संबोधित किया और शोध को बढ़ावा देने के लिए संस्थान द्वारा किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। हाल ही में एम्स ने शोध आइआइटी दिल्ली, आइआइटी खड़गपुर, आजीआइबी (इंस्टीट्यूट आफ जीनोमिक एंड इंटिग्रेटिव बायोलाजी) सहित कई संस्थानों के साथ समझौता किया है। इसके अलावा एम्स में केंद्रीय कोर अनुसंधान की सुविधा विकसित जा रही है। इसके लिए बीएसएल (बायोसेफ्टी लेबल)-दो व बीएसएल-तीन के स्तर की लैब तैयार की जा रही है, जिसमें शोध के लिए अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध होंगे। इस साल के अंत तक यह लैब शुरू हो जाएगी।