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लगता नहीं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के मन में अन्ना को लेकर कोई दर्द है

अन्ना हजारे करीब एक सप्ताह से रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे हुए हैं। मुद्दे कमोबेश वही हैं, जो 2011 में थे। हां, इस बार का नजारा एकदम अलग है।

By Amit MishraEdited By: Updated: Fri, 30 Mar 2018 10:19 AM (IST)
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लगता नहीं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के मन में अन्ना को लेकर कोई दर्द है

नई दिल्ली [ज्ञानेंद्र भारती]। ये है नई दिल्ली का रामलीला मैदान। मंगलवार का दिन। दोपहर 12 से दो बजे के बीच का समय। गर्मी से परेशान और अलसाए लोग जहां-तहां टोलियों में बैठे हुए। कुछ सो रहे थे। मंच पर गीत चल रहा था और बीच में कभी-कभी भारत माता के जयकारे भी लग रहे थे। मंच के आसपास कुछ फोटोग्राफरों की टीम थी जो माहौल को अपने कैमरों में कैद करने में मशगूल थी। इक्का-दुक्का न्यूज चैनल के लोग भी थे, जो सूचनाएं प्रसारित कर रहे थे।

बीच-बीच में मंच पर आकर बैठ रहे थे अन्ना हजारे

मैदान में करीब हजार-डेढ़ हजार किसान और करीब चार हजार एक रियल एस्टेट कंपनी के निवेशक रहे होंगे, जो अपना पैसा वापस दिलाने या पाने की उम्मीद में आए थे। ये लोगों को कंपनी की ठगी के बारे में बता रहे थे। मंच के नीचे करीब डेढ़ सौ लोगों का अनशन अलग से चल रहा है। बीच-बीच में आंदोलन को समर्थन देने के लिए जब भी किसी टोली के मैदान की तरफ आने की सूचना मिलती, उसकी घोषणा मंच से की जाती। अन्ना हजारे भी बीच-बीच में मंच पर आकर बैठ रहे थे।

लोगों को आंदोलन की भनक तक नहीं है

अन्ना हजारे करीब एक सप्ताह से रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे हुए हैं। मुद्दे कमोबेश वही हैं, जो 2011 में थे। हां, इस बार का नजारा एकदम अलग है। न पहले जैसी स्कूली छात्रों की एक, दो, तीन, चार, नहीं चलेगा भ्रष्टाचार के नारे लगाती टोली दिख रही है और न ही न्यूज चैनलों की भीड़। दिल्ली गेट और अजमेरी गेट के बीच यातायात भी सामान्य गति से चल रहा है। यहां तक रामलीला मैदान के पास के इलाके तुर्कमान गेट पर भी लोग अपने काम में मगन हैं। उन्हें आंदोलन की भनक तक नहीं है।

आम लोगों की भागीदारी न के बराबर

मंच से नारे लगने पर कुछ लोग ही जवाब में जय की आवाज निकालते हैं। इसके कई कारण हैं। आंदोलन के केंद्र में भले ही सशक्त लोकपाल है, लेकिन मंच का नजारा किसान आंदोलन के रूप में ही दिख रहा है। कुछ लोग भले ही अपनी समस्याओं को लेकर आ रहे हैं, लेकिन सामान्य तौर पर आम लोगों की भागीदारी न के बराबर है। इसका एक कारण कई बड़ी शख्सियतों का साथ न होना भी है। पिछले आंदोलन में युवाओं, बड़े व बुजुर्गों को जोड़ने वाली किरण बेदी एक बड़ी हस्ती थीं। उनके मंच पर आते ही लोगों में उत्साह की लहर दौड़ जाती थी। अरविंद केजरीवाल की टीम के साथ ही कई बड़े साधु-सन्यासी भी समर्थन में थे। इसका एक और कारण था, कि लोगों को लग रहा था कि इस आंदोलन से देश में कोई बड़ा बदलाव आने वाला है।

पिछले आंदोलन से लोगों को हुई निराशा

तब अन्ना ने खुद यह बात कही थी कि देश की आजादी की यह दूसरी लड़ाई है। व्यवस्था परिवर्तन भी इसके केंद्र में था। दिल्ली-एनसीआर ही नहीं देश के कई भागों में अन्ना के समर्थन में आंदोलन हो रहे थे। इसकी गूंज विदेशों तक जा रही थी। लोग आंदोलन में खुद से आ रहे थे। पैसे वाले ही नहीं, गरीब वर्ग के लोग भी देश के दूर दराज के इलाकों से दिल्ली पहुंच रहे थे। कई ऐसे लोग भी थे जिनके पैरों में चप्पल तक नहीं थी। पूछने पर कहते थे, ठेकेदार पूरे पैसे नहीं देता है। इसलिए उसके विरोध में दिल्ली आए हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। इसका एक कारण पिछले आंदोलन से लोगों को हुई निराशा भी है। एक तो आंदोलन के बाद कुछ नहीं बदला, दूसरा आंदोलन से जुड़े कई बड़े नाम के लोग विवादों के साथ बिखर गए।

कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी केजरीवाल सरकार 

एक और बात, जो अन्ना की वर्तमान सरकार से ही अपनी मांग मनवाने की सोच है। इनका कहना है कि कोई राजनीतिक दल नहीं बनाना है। इसे भी लोग पसंद नहीं करते हैं। यही कारण रहा कि जब अरविंद केजरीवाल ने पिछले आंदोलन के तुरंत बाद पार्टी बनाने की घोषणा की तो लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया, क्योंकि यह आंदोलन की भावना थी। लोगों का अन्य राजनीतिक दलों से विश्वास उठ गया था। लोगों को उम्मीद थी कि जो पार्टी बनेगी वह ईमानदारी से सरकार चलाएगी। सबके साथ न्याय होगा। राजनीति में गलत लोगों का प्रवेश बंद होगा, लेकिन केजरीवाल सरकार इस कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी।

न सरकार तवज्जो दे रही है और न जनता

कहीं न कहीं से जनता में एक निराशा के भाव आए हैं। अब ऐसे आंदोलनों के प्रति यकीन नहीं रहा कि ये कुछ अच्छा करेंगे। बेशक अन्ना का मकसद साफ और स्पष्ट है और उनकी ईमानदारी पर कोई संदेह भी नहीं किया जा सकता, लेकिन उनकी बात को न कोई सरकार तवज्जो दे रही है और न जनता। यहां तक कि केजरीवाल सरकार ने भी अब तक कोई ऐसा प्रयास नहीं किया, जिससे लगे कि उनके मन में अन्ना के प्रति कोई दर्द है।

ऐसी है आंदोलन की तस्वीर 

मैदान के आधे भाग पर अन्ना आंदोलन का कब्जा है। इसमें भी एक तंबू के नीचे करीब चार-पांच हजार लोगों की उपस्थिति। इसमें उप्र, हरियाणा व कुछ अन्य राज्यों से आए करीब डेढ़ हजार किसान हैं, जो अपने बिछौने के साथ आए हैं। पंडाल में सोने वाले यही किसान हैं। स्नान आदि के बाद इनके भीगे कपड़े भी पंडाल में ही सूख रहे हैं। एक भाग में खाना व दूसरे भाग में अस्थायी रूप से बनाई गई अन्य जनसुविधाएं हैं। सुरक्षा का भी अच्छा बंदोबस्त है। बाकी आधे भाग में सीलिंग के खिलाफ आंदोलनरत व्यापारियों ने अपने तंबू लगा रखे हैं। 

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