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ASI पुराना किला में खोदाई के लिए तकनीक बदलने की तैयारी में, लिडार सर्वेक्षण से होगी इंद्रप्रस्थ की खोज

पुराना किला में छठी बार पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ को खोजने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इस बार तकनीक बदलने की तैयारी में है। इस बार खोदाई शुरू करने से पहले लिडार सर्वेक्षण का सहारा लिया जाएगा ताकि जमीन में दबे अवशेषों तक आसानी से पहुंचा जा सके। इस खाेदाई के माध्यम से छठी बाद पुराने किला में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ ढूंढी।

By V K Shukla Edited By: Sonu Suman Updated: Mon, 21 Oct 2024 08:34 PM (IST)
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ASI पुराना किला में खोदाई के लिए तकनीक बदलने की तैयारी में।

वी के शुक्ला, नई दिल्ली। पुराना किला में इस बार खोदाई के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) तकनीक बदलने की तैयारी में है। अगले माह की शुरुआत से पुराना किला में फिर खोदाई शुरू होगी, एएसआई इसकी तैयारी में जुटा है।

इस बार खोदाई के लिए इस कार्य को शुरू करने से पहले लिडार सर्वेक्षण का सहारा लेने पर विचार किया जा रहा है। ताकि जमीन में दबे अवशेषों तक आसानी से पहुंचा जा सके। इस खाेदाई के माध्यम से छठी बाद पुराने किला में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ ढूंढी। इसके लिए आजादी के बाद से अब तक पांच बार खोदाई हो चुकी है। मगर उस नगरी के प्रमाण नहीं मिल सके हैं जिसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता है।

वसंत स्वर्णकार ने खोदाई की योजना बनाई

पुराना किला में इंद्रप्रस्थ ढूढने के प्रयास की बात करें तो आजादी के बाद सबसे पहले 1954-55 और इसके बाद 1969-70,71,72 से 73 तक एएसआई के पूर्व महानिदेशक पद्मभूषण प्रो बी बी, बी के थापर, एमसी जोशी ने खोदाई कराई थी। इसके बाद 2013 में उस समय के एएसआई के दिल्ली मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ वसंत स्वर्णकार ने इसके बाद यहां खोदाई कराने की योजना बनाई।

उन्होंने खोदाई शुरू कराई जो 2015 तक चली। उन्होंने प्रो लाल से अलग स्थान पर शेर मंडल के पीछे किला परिसर में ही पीछे की तरफ निचले भाग में गए और 10 मीटर गहराई तक खोदाई कराई। इसके बाद 2017 में फिर से उसी ट्रेंच को खोला गया और खाेदाई 2018 तक चली। इनमें उन्हीं ट्रेंच (गड्ढों) में पांच मीटर गहराई तक खोदाई हुई।

खोदाई में मिले मृदभांड को महाभारत काल का

इसके बाद यहां 2022 में कुंती मंदिर स्थल के पास नया ट्रेंच बनाया गया। उस साल जनवरी से जून तक खाेदाई हुई। जिसमें 5.50 मीटर की गहराई तक खोदाई की जा चुकी है। यहां पर उत्खनन के दौरान पूर्व मौर्य काल, मौर्य काल, शुंग, कुषाण काल, गुप्त,उत्तर गुप्त, राजपूत काल, सल्तनत और मुगल काल और ब्रिटिश काल के काफी अवशेष प्राप्त हो चुके हैं। इस दौरान कई चित्रित मृदभांड मिले हैं, जिन्हें महाभारत कालीन माना जाता है। मगर इंद्रप्रस्थ को लेकर अभी तक कोई ऐसा मजबूत प्रमाण नहीं मिल सका है।

2023 में भी खोदाई की अनुमति दी गई, मगर किन्हीं कारणों से खोदाई नहीं हो सकी। अब फिर से 2024-25 के लिए एएसआइ ने अनुमति दी है।एएसआइ कुंती मंदिर वाले इस गड्ढे में भी और नीचे जाना चाहता है।इसके लिए उत्खनन से इंद्रप्रस्थ के प्राचीन शहर के बारे में जानकारी मिलने की उम्मीद है।।दिल्ली में ये एकमात्र पुरातात्विक स्थल है जिसका संबंध महाभारत काल से है।

यहां मिले हैं ये पुरावशेष

कुंती मंदिर स्थल पर वैकुंठ विष्णु भगवान की 900 साल पुरानी राजपूत काल की प्रतिमा, गुप्तकाल की लगभग 1200 वर्ष पुरानी गजलक्ष्मी की एक टेराकोटा की प्रतिमा और राजपूत काल की भगवान गणेश की एक छोटी प्रतिमा, सिक्के व मुहरें मिली हैं जिन्हें पढ़ा जा चुका है।इन पर ब्राह्मी लिपि में लिखा हुअा है।वहीं शेर मंडल के पास वाली खोदाई में मौर्य काल से पहले के संरचनात्मक अवशेष में टेराकोटा का कुआं, ड्रेनेज सिस्टम, शुंग-कुषाण काल से भी पुराने चार कमरों का परिसर, तांबे के कई सिक्के, कई चित्रित मृदभांड मिले हैं, जिन्हें महाभारत कालीन माना जाता है।

क्या है लिडार सर्वेक्षण

इस सर्वेक्षण के माध्यम से जमीन के अंदर दबे अवशेषों के बारे में पता लगाया जाता है। जिससे खोदाई में मदद मिलती है।क्योंकि इस तकनीक से जमीन के अंदर दबे अवशेषों के बारे में पता लगा लिया जाता है और उसी के आधार पर उसी दिशा में खोदाई का दायरा बढ़ाया जाता है। इससे किसी परिणाम पर जल्द पहुंचा जा सकता है।कुछ साल पहले केंद्र सरकार ने खोदाई के लिए इस तकनीक का सहारा लेने का एएसआइ ने सुझाव दिया था।

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