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अब हर तीन महीने में खोदाई के लिए अनुमति देगा ASI, नियमों में किया बदलाव; बाहर आएगा महत्वपूर्ण स्थलों में दबा इतिहास

अब हर तीन माह में एएसआइ खोदाई के लिए अनुमति देगा। इस बदलाव का मकसद खोदाई के लिए अनुमति लेने वालों को परेशानी से बचाना है। इससे पहले साल में एक बार ही इस कार्य के लिए कमेटी की बैठक होती थी और उसी में अनुमति दी जाती थी मगर अब साल भर आवेदन लिए जाएंगे और हर तीन माह में इन आवेदनों का निपटारा किया जाएगा।

By V K ShuklaEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Mon, 18 Dec 2023 09:29 AM (IST)
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इंद्रप्रस्थ ढूंढने के लिए पांच बार हुई पुराना किला की खोदाई
वी के शुक्ला, नई दिल्ली। जमीन में दबे भारत के प्राचीनतम इतिहास को पुरातात्वित साक्ष्यों के आधार पर सामने लाने की प्रक्रिया के तहत अब हर तीन माह में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) खोदाई के लिए अनुमति देगा । इसके लिए एएसआइ ने नियमों में बदलाव किया है।

साल भर लिए जाएंगे आवेदन

इस बदलाव का मकसद खोदाई के लिए अनुमति लेने वालों को परेशानी से बचाना है। इससे पहले साल में एक बार ही इस कार्य के लिए कमेटी की बैठक होती थी और उसी में अनुमति दी जाती थी, मगर अब साल भर आवेदन लिए जाएंगे और हर तीन माह में इन आवेदनों का निपटारा किया जाएगा।

इससे पहले खोदाई के लिए आवेदन न कर पाने पर साल भर के लिए ऐसे लोगों को इंतजार करना पड़ता था। पुरातत्वविद एएसआइ के इस बदलाव को बेहतर मान रहे हैं। उनका कहना है कि इससे आने वाले समय में खोदाई के मामलों को लेकर बहुत लाभ मिल सकेगा।

देश में तमाम ऐसे टीले या अन्य स्थान मौजूद हैं जहां पर कई बार खोदाई कराई गई है, इन टीलों में हर बार की खोदाई में कुछ न कुछ नए पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं। अनुमति नहीं मिल पाने पर कई बार महत्वपूर्ण स्थलों की खोदाई नहीं भी हो पाती है।

जमीन में दबे मिले थे 100 से अधिक कंकाल 

अभी तक दिल्ली के आसपास हुईं महत्वपूर्ण खोदाई की बात करें तो कुछ साल पहले बागपत के पास सिनौली के एक खेत में खोदाई हुई थी। यह वह स्थान था जहां 2006-2007 में भी खोदाई हुई थी और जमीन में दबे 100 से अधिक कंकाल मिले थे। मगर उस समय किसी खास निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका था।

पांच साल फिर यहां से कुछ दूरी पर हुई खोदाई में मिले पुरातात्विक साक्ष्यों ने पुरातत्वविदों को चौंका दिया है, यहां खोदाई में जमीन में दबे इस तरह के रथ मिले हैं जिन्हें हम अभी तक फिल्मों या किताबों में ही देखते आ रहे थे।

इन रथों के साथ योद्धाओं के ताबूत में बंद कंकाल मिले हैं। इनके साथ ही मिट्टी के बर्तन मिले हैं, तलवार, धनुष बाण व युद्ध में लड़ने के समय काम आने वाले अन्य सामान मिला है।माना जा रहा है कि युद्ध के दौरान मारे गए योद्धाओं के ये कंकाल हैं। जिनका उस समय की विधि के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया होगा।

इस स्थल को महाभारत काल से जोड़कर देखा जा रहा है। हरियाणा के राखी गढ़ी में नौ टीले वर्षों से पुरातत्वविदों के लिए कौतूहल का विषय रहे हैं। यहां कई बार खोदाई हो चुकी है, पिछले तीन साल से एएसआइ यहां खोदाई करा रहा है। इस स्थल की पहचान सिंधु घाटी की सभ्यता के समकक्ष स्थल के रूप में हुई है।

यह एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में सामने आया है। पूर्व में यहां मिले साक्ष्यों के आधार पर पुरातत्वविद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आर्य बाहर से नहीं आए थे, बल्कि यहीं के निवासी थे।

इंद्रप्रस्थ ढूंढने के लिए पांच बार हुई खोदाई

इसी तरह दिल्ली के पुराना किला में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ ढूंढने के लिए आजादी के बाद से पांच बार खोदाई हो चुकी है। पहली बार 1955 में खोदाई हुई थी, अंतिम बार 2022-23 में हुई है।

इस खोदाई में वे मृदभांड मिले हैं जिनकी पहचान पांडवों के समय के बर्तनों से की गई है। आगे भी यहां खोदाई जारी रखी जानी है।

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