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कूड़े से निकलेगा सोना, हैदराबाद में बनकर तैयार एशिया का सबसे बड़ा ई-कचरा संयंत्र

देश की राजधानी दिल्ली में सालाना दो लाख टन तक ई कचरा निकलता है लेकिन 90 प्रतिशत से अधिक कचरे का निस्तारण ही नहीं हो पाता। हैरत की बात यह भी कि देश में उत्पन्न कुल ई कचरे में पांच प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी दिल्ली की होती है।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Wed, 07 Jun 2023 03:46 PM (IST)
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कूड़े से निकलेगा सोना, हैदराबाद में बनकर तैयार एशिया का सबसे बड़ा ई-कचरा संयंत्र
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। बेशक ई कचरा देश के लिए एक बड़ी समस्या है, लेकिन जल्द ही इसका समाधान भी निकल जाएगा।

हैदराबाद स्थित डूंडीगल गांव में एशिया का सबसे बड़ा ई- कचरा पुनर्चक्रण संयंत्र आरई सस्टेनेबिलेटी रेलडान रिफाइनिंग लिमिडेट बनकर तैयार हो गया है। यहां रिफाइनिंग यानी कचरे से मूल्यवान धातु निकालने की सुविधा भी रहेगी।

आरई सस्टेनेबिलेटी लिमिडेट के कारपोरेट समन्वय प्रमुख रमेश बित्रा बताते हैं कि ई कचरे में बहुत सी मूल्यवान धातुएं भी रहती हैं। लेकिन इन धातुओं को निकालने के लिए जर्मनी, बेल्जियम और अमेरिका के संयंत्रों की मदद ली जाती रही है। लेकिन अब यह भारत में भी संभव हो सकेगा।

उन्होंने बताया कि सुनकर हैरत भले ही हो, लेकिन इस ई कचरा पुनर्चक्रण में मूल्यवान धातुओं के लिए ही एक तिजोरी भी बनाई गई है। संयंत्र की औपचारिक शुरुआत करने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार को अनुरोध भेज दिया है, समय मिलने ही उदघाटन कर दिया जाएगा। यह संयंत्र 13 एकड में बनाया गया है।

क्या है इसकी विशेषता

  • इसकी विशेषता यह है कि देश का पहला ऐसा संयंत्र है जहां ई कचरे से धातु निकाली जाएंगी।
  • इसके लिए चार तकनीकों- थर्मल प्रोसेसिंग, मैकेनिकल रिडक्शन, पायरो मैटालोजिकल एवं हाइड्रो मैटालोजिकल प्रोसेसिंग का इस्तेमाल किया जाएगा। संयंत्र की क्षमता 20 हजार टन सालाना है।
  • प्रति एक क्विंटल ई कचरे से लगभग 10 ग्राम सोना निकलता है।
  • मोबाइल फोन से लेकर कंप्यूटर-लैपटाप तक ज्यादातर इलेक्ट्रानिक उपकरणों के सर्किट बोर्ड में सोना इस्तेमाल होता है। एक अच्छा हीट कंडक्टर होने के कारण उपकरण को गर्म होने से बचाने में यह खासी मदद करता है।
  • देशभर में सालाना 3.4 मिलियन टन ई वेस्ट निकलता है। सबसे ज्यादा मुंबई में 11 मीट्रिक टन रोजाना और उसके बाद दूसरे नंबर पर राजधानी में नौ मीट्रिक टन रोजाना ई कचरा निकल रहा है।
  • इसमें से केवल 10 प्रतिशत ई कचरे का ही पुनर्चक्रण हो पाता है जबकि 90 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के हवाले चला जाता है।

गुजरात में होता है ज्यादातर ई कचरे की प्रोसेसिंग

20 राज्यों-आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडू, यूपी, तेलंगाना, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल में केवल 400 डिस्मेंटलर और रिसाइकलर (पर्यावरण अनुकूल निस्तारण एवं पुन: उपयोग करने वाले) हैं। इनकी सालाना प्रोसेसिंग क्षमता 10,68,542.72 टन है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 116 डिस्मेंटलर हैं।

गुजरात में ज्यादातर ई कचरे की प्रोसेसिंग की जाती है। कर्नाटक दूसरे, उत्तराखंड तीसरे, तेलंगाना चौथे और तमिलनाडू पांचवें नंबर पर है। देश की राजधानी दिल्ली में सालाना दो लाख टन तक ई कचरा निकलता है, लेकिन 90 प्रतिशत से अधिक कचरे का निस्तारण ही नहीं हो पाता। हैरत की बात यह भी कि देश में उत्पन्न कुल ई कचरे में पांच प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी दिल्ली की होती है।

ई कचरा निस्तारण एवं इसकी रिफाइनिंग न केवल चुनौतीपूर्ण बल्कि काफी महंगी प्रक्रिया भी है। इसीलिए अभी तक देश में इसके विदेश की सेवाएं ली जाती रही हैं। अब एक शुरुआत की गई है, उम्मीद है कि धीरे धीरे ही सही, भविष्य में भारत इस मामले में भी आत्मनिर्भर हो सकेगा।

-मसूद मलिक, सीईओ, आरई सस्टेनेबिलेटी लिमिटेड

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