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एशिया में पहली बार होने जा रहा ऐसा... अब इस ऐतिहासिक जगह को मिलेगा World Heritage का दर्जा, अहोम राजवंश से जुड़ा है कनेक्शन

असम के चराइदेव जिले में स्थित मोइदाम चीन से आईं ताई-अहोम जनजाति के राजाओं व राजघराने के लोगों का कब्र स्थल है। इस जनजाति के लोग 13वीं शताब्दी में चीन के दक्षिण पश्चिम में स्थित युनान प्रांत से यहां आकर बसे थे। अहोम साम्राज्य की स्थापना चाओ लुंग सिउ-का-फा ने 1253 में की थी। इस कब्र स्थल को अब विश्व धरोहर का तमगा मिलने की संभावना है।

By V K Shukla Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Wed, 17 Jul 2024 10:05 AM (IST)
एशिया में पहली बार होने जा रहा ऐसा... अब इस ऐतिहासिक जगह को मिलेगा World Heritage का दर्जा, अहोम राजवंश से जुड़ा है कनेक्शन
मैदाम या मोइदाम (असम के शाही कब्र स्थल)।

वीके शुक्ला, नई दिल्ली। ताजमहल, लालकिला, कुतुब मीनार व हुमायूं के मकबरे समेत देश में स्थित 42 विश्व धरोहरों की सूची में अब चराइदेव का मोइदाम भी शामिल होने जा रहा है। देश के महत्वपूर्ण मध्यकालीन अहोम राजवंश के शाही परिवारों के लिए बनाए गए इस कब्र स्थल को राजधानी में 21 जुलाई से होने जा रही विश्व धरोहर समिति की बैठक में सांस्कृतिक श्रेणी में विश्व धरोहर का तमगा मिलने जा रहा है।

भारत सरकार की ओर से इस बार की बैठक में इसे प्रस्तावित किया गया है। इसके लिए प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है और बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगने की पूरी संभावना है।

एशिया में कोई कब्र स्थल नहीं घोषित हुआ विश्व धरोहर

इस जनजाति के शासकों ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी क्षेत्र में शासन किया और चराइदेव में अपनी राजधानी स्थापित की थी। इससे पहले एशिया में किसी कब्र स्थल को विश्व धरोहर घोषित नहीं किया गया है।

देश की अब तक की 42 विश्व धरोहरों में 34 सांस्कृतिक और सात प्राकृतिक हैं, जबकि एक सिक्किम का कंचनजंघा राष्ट्रीय उद्यान मिश्रित प्रकार की श्रेणी में विश्व धरोहर है।

दस वर्ष पूर्व यूनेस्को को भेजा था प्रस्ताव

चराइदेव के मोइदाम को विश्व धरोहर घोषित कराने संबंधी प्रस्ताव सरकार ने 15 अप्रैल 2014 को यूनेस्को के पास भेजा था, उस समय यह शिवसागर जिले में पड़ता था। बाद में चराइदेव क्षेत्र को जिला घोषित कर दिया गया। शिवसागर से चराइदेव की दूरी 28 किमी है। मोइदाम 2014 में ही यूनेस्को विश्व धरोहर की अस्थायी सूची में शामिल हो गया था।

जनवरी 2023 में केंद्र सरकार की ओर से इसका आधिकारिक नामांकन किया गया। पहले तकनीकी मिशन टीम आई, जिसने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी। इसका डोजियर तैयार किया गया। इसके बाद यूनेस्को के लिए काम कर रही टीम ने स्मारक का दौरा किया।

टीम अपनी रिपोर्ट यूनेस्को को सौंप चुकी है, जिसमें सभी कुछ ठीक पाया गया है। मोइदाम को देखने के लिए अब पर्यटक पहुंच रहे हैं। माना जा रहा है कि इसे विश्व धरोहर का तमगा मिल जाने पर पर्यटन के लिहाज से भी देश को बहुत लाभ मिलेगा।

17वीं शताब्दी तक दफनाए जाते रहे शव

चराइदेव स्थित मोइदाम को असम के पिरामिड के रूप में भी जाना जाता है। यह अहोम समुदाय के लिए एक पवित्र स्थान है। 17वीं शताब्दी तक अहोम वंश के राजाओं, राजपरिवार के सदस्यों व अन्य प्रमुख लोगों के शव मोइदाम में दफनाए जाते थे, लेकिन इस समुदाय से जुड़े लोगों ने 18वीं शताब्दी में मृत देह की अंत्येष्टि के लिए हिंदू रीतिरिवाजों से दाह संस्कार पद्धति का प्रयोग शुरू कर दिया था। फिर लोग दाह संस्कार के बाद उसकी राख को चराईदेव में ले जाकर दफनाते थे।

जीवित दास या दासी को भी कर दिया जाता था दफन

मोइदाम अर्धगोलाकार मिट्टी के टीले जैसा होता है। ये अर्धगोलाकार टीले उसमें दफनाए गए व्यक्ति के महत्व के अनुरूप एक सामान्य ऊंचाई वाले टीले से लेकर 20 मीटर की ऊंचाई तक की पहाड़ी जैसे ऊंचे बनाए जाते थे। कुछ स्थानों पर उत्खनन से पता चला है कि टीले के अंदर गुंबददार कक्ष बनाया जाता था, जिसके बीचोंबीच एक ऊंचे स्थान पर शव को रखा जाता था।

कक्ष में पश्चिम की ओर से एक मेहराबदार धनुषाकार मार्ग से प्रवेश किया जाता था। टीले के आधार पर एक अष्टकोणीय दीवार बनाई जाती थी और टीले के ऊपर ईंटों से एक प्लेटफार्म जैसा बनाया जाता था, जिसपर समुदाय के लोग हर साल फूल इत्यादि रखकर श्रद्धांजलि देते थे।

मोइदाम के कक्ष पहले लकड़ी के बनाए जाते थे, लेकिन 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से इसे बनाने के लिए पत्थर और ईंटों का इस्तेमाल होने लगा था। राजाओं के शव के साथ मोइदाम में बड़ी मात्रा में कीमती वस्तुओं के साथ उनके जीवित या मृत दास-दासी को भी दफन कर दिया जाता था।