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भारत की इस शाही कब्र स्थल को मिल सकता है विश्व धरोहर का तमगा, अलग है इस कब्रिस्तान की कहानी

विश्व धरोहर समिति (World Heritage Committee) की 21 जुलाई से दिल्ली में होने जा रही बैठक में इस बार मैदाम या मोइदाम (असम के शाही कब्र स्थल) को विश्व धरोहर का तमगा मिलने जा रहा है। इसके लिए प्रक्रिया पूरी चुकी है। बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगने की पूरी संभावना है। भारत सरकार की ओर से इस बार की बैठक में इसे प्रस्तावित किया गया है।

By V K Shukla Edited By: Geetarjun Updated: Wed, 17 Jul 2024 12:45 AM (IST)
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मैदाम या मोइदाम (असम के शाही कब्र स्थल)।

वीके शुक्ला, नई दिल्ली। विश्व धरोहर समिति (World Heritage Committee) की 21 जुलाई से दिल्ली में होने जा रही बैठक में इस बार मैदाम या मोइदाम (असम के शाही कब्र स्थल) को विश्व धरोहर का तमगा मिलने जा रहा है। इसके लिए प्रक्रिया पूरी चुकी है। बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगने की पूरी संभावना है।

भारत सरकार की ओर से इस बार की बैठक में इसे प्रस्तावित किया गया है। असम के चराईदेव जिले में ये शाही कब्र स्थल स्थित है। यह भारत के महत्वपूर्ण मध्यकालीन आहोम राजवंश के शाही परिजनों के लिए बना कब्रगाह टीला है।

क्या है शाही मैदाम की कहानी

शाही मैदाम केवल असम राज्य में चराईदेव में पाए जाते हैं। ये चीन से आईं ताई-अहोम जनजातियों के राजाओं के कब्र स्थल हैं। इन जनजातियों के राजाओं ने 12वीं से 18वीं ईस्वी के बीच उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न हिस्सों में अपनी राजधानी स्थापित की थी।

इससे पहले एशिया में किसी कब्र स्थल को विश्व धरोहर घोषित नहीं किया गया है।इसे विश्व धरोहर घोषित कराने के लिए भारत सरकार पिछले 10 सालों से कोशिश कर रही है।

2014 को भी भेजा था प्रस्ताव

असम के शिवसागर जिले में स्थित इस मैदाम को विश्व धरोहर घोषित कराने का प्रस्ताव भारत सरकार ने 15 अप्रैल 2014 को यूनेस्को के पास भेजा था। मैदाम 2014 में ही यूनेस्को विश्व धरोहर की अस्थाई सूची में शामिल हो गया था।

जनवरी 2023 में इसका भारत की तरफ से आधिकारिक नामांकन किया गया। पहले तकनीकी मिशन टीम आई थी, जिनसे इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी थी। इसका डोजियर तैयार किया था।

यूनेस्को की टीम कर चुकी है दौरा

इसके बाद यूनेस्को के लिए काम कर रही टीम स्मारक का दौरा कर चुकी है। टीम अपनी रिपोर्ट यूनेस्को को सौंप चुकी है जिसमें सभी कुछ ठीक पाया गया है। इन्हें देखने के लिए अब पर्यटक पहुंच रहे हैं। माना जा रहा है कि इसे विश्व धरोहर का तमंगा मिल जाने पर पर्यटक के लिहाज से भी भारत को बहुत लाभ मिल सकेगा।

असम का यह चराइदेव मैदाम असम के पुराने राजवंश अहोम साम्राज्य से संबंधित है। इसकी स्थापना चाओ लुंग सिउ-का-फा ने 1253 में की थी। इन्हें असम के पिरामिड के रूप में भी जाना जाता है। यह ऐतिहासिक स्थल शिवसागर शहर से लगभग 28 किमी दूर स्थित है।

अहोम समुदाय के लिए पवित्र स्थान

चराइदेव अहोम राजवंश की टीले वाली दफन प्रणाली के रूप में जाना जाता है। यह अहोम सम्राट की कब्रगाह थी और अहोम समुदाय के लिए एक पवित्र स्थान है। अहोम समुदाय से जुड़े लोगों ने 18 वीं शताब्दी के हिंदू रीतिरिवाजों से दाह संस्कार पद्धति को शुरू कर दिया था। इन लोगों के लिए चराइदेव का मैदाम पूज्यनीय है।

शायद इसीलिए ये लोग 18 वीं शताब्दी में दाह संस्कार के बाद उसकी राख को चराइदेव के मैदाम में ले जाकर दफनाते थे। इसलिए चराइदेव मैदाम अहोम समुदाय के नजरिये से महत्व अधिक है।

कैसी है कब्रगाह

मैदाम मिट्टी के टीले के अंदर दो मंजिला होता है, जिसमें एक धनुषाकार मार्ग से प्रवेश किया जाता है। अर्धगोलाकार मिट्टी के टीले के ऊपर ईंटों और मिट्टी की परतें बिछाई गई हैं, जहां टीले का आधार एक बहुभुज दीवार और पश्चिम में एक धनुषाकार प्रवेश द्वार द्वारा मजबूत किया जाता है।

कुछ स्थानों पर उत्खनन से पता चला है कि प्रत्येक मैदाम के अंदर गुंबददार कक्ष में एक केंद्रीय रूप से उठा हुआ मंच होता था जहां शव को रखा जाता था। मृतक द्वारा अपने जीवन के दौरान उपयोग की जाने वाली कई वस्तुओं को उनके राजा के साथ दफनाया जाता था।

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