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Ram Mandir: गहन तकनीक से परख रहे श्रीराम मंदिर में लग रहे पत्थरों की गुणवत्ता

अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में वर्षों तक मजबूत संरचना के लिए इसमें लगने वाले पत्थरों को ठोक बजा कर उपयोग किया जा रहा है। इसी क्रम में अल्ट्रसोनिक परीक्षण से पत्थरों की आंतरिक गुणवत्ता का पता लगाया जाता है। इस कंप्यूटरकृत जांच में ईसीजी की तरह ही रिपोर्ट बनती है। जिस पत्थर की जांच में वक्र ज्यादा बड़ा बनाता है उसे अनुपयुक्त घोषित कर हटा दिया जाता है।

By Jagran NewsEdited By: GeetarjunUpdated: Wed, 20 Dec 2023 08:10 PM (IST)
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गहन तकनीक से परख रहे श्रीराम मंदिर में लग रहे पत्थरों की गुणवत्ता
अजय राय, नई दिल्ली। अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में वर्षों तक मजबूत संरचना के लिए इसमें लगने वाले पत्थरों को ठोक बजा कर उपयोग किया जा रहा है। इसी क्रम में अल्ट्रसोनिक परीक्षण से पत्थरों की आंतरिक गुणवत्ता का पता लगाया जाता है। इस कंप्यूटरकृत जांच में ईसीजी की तरह ही रिपोर्ट बनती है। जिस पत्थर की जांच में वक्र ज्यादा बड़ा बनाता है, उसे अनुपयुक्त घोषित कर हटा दिया जाता है।

इसके अलावा राष्ट्रीय शिला यांत्रिकी संस्थान (एनआईआरएम) अन्य विधियों से भी पत्थरों की जांच कर रहा है। इसके लिए एक टीम अयोध्या में मंदिर निर्माण शुरू होने के साथ ही तैनात की गई है। एनआईआरएम की भूूमिका खदान से लेकर मंदिर में लगने वाले पत्थरों के चयन तक में है।

निर्माण एजेंसी द्वारा तय किए गए खदानों से नमूने के तौर पर पत्थरों को लेकर कर्नाटक के कोलार गोल्ड फिल्ड (केजीएफ) स्थित मुख्य प्रयोगशाला में एनआइआरएम की विज्ञानियों की टीम ने सघन जांच की। जांच में पत्थर का घनत्व, जल अवशोषण और दवाब झेलने की क्षमता का आकलन किया जाता है। इसमें गुणवत्ता सही मिलने पर ही संबंधित खदान से बलुआ पत्थर, संगमरमर, ग्रेनाइट का मंदिर निर्माण में उपयोग के लिए लिया गया।

इसके बाद एक टीम अयोध्या में भी तैनात है, जो इन पत्थरों की जांच करके मंदिर में उपयोग के लिए देती है। बड़े बड़े आकार के इन पत्थरों की जांच कई विधि से की जाती है। इसके लिए हर खेप से कुछ पत्थरों की जांच की जाती है। कमियां मिलने पर और पत्थरों को जांचा जाता है।

ज्यादातर पत्थरों की गुणवत्ता ठीक होने पर ही उपयोग के लिए भेजा जाता है। एनआईआरएम के निदेशक डा. एचएस वेंकटेश ने बताया कि संस्थान श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अनुरोध पर मदद कर रहा है। संस्थान की टीम निर्माण स्थल पर संगमरमर, ग्रेनाइट व बलुआ पत्थरों की जांच कर रही है।

इसमें पत्थरों की मजबूती और उपयोगिता के हिसाब से प्राथमिकता तय की जाती है। संस्थान के प्रधान विज्ञान ए. राजनबाबू ने कहा कि खदान से पत्थरों की जांच बेंगलुरू में भी की गई है। उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि अच्छी गुणवत्ता वाले पत्थर ही निर्माण में उपयोग हो।

डॉ. एचएस वेंकटेश ने बताया कि टीम ने कई खदानों का दौरा किया। यहां से निकलने वाले पत्थरों की गुणवत्ता का मूल्यांकन एनआइआरएम के केजीएफ स्थित प्रयोगशाला में किया गया। वर्तमान में संस्थान की टीम मंदिर निर्माण में उपयोग किए जा रहे ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और संगमरमर की गुवणत्ता की जांच लगातार कर रहा है। राजस्थान के पिंडवाड़ा में कच्चे और नक्काशीदार बलुआ पत्थरों का निरंतर निरीक्षण व परीक्षण किया जा रहा है ताकी मंदिर निर्माण के लिए आवश्यक पत्थरों का चयन किया जा सके।

इन विधियों से हो रही जांच

दरारों की जांच के लिए पत्थरों को धोया जाता है कि सब साफ साफ दिखे। इसकी जांच में पत्थर की संरचना, रंग भिन्नता आदि को देखा जाता है। जहां भी आवश्यक हो, मैग्नीफाइंग ग्लास से किसी भी प्रकार के सतह दोष का पता लगाया जाता है। पत्थरों के स्वीकार्य और संदिग्ध भागों को अलग करने के लिए विभिन्न विधियों का उपोयग किया गया है। इसमें प्रमुख रूप से निरीक्षण में विशेष रूप से डिजाइन भूवैज्ञानिक हथौड़े से चट्टानों की सतह की कठोरता और मजबूती का पता लगाया गया।

चट्टानों की कठोरता व ताकत को निर्धारित करने के लिए रिबाउंड हैमर का उपयोग किया जाता है। अल्ट्रासोनिक परीक्षण में पत्थर के तीन तरफ सेंसर लगाकर उसके आंतरिक गुणवत्ता की जांच की जाती है। इसमें देखा जाता है कि पत्थर में अंदर कोई दरार है या नहीं, या फिर पत्थर के अंदर की मिट्टी कितनी मजबूत है। इस कंप्यूटरकृत जांच में ईसीजी की तरह एक लाइन में छोटे छोटे वक्र बनते है अगर वक्र ज्यादा बड़ा बना तो यह संकेत है कि पत्थर अंदर से कमजोर है उसमें दरार है

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