जानें केंद्र सरकार के किस प्रस्ताव से नाराज हैं देशभर के लाखों आयुर्वेद डॉक्टर
एसोसिएशन का कहना है कि आयोग का गठन यदि तैयार मसौदे के अनुरूप हुआ तो कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। देश में आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्धतियों को संचालित करने वाली केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद को भंग कर उसकी जगह नए आयोग के गठन के केंद्र सरकार के प्रस्ताव से आयुर्वेद के डॉक्टर नाराज हैं। नीति आयोग ने भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग के गठन के लिए बिल का मसौदा तैयार किया है।
मसौदे के प्रावधानों से आयुर्वेद के डॉक्टरों को एलोपैथ की दवाएं लिखने का अधिकार छीन जाने का डर सता रहा है, इसलिए आयुर्वेदिक डॉक्टरों के संगठन (इंटिग्रेटिव मेडिकल एसोसिएशन) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर प्रस्तावित आयोग के गठन के मसौदे में संशोधन की मांग की है।
एसोसिएशन का कहना है कि आयोग का गठन यदि तैयार मसौदे के अनुरूप हुआ तो कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न बीमारियों की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे स्वास्थ्य कार्यक्रम और टीकाकरण अभियान प्रभावित होंगे, क्योंकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयुर्वेद, यूनानी आदि चिकित्सा पद्धतियों के डॉक्टर जुड़े हुए हैं।
एसोसिएशन के महासचिव डॉ. आरपी पराशर ने कहा कि स्वास्थ्य का मसला राज्य का विषय होने के कारण केंद्रीय भारतीय चिकित्सा परिषद ने राज्यों को यह अधिकार दिया है कि यदि वे चाहें तो आयुर्वेद और यूनानी के डॉक्टरों को एलोपैथ की कुछ दवाएं लिखने का अधिकारी दे सकते हैं।
कई जगहों पर इंटिग्रेटेड मेडिसिन की पढ़ाई भी होती है, जिसमें आयुर्वेद के साथ-साथ एलोपैथ के बारे में भी पढ़ाया जाता है।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में भारतीय चिकित्सा पद्धति के डॉक्टरों को एलोपैथ की दवाएं लिखने का अधिकार दिया गया है।
उन्होंने कहा कि परिषद को भंग कर नए आयोग के गठन के प्रस्ताव के मसौदे में एलोपैथिक दवा लिखने के अधिकार के प्रावधान को हटा दिया गया, इसलिए आयोग का गठन होने के बाद भारतीय चिकित्सा पद्धति के डॉक्टर एलोपैथिक दवाएं नहीं लिख पाएंगे।
परिषद में निर्वाचित और सरकार द्वारा नामित दोनों तरह के सदस्य होते हैं, जबकि आयोग में सिर्फ नामित सदस्यों का प्रावधान किया गया है। इससे आयोग में प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों की भूमिका खत्म हो जाएगी। इससे आयोग में डॉक्टरों की बात रखने वाले प्रतिनिधि नहीं बचेंगे।
एसोसिएशन ने आयोग गठन के प्रावधानों को पहले की तरह बरकरार रखने की मांग की है। सरकार भारतीय चिकित्सा पद्धति की शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए आयोग का गठन करना चाहती है।