मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर और तहरीक-ए-हुर्रियत पर जारी रहेगा प्रतिबंध, गृह मंत्रालय के फैसले पर ट्रिब्यूनल ने लगाई मुहर
गृह मंत्रालय ने यूएपीए की धारा 3 के तहत लेफ्टिनेंट एसए गिलानी द्वारा गठित मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर (मसरत आलम गुट) और तहरीक-ए-हुर्रियत जम्मू-कश्मीर को गैरकानूनी संगठन घोषित किया था। आदेश के तहत इन संगठनों का सदस्य या समर्थक होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति पर अगले पांच वर्षों तक यूएपीए के कड़े प्रविधानों के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की अध्यक्षता में गठित गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) न्यायाधिकरण ने मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर और तहरीक-ए-हुर्रियत पर गृह मंत्रालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के जारी रहने की पुष्टि की। दोनों संगठन पर अगले पांच साल का प्रतिबंध जारी रहेगा।
गृह मंत्रालय ने यूएपीए की धारा 3 के तहत लेफ्टिनेंट एसए गिलानी द्वारा गठित मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर (मसरत आलम गुट) और तहरीक-ए-हुर्रियत जम्मू-कश्मीर को गैरकानूनी संगठन घोषित किया था। आदेश के तहत इन संगठनों का सदस्य या समर्थक होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति पर अगले पांच वर्षों तक यूएपीए के कड़े प्रविधानों के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
न्यायाधिकरण ने माना- ये पाकिस्तान प्रायोजित संगठन
अंतिम रिपोर्ट में न्यायाधिकरण ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों की जांच करने के बाद प्रतिबंध को बरकरार रखा और कहा कि ये पाकिस्तान प्रायोजित संगठन थे। जो सीमा पार से मदद लेकर घाटी में अलगाववादी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे।न्यायाधिकरण ने कहा कि इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना था ताकि जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान में विलय हो सके और जम्मू-कश्मीर में इस्लामी शासन स्थापित हो सके। न्यायाधिकरण ने केंद्र सरकार की इस दलील को भी बरकरार रखा कि ये संगठन हाफिज सईद के लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), हैदर राणा के जमात-उद-दावा और सैयद सलाहुद्दीन के हिजबुल मुजाहिदीन जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों की ओर से काम कर रहे थे।
घाटी में आतंकवादी गतिविधियों को दे रहे थे समर्थन
वहीं, ये घाटी में आतंकवादी अभियान चलाने के लिए ऐसे संगठनों को लगातार जमीनी समर्थन दे रहे थे। इसी आधार पर केंद्र सरकार ने इस साल की शुरुआत में यूएपीए के प्रविधानों के तहत कश्मीर घाटी में सक्रिय सात अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। मुस्लिम लीग जम्मू-कश्मीर मसरत आलम गुट की ओर से पेश अधिवक्ता वरीशा फरासत ने प्रतिबंध का विरोध किया। वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति नीना बंसल के न्यायाधिकरण इन प्रतिबंधों की जांच कर रहे हैं।दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश सचिन दत्ता की एक सदस्यीय ट्रिब्यूनल का गठन जनवरी में कड़े आतंकवाद विरोधी कानून के तहत यह आकलन करने के लिए किया गया था कि प्रतिबंध लगाने के लिए पर्याप्त कारण था या नहीं।ये भी पढ़ें- इंजीनियर रशीद की अंतरिम जमानत याचिका पर अदालत ने NIA से मांगा जवाब, लोकसभा सदस्य के तौर पर लेना चाहते हैं शपथ
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