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Begum Hazrat Mahal: 1857 के संग्राम में सेना का नेतृत्व करने वाली पहली महिला, 'महक परी' से बनीं 'बेगम हजरत महल'

Begum Hazrat Mahal Biography अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हजरत महल पहली महिला हैं जिन्होंने प्रथम स्वंतत्रता संग्राम में सेना का नेतृत्व किया था। हजरत महल की सेना में महिला सैनिक दल भी शामिल था।

By Abhishek TiwariEdited By: Updated: Sun, 24 Jul 2022 02:40 PM (IST)
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Begum Hazrat Mahal: 1857 के संग्राम में सेना का नेतृत्व करने वाली पहली महिला
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। Begum Hazrat Mahal Story: भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में पुरुषों के साथ साथ महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया। इन्हीं वीरांगनाओं में से एक थीं बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal)। इनके नाम से अंग्रेजी हुकूमत भी कांपती थी। 1857 की क्रांति में इनकी बहादुरी और शक्ति संगठन ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था।

...कभी 'महक परी' के रूप में थीं मशहूर

बेगम हजरत महल का जन्म 1820 ई. में फैजाबाद में हुआ था। इन्हें बचपन में मुहम्मदी खानम (Muhammadi Khanum) कहकर पुकारा जाता था। बेगम राजशाही घरानों में डांस किया करती थीं। वहां उन्हें शाही हरम के परी समूह में रखा जाता था। इस कारण इनकी पहचान महक परी के रूप में भी थी।

एक बार अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने इन्हें देखा तो उनकी सुंदरता पर मुग्ध हो गए। बाद में वाजिद अली शाह ने इनसे शादी कर ली और हजरत महल की उपाधि दी।

शौहर के कैद होने पर संभाली गद्दी

बेगम की जिंदगी खुशहाल चल रही थी कि तभी सन 1856 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवध राज्य पर कब्जा कर लिया। साथ ही नवाब वाजिद अली शाह को बंदी बना कर कलकत्ता में कैद कर दिया। इसके बाद बेगम ने नाबालिग बेटे बिजरिस को गद्दी पर बैठाकर सत्ता संभाल ली।

अवध को कराया था अंग्रेजों से मुक्त

जब 1857 ई. में युद्ध शुरू हुआ तो बेगम हजरत महल ने अपने महिला सैनिकों के साथ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। इनके कुशल नेतृत्व में सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए और लखनऊ पर दोबारा कब्जा कर लिया। इतिहास कारों के अनुसार इस लड़ाई में बेगम का साथ नाना साहिब, राजा जयलाल, राजा मानसिंह ने साथ दिया था। 1858 में अंग्रेजों ने अवध के कई हिस्सों पर अपना अधिकार दोबारा जमा लिया और बेगम को पीछे हटना पड़ा।

नेपाल में है बेगम का मकबरा

अंग्रेजों के साथ लड़ाई के दौरान मौलाना अहमद शाह की हत्या कर दी गई। इसके बाद बेगम हजरत महल को अवध छोड़ना पड़ा। वे अपने बेटे के साथ नेपाल चली गईं।

नेपाल के राजा राणा जंगबहादुर भी उनके साहस और स्वाभिमान से काफी प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने बेगम हजरत महल को नेपाल में शरण दी। उन्होंने नेपाल में ही 1879 में अपनी आखिरी सांस ली। काठमांडू के जामा मस्जिद में बेगम हजरत महल के शव को दफना दिया गया। वहीं बेगम का मकबरा बना है।

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