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Infant Mortality Rate: दिल्ली में बढ़ी शिशु मृत्यु दर ने बढ़ाई चिंता, तीन वर्ष में अबतक सबसे ज्यादा हुई मौतें

Infant Mortality Rate in Delhi राजधानी में मृत्यु दर कम होने के बावजूद एक वर्ष तक की उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर बढ़ गई है। पिछले साल 7155 शिशु की मौत हो गई जो तीन वर्षों में सबसे अधिक है। शिशु मृत्यु दर बढ़ने का एक कारण विशेषज्ञ कोरोना के दौर में बच्चों का नियमित टीकाकरण प्रभावित होना और विभिन्न बीमारियों का संक्रमण अधिक होना बता रहे हैं।

By Ranbijay Kumar SinghEdited By: GeetarjunUpdated: Sat, 16 Sep 2023 09:40 PM (IST)
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दिल्ली में बढ़ी शिशु मृत्यु दर ने बढ़ाई चिंता, तीन वर्ष में अबतक सबसे ज्यादा हुई मौतें।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। राजधानी में मृत्यु दर कम होने के बावजूद एक वर्ष तक की उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर बढ़ गई है। इस वजह से पिछले साल 7155 शिशु की मौत हो गई, जो तीन वर्षों में सबसे अधिक है। यह बात सिविल पंजीकरण सर्वे (जन्म मृत्यु पंजीकरण) रिपोर्ट से सामने आई है। शिशु मृत्यु दर बढ़ने का एक कारण विशेषज्ञ कोरोना के दौर में बच्चों का नियमित टीकाकरण प्रभावित होना और विभिन्न बीमारियों का संक्रमण अधिक होना बता रहे हैं।

वर्ष 2019 दिल्ली में एक हजार जीवित जन्मे बच्चों में शिशु मृत्यु दर 24.12 थी, जो वर्ष 2020 में घटकर 20.37 हो गई थी। इसके बाद दो वर्षों से लगातार शिशु मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई। वर्ष 2021 में दिल्ली में शिशु मृत्यु दर 23.60 थी, जो पिछले वर्ष बढ़कर 23.82 हो गई।

शिशु मृत्यु दर बढ़ना स्वास्थ्य सुविधाओं पर गंभीर सवाल

शिशु मृत्यु दर स्वास्थ्य सुविधाओं को परखने का एक महत्वपूर्ण मानक है। ऐसे में शिशु मृत्यु दर का बढ़ना दिल्ली की स्वास्थ्य सुविधाओं पर गंभीर सवाल है। 4726 नवजात बच्चे तो अपनी उम्र एक माह भी पूरे नहीं कर पाए। इन बच्चों की मौत चार सप्ताह के भीतर हो गई।

इस वजह से नियोनेटल मृत्यु दर 15.26 रही। वहीं चार सप्ताह से 12 माह तक की उम्र के 2429 शिशुओं ने दम तोड़ दिया।

कुपोषण के कारण 925 शिशुओं की मौतें

इस वजह से पोस्टनेटल मृत्यु दर 8.09 रही। रिपोर्ट के अनुसार सांस की परेशानियों और आक्सीजन की कमी के कारण सबसे अधिक 13.79 प्रतिशत (983) शिशुओं की मौत हुई। शारीरिक विकास नहीं हो पाने और कुपोषण के कारण 12.98 प्रतिशत (925) शिशुओं की मौत हो गई। इसके अलावा सेप्टिसीमिया (10.83 प्रतिशत), निमोनिया (5.77 प्रतिशत), शाक (12.67 प्रतिशत) और हृदय से संबंधित बीमारियां (5.66 प्रतिशत) शिशुओं की मौत का कारण बनी।

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कोरोना की वजह से प्रभावित हुआ टीकाकरण

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय लेखी कहा कि नवजात बच्चों को संक्रामक बीमारियां होने का खतरा अधिक रहता है। कोरोना के दौर में बच्चों का नियमित टीकाकरण प्रभावित हुआ था। क्योंकि उस दौरान कोरोना की रोकथाम और टीकाकरण पर जोर था। तब शिशुओं को कई तरह के वायरल संक्रमण अधिक हुए।

बच्चों को सबसे अधिक लगते हैं टीके

शिशुओं को सांस की परेशानियां व निमोनिया का खतरा भी अधिक होता है। परिवार कल्याण निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ही सबसे अधिक टीका लगाया जाता है।

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बच्चों को दी जाती हैं ये खुराकें

इस उम्र में ही बीसीजी, पेंटावेलेंट टीके की तीनों डोज, पोलियो के टीके की पांच ओरल खुराक, पोलियो के इंजेक्टेबल टीके की तीन डोज, डीपीटी टीके की दो बूस्टर डोज, निमोनिया के टीके की तीन डोज, खसरा व रुबेला से बचाव के लिए एमआर टीके की डोज, डायरिया से बचाव के लिए रोटावायरस टीके की तीन डोज और नौ माह की उम्र में विटामिन ए की खुराक दी जाती है। उल्लेखनीय है कि इन दिनों से टीकाकरण से छूटे हुए बच्चों के टीकाकरण के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है।

पिछले चार वर्ष में शिशु मृत्यु दर

वर्ष                  शिशुओं की मौतें           शिशु मृत्यु दर

2019                       8823                        24.12

2020                       6145                        20.37

2021                       6413                        23.60

2022                       7155                         23.82

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