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एम्स के IRCH से कैंसर के इलाज की सेवाएं NCI होंगी शिफ्ट, डॉक्टरों में असमंजस की स्थिति

दिल्ली एम्स कैंसर के इलाज के लिए दो सेंटर संचालित कर रहा है। इसमें से एक डा. बीआरए इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर हास्पिटल (आइआरसीएच) है जो दिल्ली एम्स के परिसर में है। दूसरा हरियाणा के झज्जर में स्थित 710 बेड की क्षमता का राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआइ) है। सवाल उठाए जाने लगे हैं कि क्या एम्स के आइआरसीएच से कैंसर के इलाज की ज्यादातर सेवाएं एनसीआइ में स्थानांतरित हो जाएंगी?

By Jagran NewsEdited By: Nitin YadavUpdated: Tue, 12 Sep 2023 11:16 AM (IST)
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एम्स के IRCH से कैंसर के इलाज की सेवाएं NCI होंगी शिफ्ट।
नई दिल्ली, रणविजय सिंह। दिल्ली एम्स कैंसर के इलाज के लिए दो सेंटर संचालित कर रहा है। इसमें से एक डा. बीआरए इंस्टीट्यूट रोटरी कैंसर हास्पिटल (आइआरसीएच) है, जो दिल्ली एम्स के परिसर में है। दूसरा हरियाणा के झज्जर में स्थित 710 बेड की क्षमता का राष्ट्रीय कैंसर संस्थान (एनसीआइ) है।

एम्स के निदेशक डा. एम. श्रीनिवास ने एक आदेश में एम्स स्थित कैंसर सेंटर आइआरसीएच की अधिकांश सेवाएं एनसीआइ में स्थानांतरित करने की योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। इससे डाक्टरों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। सवाल उठाए जाने लगे हैं कि क्या एम्स के आइआरसीएच से कैंसर के इलाज की ज्यादातर सेवाएं एनसीआइ में स्थानांतरित हो जाएंगी? क्या आइआरसीएच में कैंसर का इलाज नहीं होगा? इनका जवाब एम्स प्रशासन ने भी स्पष्ट नहीं किया है।

डाक्टर कहते हैं कि दिल्ली में एम्स का आइआरसीएच सरकारी क्षेत्र का एकमात्र कैंसर सेंटर है, जहां कैंसर के इलाज की पूरी सुविधाएं हैं। यदि इसकी अधिकांश सेवाएं एनसीआइ स्थानांतरित हो जाएंगी तो एनसीआर के मरीजों की परेशानी बढ़ जाएगी और झज्जर जाना आसान नहीं होगा। एम्स के कैंसर सेंटर आइआरसीएच में इसमें करीब 200 बेड की सुविधा है।

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इस सेंटर में मरीजों का दबाव अधिक और जगह कम होने के कारण ही एनसीआइ का निर्माण किया गया। फिर भी अभी एम्स के कैंसर सेंटर में मरीजों की भीड़ कम नहीं हो पाई है। स्थिति यह है कि सुबह ओपीडी शुरू होने पर मेडिकल आंकोलाजी से संबंधित मरीजों की स्क्रीनिंग कैंसर सेंटर के बाहर होती है। इससे मरीजों को परेशानी होती है। साथ ही यातायात संबंधी परेशानी भी होती है।

करीब 150 मरीज स्क्रीनिंग कर कीमोथेरेपी के लिए एनसीआइ भेजे जाते हैं और 150 मरीजों की कीमोथेरेपी एम्स के दिल्ली स्थित सेंटर में दी जाती है। एम्स के निदेशक ने इस समस्या के हल के लिए फिलहाल संस्थान के न्यू प्राइवेट वार्ड में जगह उपलब्ध कराने की बात कही है।

इसके तहत न्यू प्राइवेट वार्ड के गेट के पास चारदीवारी के भीतर मरीजों की स्क्रीनिंग करने का निर्देश दिया है। वहां से स्क्रीनिंग के आधार पर कुछ मरीज इलाज के लिए एनसीआइ भेजे जाएंगे और जिन मरीजों को लंबे अवधि तक कीमोथेरेपी की जरूरत होगी, उन्हें आइआरसीएस के मेडिकल आंकोलोजी के डे-केयर में भेजा जाएगा। साथ ही न्यू प्राइवेट वार्ड के खाली वार्ड में कीमाथेरेपी की 30 कुर्सियां लगाई जाएंगी। वहां कम अवधि की कीमोथेरेपी हो सकेगी, पर निर्देश में स्पष्ट कहा गया है कि यह व्यवस्था तीन माह के लिए ही होगी।

उम्मीद की जाती है कि आइआरसीएच अपनी अधिकांश सेवाओं को एनसीआइ में स्थानांतरित करने के लिए योजना बनाएगा, ताकि एम्स के कैंसर इलाज की सेवाएं एक जगह की जा सकें। इस मामले पर स्पष्टता के लिए एम्स के मीडिया प्रोटोकाल डिवीजन से सवाल पूछने पर कोई जवाब नहीं मिला।

एम्स में कलेजियम सिस्टम लागू

एम्स ने विभागाध्यक्षों की नियुक्ति में रोटेशन की जगह कलेजियम सिस्टम लागू करने का फैसला कर लिया है। इसके लिए बाकायदा अधिसूचना जारी कर कालेजियम और विभागाध्यक्षों के अधिकारों का बंटवारा कर दिया है। साथ ही कालेजियम में सदस्यों की संख्या भी तय कर दी है। नौ संकाय सदस्यों वाले विभागों के कलेजियम में तीन वरिष्ठ फैकल्टी और नौ से अधिक संकाय सदस्यों वाले विभागों के कलेजियम में पांच फैकल्टी शामिल होंगे।

विभागाध्यक्ष, यूनिट प्रभारी और विभिन्न केंद्रों के प्रमुख कलेजियम के हिस्सा होंगे। कलेजियम बहुमत के आधार पर विभागों और कार्डियक न्यूरो सेंटर, ट्रामा सेंटर, आरपी सेंटर, कैंसर सेंटर इत्यादि केंद्रों में इलाज की स्थायी सुविधाओं, शोध व मेडिकल शिक्षा से संबंधित फैसला करेगा।

अधिसूचना जारी होने के बाद कलेजियम के गठन का रास्ता साफ हो गया है। एम्स का फैकल्टी सेल जल्द सभी विभागों और केंद्रों में कलेजियम का गठन करेगा। इससे विभागाध्यक्षों के अधिकार सीमित हो जाएंगे। विभाग की ओपीडी और वार्ड में चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार, शोध व मेडिकल शिक्षा से संबंधित मामलों पर कलेजियम की भूमिका अहम होगी। हर महीने अनिवार्य रूप से कालेजियम की एक बैठक होगी।

इसकी अध्यक्षता विभागाध्यक्ष और केंद्र प्रमुख करेंगे। कलेजियम विभाग के फैकल्टी स्तर के डाक्टरों से समन्वय बनाकर नीतिगत फैसले लेगा। मरीजों के लिए ओपीडी स्लाट, वार्ड में बेड, आपरेशन थियेटर, लैब, फंड और विभिन्न एजेंसियों से मिलने वाले ग्रांट इत्यादि संसाधनों के आवंटन के फैसले भी बैठक में लिए जाएंगे। गुणवत्तापूर्ण इलाज सुनिश्चित करना और मरीजों की संतुष्टि का ध्यान रखना भी कलेजियम की जिम्मेदारी होगी।

इसके अलावा आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय), डिजिटल मिशन इत्यादि सरकारी योजनाओं को ठीक से पालन भी कराना होगा। फैकल्टी की नियुक्ति से संबंधित मामलों का समाधान भी कलेजियम द्वारा किया जाएगा, जबकि विभागाध्यक्ष और केंद्र प्रमुख दिन प्रतिदिन की गतिविधियों से संबंधित फैसला लेंगे और उसे लागू कराएंगे।

वे संस्थागत और अन्य मंचों पर विभाग और सेंटर का प्रतिनिधित्व करेंगे और इलाज संबंधी कामकाज का रोस्टर तैयार करेंगे। खरीदारी की जिम्मेदारी भी विभागाध्यक्ष व सेंटर प्रमुख के पास रहेगी, पर विभाग के लिए हुई खरीदारी की निगरानी कलेजियम करेगा।

ओपीडी, आइपीडी व इमरजेंसी में प्रभावी चिकित्सा की व्यवस्था विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी होगी। बता दें कि केंद्र ने डेढ़ माह पूर्व एम्स में एक वर्ष के लिए कलेजियम सिस्टम लागू करने का निर्देश दिया था।

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