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Exclusive: अारुषि मर्डर केस- सीबीआइ भी नहीं जानती हत्याकांड का सच

सीबीआइ हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करने पर विचार कर रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Sat, 14 Oct 2017 06:03 PM (IST)
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Exclusive: अारुषि मर्डर केस- सीबीआइ भी नहीं जानती हत्याकांड का सच

नीलू रंजन, नई दिल्ली। आरुषि हत्याकांड में राजेश और नुपुर तलवार को हाईकोर्ट ने यूं ही नहीं बरी कर दिया है। हकीकत यही है कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी दोहरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में पूरी तरह नाकाम रही। ढाई साल की जांच और कई उलटफेर के बाद अंतत सीबीआइ ने हाथ जोड़ लिया था और अदालत से केस को बंद करने की अपील (क्लोजर रिपोर्ट) की थी। यही कारण है कि सीबीआइ हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं करने पर विचार कर रही है।

दरअसल हत्याकांड की पूरी गुत्थी शराब के गिलास पर उंगली के एक निशान पर आकर टिक गई थी। इस गिलास पर आरुषि और हेमराज दोनों के खून से सनी उंगली के निशान थे। यानी जिसने भी शराब पी थी, उसी ने दोनों की हत्या की थी और हत्या करने के बाद भी घर में मौजूद था। लेकिन सीबीआइ पूरी जोरआजमाइश के बाद भी इस उंगली वाले शख्स को तलाशने में विफल रही। सीबीआइ की माने तो हत्याकांड के बाद उत्तरप्रदेश पुलिस की लापरवाही के कारण सबूतों के साथ हुए छेड़छाड़ ने इस केस की गुत्थी को जटिल बना दिया। आरुषि हत्याकांड को सुलझाने में असमर्थता न सिर्फ सीबीआइ की क्षमता, बल्कि कार्यशैली पर भी सवालिया निशान है। ढाई साल के दौरान सीबीआइ अपने ही जांच के निष्कर्षो से पलटती रही।

जांच की कमान सबसे पहले एक जून 2008 को सीबीआइ के तत्कालीन संयुक्त निदेशक अरुण कुमार ने संभाली और 10 दिन के भीतर ही उन्होंने तीन नौकरों कृष्णा, राजकुमार और विजय मंडल को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन उनकी टीम हत्या में उपयोग किए गए हथियार के साथ आरुषि और हेमराज का मोबाइल भी नहीं ढूंढ पाई। अरुण कुमार ने केवल नार्को टेस्ट के आधार पर उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करना चाहा। यही नहीं, अदालत में उन्होंने राजेश तलवार को क्लीन चिट देकर जमानत पर रिहा भी करवा दिया। जबकि उत्तर प्रदेश पुलिस ने राजेश तलवार को आरोपी मानते हुए गिरफ्तार किया था। अरुण कुमार की टीम ने तीन नौकरों के खिलाफ आरोपपत्र की तैयारी भी कर ली थी।

अगस्त 2008 में सीबीआइ निदेशक बने अश्विनी कुमार ने तीनों नौकरों के खिलाफ सबूतों को पर्याप्त नहीं पाया और पुरानी टीम को जांच से अलग कर दिया। उन्होंने एसपी नीलाभ किशोर को नया जांच अधिकारी नियुक्त कर संयुक्त निदेशक जावेद अहमद को उसकी कमान सौंप दी। नीलाभ किशोर की टीम ने जांच की दिशा को नोएडा पुलिस की जांच के रास्ते पर लौटाते हुए नए सिरे से राजेश तलवार की भूमिका की जांच शुरू की। सितंबर 2008 में बुलंदशहर में आरुषि की मोबाइल मिलने के बाद उम्मीद जगी कि नई टीम जल्द ही हत्या की गुत्थी को सुलझा लेगी। लेकिन दो साल से अधिक की मशक्कत के बाद भी नतीजा सिफर निकला। वैसे नीलाभ किशोर की टीम ने गोल्फ खेलने के क्लब से हत्या की आशंका की नई थ्यौरी पेश की। इससे संदेह की सुई तलवार दंपत्ति की तरफ झुक गया और निचली अदालत ने इसी के आधार पर उन्हें आजीवन कारावास की सजा भी सुना भी दी।

आरुषि हत्याकांड की जांच को एक बड़ी नाकामी स्वीकार करते हुए जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनके पास कोई रास्ता भी नहीं बचा था। उन्होंने कहा कि संदेह के घेरे में राजेश तलवार और उसके तीनों नौकर भी हैं। लेकिन इनमें से किसी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिल पाया। उन्होंने स्वीकार किया कि जांच से जुड़ा कोई भी अधिकारी नहीं जानता है कि आखिरकार आरुषि और हेमराज की हत्या किसने की। 

छलक उठीं तलवार दंपती की आंखें

गाजियाबाद। देश के चर्चित आरुषि-हेमराज हत्याकांड में हाई कोर्ट से बरी होने की सूचना पर डासना जेल में बंद डॉ. राजेश तलवार व उनकी पत्नी डॉ. नूपुर तलवार भावुक हो गए। बेटी को खोने का गम और इंसाफ मिलने के भाव चेहरे पर दिखने के साथ आंखें भी छलक उठीं। फैसले को लेकर तलवार दंपती बुधवार रात से ही बेचैन था। दोनों अपनी-अपनी बैरक में पूरी रात नहीं सोए और करवटें बदलते रहे। दोनों ने बुधवार शाम जेल में रोटी, मसूर की दाल, शलजम की सब्जी व चावल खाए।

गुरुवार सुबह उठने के बाद दोनों ने दैनिक दिनचर्या के बाद व्यायाम व योग किया और पूजा में बैठ गए। सुबह आठ बजे दोनों ने चाय, दलिया व पाव का नाश्ता किया। डॉ. राजेश जेल में बने अपने क्लीनिक पर रोजाना की तरह नहीं गए, लेकिन एक मरीज के दांतों में परेशानी हुई तो उसका इलाज करने क्लीनिक पर आ गए। नूपुर ने रोजाना की तरह जेल में बच्चों को पढ़ाया। राजेश बैरक के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे हनुमान जी की मूर्ति के पास बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे, नूपुर अपनी बैरक में गुरुवाणी का पाठ करती रहीं। दोनों ने बैरकों में लगे टीवी पर बरी होने की खबर देखी तो वे भावुक हो गए।

अपनी बेटी को हम कैसे मार सकते हैं
आशुतोष गुप्ता, गाजियाबाद। 'हम तो किसी को नहीं मार सकते, अपनी बेटी को कैसे मार सकते हैं' हत्याकांड के बाद आरुषि पर लिखी गई किताब 'आरुषि' में इन पंक्तियों का जिक्र किया गया है। इस किताब में यह लाइन आरुषि की मां डॉ. नूपुर तलवार ने लिखी थी। किताब लिखते समय इन लाइनों को सबसे पहले डासना जेल के तत्कालीन अधीक्षक डॉ. वीरेश राज शर्मा ने पढ़ा था। वह वर्तमान में सहारनपुर जेल के वरिष्ठ जेल अधीक्षक हैं। अब फैसला आने के बाद डॉ. वीरेश ने जेल में रहते हुए तलवार दंपती के साथ के अनुभव दैनिक जागरण से साझा किए। उन्होंने बताया कि उनके डासना जेल में करीब चार साल के कार्यकाल के दौरान तलवार दंपती पौने तीन साल बंद रहे। उम्रकैद के बाद शुरुआती दिनों में डॉ. राजेश तलवार व डॉ. नूपुर तलवार बहुत रोते थे। तलवार दंपती ने 15 लाख रुपये खर्च कर जेल में डेंटल केयर सेंटर बनाया। तलवार दंपती जेल से रिहा होने के बाद बच्चों के लिए आरुषि का संग्रहालय खोलना चाहते थे। इसमें आरुषि के खिलौने, कपड़े, किताब, फोटो व अन्य सामान को रखा जाना था।

जेल में तलवार दंपती प्रतिदिन कमाता था 80 रुपये
जासं, गाजियाबाद। बेटी की हत्या के मामले में उम्रकैद सुनाए जाने के बाद डॉ. नूपुर व डॉ. राजेश तलवार को नई पहचान व पता मिला था। राजेश कैदी नंबर 9342, नया पता डासना जेल बैरक नंबर एक और नूपुर कैदी नंबर 9343, नया पता डासना जेल महिला बैरक नंबर 14 बन गए थे। हाई कोर्ट से बरी होने के बाद दोनों का नाम बदलकर वापस डॉ. राजेश व डॉ. नूपुर हो गया। जेल में डॉ. नूपुर महिला बंदियों व उनके बच्चों को पढ़ाती थीं और शनिवार को महिला बंदियों के दांतों का चेकअप करती थीं।

डॉ. राजेश जेल में दंत चिकित्सा का क्लीनिक चलाते थे। इस काम के लिए दोनों को 40-40 रुपये के हिसाब से प्रतिदिन का वेतन मिलता था। जेल प्रशासन ने बताया कि जेल में आने से पहले ही डॉ. राजेश तलवार को अस्थमा की परेशानी हो गई थी, इसीलिए उनकी बैरक बदलकर उन्हें जेल अस्पताल में जगह दी गई थी। पति-पत्नी सप्ताह में एक बार शनिवार को पार्क में डेढ़ घंटे के लिए मिलते थे। डॉ. नूपुर तलवार ने जेल में रहकर कविताएं भी लिखीं। सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार वर्तिका नंदा द्वारा डासना जेल पर लिखी गई किताब 'तिनका तिनका तिहाड़' में भी नूपुर की कविताएं प्रकाशित हुई हैं।

तलवार दंपती की केस डिटेल

डॉ. नूपुर तलवार: एस.टी नंबर-477/12, आरसी1 (एस)2008 सीबीआइ, यू/एस-302 आर/डब्ल्यू 34,201 आर/डब्ल्यू 34, 203 आइपीसी, पीसी-सीबीआइ/एससीआर-111/न्यू दिल्ली। डॉ. राजेश तलवार: एसटी नंबर-477/12, आरसी१ (एस)2008 सीबीआइ, यू/एस-302 आर/डब्ल्यू 34,201 आर/डब्ल्यू 34, 203 आइपीसी, पीसी-सीबीआइ/एससीआर-111/न्यू दिल्ली। कब से जेल में रहेडॉ।

 नूपुर तलवार कारागार में प्रवेश तिथि: 25-11-2013 सजा की तिथि: 26-11-2013 विचाराधीन अवधि में जेल में रहीं: 30-04-2012 से 25-09-2012 तक, चार माह 26 दिन।

डॉ. राजेश तलवार जेल में प्रवेश की तिथि: 25-11-2013 सजा की तिथि: 26-11-2013 विचाराधीन अवधि में जेल में रहे: 23-05-2008 से 12-07-2008 तक, एक माह 20 दिन जेल से चार बार नूपुर शॉर्ट टर्म बेल पर आईं बाहर: हाई कोर्ट के आदेश पर डॉ. नूपुर तलवार जेल से चार बार शार्ट टर्म बेल पर रिहा हुईं। उन्हें पहली बार 05-09-2016 को रिहा किया गया और वह 27-09-2016 को वापस जेल में आईं। इसके बाद 04-10-2016 से 16-11-2016 तक 06-12-2016 से 04-01-2017 और 17-01-2017 से 15-02-2017 की अवधि में शार्ट टर्म बेल पर रहीं।

 हेमराज को किसी ने नहीं मारा!
ललित विजय, नोएडा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए आरुषि के माता-पिता डॉ. नूपुर व डॉ. राजेश तलवार को हत्या के आरोप से भले ही बरी कर दिया, लेकिन उलझन और भी बढ़ गई। लोगों की जेहन में दो सवाल कौंध रहे हैं। पहला आरुषि-हेमराज को किसने मारा और दूसरा यह कि क्या उन्हें किसी ने नहीं मारा? अदालत ने तो साक्ष्यों के आधार पर फैसला सुनाया, लेकिन इसने गौतमबुद्ध नगर पुलिस के साथ ही देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआइ की साख पर सवाल खड़ा कर दिया।

फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने में लापरवाही दुनिया में किसी भी हत्याकांड का पर्दाफाश तीन साक्ष्यों पर ही निर्भर करता है। प्रत्यक्ष, फॉरेंसिक व परिस्थितिजन्य साक्ष्य। आरुषि हत्याकांड में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं था। आरुषि और हेमराज के शव मिलने के बाद नोएडा पुलिस के पास फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने का मौका था, जिसे उन्होंने गंवा दिया। हत्याकांड के १५ दिनों बाद सीबीआइ जांच करने आई। उसने फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाए, लेकिन तब तक बहुत कुछ धुल और घुल चुका था।

सर्विलांस के आगे फॉरेंसिक को नहीं मिली तवज्जो दरअसल, 2008 तक नोएडा पुलिस पर पूरी तरह से सर्विलांस सिस्टम हावी हो चुका था। ज्यादातर केस सर्विलांस के सहारे सुलझ रहे थे। आरुषि हत्याकांड को भी नोएडा पुलिस सर्विलांस की मदद से खोल देने के गुमान में थी। उसने यही किया। डॉ. राजेश तलवार का मोबाइल सर्विलांस पर लेकर उन्हें गिरफ्तार भी किया, लेकिन दुनिया के सामने सच नहीं रख सकी।

पुलिस ने फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने में दिखाई लापरवाही

-आरुषि और हेमराज दोनों का शव मिलने के बाद सीन ऑफ क्राइम को सील नहीं किया गया।

-सीन ऑफ क्राइम पर पुलिस अधिकारियों के साथ बड़ी संख्या में मीडिया प्रतिनिधि व अन्य लोग थे मौजूद। कई सुबूत हुए नष्ट।

-सीन ऑफ क्राइम की वीडियोग्राफी नहीं हुई।

-सीन ऑफ क्राइम के पास पड़ी एक-एक चीज की बारीकी से जांच नहीं हुई। छत पर मौजूद खून से सने पंजे के निशान और फुट प्रिंट को नहीं लिया गया।

-आरुषि के नाखून में चमड़े का अंश था, उसकी जांच नहीं कराई गई। -आरुषि के बिस्तर पर बाल पड़े थे, उनकी जांच भी नहीं हुई।

-छत पर जगह-जगह पड़े खून के सैंपल नहीं लिए गए। सीबीआइ जब तक सैंपल लेती, उससे पहले बारिश हो गई, जिसमें वह धुल गए।

-हेमराज के कमरे में शराब की बोतल पर मौजूद फिंगर प्रिंट को नहीं लिया गया। -तलवार दंपती समेत अन्य लोगों के फिंगर और फुट प्रिंट नहीं लिए गए थे।

-तलवार दंपती के घटना के वक्त पहने कपड़े को जब्त नहीं किया गया।

-खोजी कुत्ते का सहारा नहीं लिया गया था।

इन सवालों के नहीं मिले थे जवाब

-हत्या पहले हेमराज की हुई या आरुषि की।

-सीबीआइ के अनुसार, गोल्फ स्टिक के वार से आरुषि की हत्या हुई थी। फिर हेमराज को कैसे मारा गया। अगर ऐसा था तो आरुषि की गर्दन काटने की जरूरत क्यों पड़ी?

-गर्दन काटने के लिए किस हथियार का इस्तेमाल हुआ? -हेमराज का फोन कहां गया? -आला-ए-कत्ल कहां गया?

-15 मई 2008 की रात हेमराज के मोबाइल पर निठारी के पीसीओ से फोन आया था। वह फोन किसने और क्यों किया था।

सही थी नोएडा पुलिस की जांच:

ब्रजलाल तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था ब्रजलाल ने कहा है कि आरुषि की हत्या के बाद नोएडा पुलिस मौके पर पहुंची थी। डॉ. राजेश तलवार ने पुलिस को तुरंत बता दिया कि नौकर हेमराज ने आरुषि को मार डाला। वह नेपाल भाग गया। यही लिख कर भी दिया। जिस आधार पर नोएडा पुलिस ने केस दर्ज किया। पुलिस छत पर जाकर दरवाजा खोलना चाह रही थी। डॉ. राजेश तलवार ने चाभी नहीं दी। वह आरुषि के पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार कर हरिद्वार के लिए निकल गए। वह मोदीनगर पहुंचे थे।

लेकिन, हेमराज का शव मिलने पर नोएडा पुलिस ने जब फोन किया तो उन्होंने मेरठ में होने की जानकारी दी थी। वह मोबाइल पर हत्या के मामले में जमानत कैसे होती है, इसकी जानकारी ले रहे थे। उन्होंने कहा कि इन सब कारणों से डॉ. राजेश तलवार और डॉ. नूपुर तलवार शक के घेरे में आए थे। एक आधार यह भी था कि अगर बाहरी हत्यारा होता तो वह हेमराज की हत्या के बाद छत के गेट पर ताला लगाने की जहमत नहीं उठाता। उसका मकसद भागना होता। इससे जाहिर हो रहा था कि हेमराज का शव ठिकाने लगाने की योजना थी। इस आधार पर भी तलवार दंपती ही शक के दायरे में आते हैं। मैं अब भी इस बात से सहमत हूं कि नोएडा पुलिस की जांच सही थी। तलवार दंपती ने ही आरुषि-हेमराज की हत्या की है। सीबीआइ और निचली अदालत ने भी इस थ्योरी को माना। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी जांच को गलत नहीं माना है। बल्कि, संदेह के लाभ के आधार पर बरी किया है।

सितंबर को ही फैसला हो गया था सुरक्षित
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद। बेटी आरुषि सहित नौकर हेमराज की हत्या के केस में गाजियाबाद की डासना जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे डा. राजेश और नूपुर तलवार 1417 दिन बाद रिहा होंगे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें गुरुवार को फैसला सुनाते हुए राहत दी, हालांकि कोर्ट ने यह फैसला सात सितंबर 2017 को ही सुरक्षित कर लिया था।गाजियाबाद की सीबीआइ अदालत ने तलवार दंपती को 26 नवंबर 2013 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इस सजा के खिलाफ डा. तलवार दंपती की अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में चली लंबी सुनवाई के बाद सात सितंबर को फैसला सुरक्षित हो गया था। इस बीच डासना जेल में सजा काट रहे तलवार दंपती को भी हाईकोर्ट से राहत मिलने की बेहद उम्मीदें थीं। गुरुवार को आखिरकार कोर्ट ने आरुषि-हेमराज हत्याकांड में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए आरोपी तलवार दंपती को बरी कर उन्हें रिहा किए जाने का आदेश दिया। वहीं समाचार लिखे जाने तक कोर्ट का आदेश वेबसाइट पर अपलोड नहीं हो सका था।

गौतमबुद्ध नगर पुलिस और सीबीआइ में रहा मतभेद
- दोनों ने दिए हेमराज की हत्या में अलग-अलग तर्क

जासं, नोएडा। हेमराज की हत्या मामले में सीबीआइ और गौतमबुद्ध नगर पुलिस के मत अलग-अलग थे। गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने अपनी जांच में माना था कि हेमराज की हत्या छत पर हुई है। सीबीआइ अपनी जांच में इस नतीजे पर पहुंची थी कि हेमराज की हत्या घर में करने के बाद शव को सीढि़यों से घसीटकर छत तक ले जाया गया था। इसका जिक्र उसने क्लोजर रिपोर्ट में किया था।

गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने यह किया था पर्दाफाश:

23 मई 2008 को आइजी गुरुदर्शन सिंह ने प्रेस वार्ता में बताया था कि डॉ. राजेश तलवार ने आपत्तिजनक हालत में देखने के बाद घर में आरुषि की हत्या की। फिर बात करने के बहाने छत पर ले जाकर हेमराज की हत्या की। शव को ठिकाने लगाने की मंशा से हेमराज के शव को छिपा दिया गया। सीबीआइ को दिए बयान में भी गौतमबुद्ध नगर पुलिस के तत्कालीन एसपी सिटी महेश मिश्रा, एसओ दाताराम नौनेरिया तथा चौकी प्रभारी बच्चू सिंह ने बयान दिया था कि गौतमबुद्ध नगर पुलिस आरुषि की हत्या के बाद एल 32 सेक्टर 25 पहुंची। हेमराज पर हत्या का तलवार दंपती ने आरोप लगाया। पुलिस अधिकारी सीढि़यों से छत के दरवाजे के पास पहुंचे। दरवाजा बंद था। ताले पर खून के निशान थे लेकिन सीढि़यों पर खून के निशान नहीं थे। तलवार दंपती से चाभी मांगी गई, लेकिन उन्होंने चाभी नहीं दी।

सीबीआइ का पर्दाफाश:

सीबीआइ ने क्लोजर रिपोर्ट में बताया था कि आरुषि-हेमराज को आपत्तिजनक स्थिति में देखने के बाद डॉ. राजेश तलवार ने आपा खो दिया। उन्होंने गोल्फ स्टिक से वार किया। पहले वार में आरुषि की मौत हो गई। फिर हेमराज को आरुषि के कमरे में मारकर चादर में लपेटकर छत पर ले जाया गया। इस दौरान हेमराज के शरीर से निकली खून की बूंदें सीढि़यों पर गिर गई। सीबीआइ भी बरामद नहीं कर पाई सर्जिकल ब्लेड : सीबीआइ ने आरुषि और हेमराज की हत्या में सर्जिकल ब्लेड का इस्तेमाल होने की बात कही थी। इस मामले की जांच कर चुकी गौतमबुद्ध नगर पुलिस और सीबीआइ उस सर्जिकल ब्लेड को बरामद नहीं कर सकी। अब तक सर्जिकल ब्लेड का राज खुला नहीं है। गौतमबुद्ध नगर पुलिस डॉ. राजेश तलवार का फोन सर्विलांस के माध्यम से सुन रही थी। 22 मई 2008 को तत्कालीन एसएसपी ए. सतीश गणेश ने ऑनर किलिंग का प्रेस वार्ता में शक जताया। 23 मई को डॉ. राजेश तलवार ने वकील को फोन कर हत्या मामले में जमानत की प्रक्रिया जानी। गौतमबुद्ध नगर पुलिस को पहले ही डॉ. तलवार पर शक था। यह सुनते ही पुलिस का शक यकीन में बदल गया। 23 मई को डॉ. राजेश तलवार को गिरफ्तार कर लिया गया था।

नूपुर तलवार ने ही की थी सीबीआइ जांच की मांग:

17 मई 2008 को हेमराज का शव छत पर मिलने के बाद से ही तलवार दंपती सवालों के घेरे में आ गए थे। 23 मई को गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने डा. राजेश तलवार को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद 24 मई की शाम डा. नूपुर तलवार, डा. दिनेश तलवार, डा. अनिता दुर्नानी और डा. प्रफुल्ल दुर्नानी पहली बार मीडिया के सामने आए। उन्होंने गौतमबुद्ध नगर पुलिस के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। उन्होंने पुलिस पर परिवार की इज्जत की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाया था। उन्होंने दावा किया था कि डॉ. राजेश तलवार आरुषि से बेहद प्यार करते थे और वह उसका कत्ल कर ही नहीं सकते थे। डॉ. नूपुर तलवार और दिनेश तलवार ने सीबीआइ जांच की मांग की थी।

इन सवालों का नहीं मिला जवाब
गाजियाबाद। आरुषि-हेमराज हत्याकांड में जानकारों की मानें तो जांच में कई खामियां रहीं, जिन्हें सीबीआइ हाई कोर्ट में साबित नहीं कर सकी। तलवार दंपती के करीबियों के मुताबिक, सीबीआइ जांच की यही खामियां हाई कोर्ट के गले नहीं उतरीं। इन सवालों का जवाब नहीं मिला पाया।

- सीबीआइ ने मौका-ए-वारदात से इकट्ठा किए नमूनों के परीक्षण व सत्यापन की प्रक्रिया में लापरवाही बरती।

- फारेंसिक लैब की रिपोर्ट में कहा गया था कि हेमराज का खून तलवार दंपति के घर से कुछ दूर कृष्णा के बिस्तर पर मिला, लेकिन जांच टीम ने इसकी सत्यता परखना मुनासिब नहीं समझा।

- एक अफसर ने पत्र लिखा था कि हेमराज का खून लगा तकिया व उसका खोल आरुषि के कमरे से मिले थे। सीबीआइ ने दलील दी कि यह सामान हेमराज के कमरे से मिला।

- सीबीआइ ने कहा कि आरुषि की हत्या राजेश तलवार ने एक गोल्फ स्टिक से की। दलील दी गई कि आरुषि का गला स्कैल्पल या डेंटिस्ट के यहां इस्तेमाल होने वाली छुरी से काटा। लेकिन जांच एजेंसी को ऐसा कुछ भी बरामद नहीं हुआ।

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