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अंतरिक्ष में भारत के सुपरपावर बनने की दिशा में चंद्रयान-एक ने निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

अमृत महोत्सव श्रृंखला के तहत पढ़ें सीमित क्षमता और साधन के बाद भी चंद्रयान मिशन-एक अंतरिक्ष में भारत की बहुत बड़ी कामयाबी थी। ऐसी क्षमता चुनिंदा देशों के पास ही है। इस मिशन ने लोगों को देश पर गर्व करने का मौका दिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 18 May 2022 04:07 PM (IST)
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अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत कैसे स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ता चला गया...

नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। भारत में जब सीमित संसाधनों के साथ अतंरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि देश चांद और मंगल तक अपना यान भेज सकता है। मगर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान मिशन-एक के जरिए दुनिया को दिखा दिया कि भारत अंतरिक्ष में केवल चांद तक ही नहीं, बल्कि उससे भी कहीं आगे जा सकता है।

भारत सरकार ने नवंबर 2003 में पहली बार मून मिशन के लिए इसरो के प्रस्ताव चंद्रयान-एक को मंजूरी दी थी। इसके करीब पांच साल बाद ही 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान-एक का सफल प्रक्षेपण कर इसरो ने दुनिया को चकित कर दिया। इस मिशन की कामयाबी देश के लिए बेहद अहम थी।

चांद पर चंद्रयान: चंद्रयान-एक को पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल यानी पीएसएलवी-सी 11 राकेट के जरिए सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा से लांच किया गया था। चंद्रयान-एक पांच दिन बाद 27 अक्टूबर, 2008 को चंद्रमा के पास पहुंचा था। यह पृथ्वी की कक्षा से परे भारत का पहला अंतरिक्ष यान मिशन था। इस मिशन से दुनियाभर में भारत की साख बढ़ी। इसके साथ ही भारतीय विज्ञानियों का मनोबल भी बढ़ा। इसने चंद्रमा के चारों ओर 3,000 परिक्रमाएं पूरी कीं। चंद्रमा की सतह की 70,000 से अधिक तस्वीरों को भेजने के अलावा,चंद्रमा के पहाड़ों और क्रेटर के लुभावनी तस्वीरें भेजीं।

चंद्रयान-एक ने चांद पर रासायनिक और खनिज सामग्री से संबंधित डाटा भी एकत्र किए। बता दें कि चंद्रयान-एक करीब 10 महीने यानी 22 अक्टूबर, 2008 से 30 अगस्त, 2009 तक चंद्रमा के चारों तरफ घूमता रहा। चंद्रयान में मून इंपैक्ट प्रोब डिवाइस लगाई गई थी। यह 14 नवंबर, 2008 को चांद की सतह पर उतरा। इस मामले में भारत दुनिया का चौथा देश बन गया। इससे पहले अमेरिका, रूस और जापान ने यह कामयाबी हासिल की थी। इस डिवाइस ने ही चांद की सतह पर पानी को खोजा था। इस बड़ी खोज के लिए नासा ने भी भारत की तारीफ की थी, क्योंकि इसरो को पहली बार में ही यह सफलता मिली थी।

यह मिशन दो साल का था, लेकिन जब इसने अपने उद्देश्य पूरे कर लिए तो चांद के गुरुत्वाकर्षण बल से जुड़ा डाटा जुटाने के लिए सतह से इसकी ऊंचाई 100 किलोमीटर से बढ़ाकर 200 किलोमीटर की गई थी। इसी दौरान 29 अगस्त, 2009 को इससे रेडियो संपर्क टूट गया। तब तक इसने चांद की रासायनिक, मिनरलाजिक और फोटो-जियोलाजिकल मैपिंग कर ली थी। इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी चांद पर पानी के होने की पुष्टि। इंपैक्टर शोध यान चांद के जिस हिस्से पर उतरा था, उसको विज्ञानियों ने 'जवाहर प्वाइंट' नाम दिया है। चंद्रयान-एक की सफलता के बाद ही भारत ने चंद्रयान-दो और मंगलयान जैसे मिशन का सपना देखा और सफलता हासिल की। इस तरह अंतरिक्ष में भारत के सुपरपावर बनने की दिशा में चंद्रयान-एक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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