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बागपत में मिले रथ, तलवार और ढाल को मिलेगा खास महत्व, राष्ट्रीय संग्रहालय में होंगे प्रदर्शित

राजधानी दिल्ली में यूनेस्को की ओर से भारत की अध्यक्षता में चल रही धराेहर समिति की बैठक के दौरान एक बड़ी जानकारी यह सामने आई है कि अब लाेग सिनौली में छह साल पहले खोदाई में मिले महत्वपूर्ण पुरावशेष दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में देख सकेंगे।भातर सरकार के फैसले के बाद एएसआइ ने इसे लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी है।

By V K Shukla Edited By: Abhishek Tiwari Updated: Tue, 23 Jul 2024 08:52 AM (IST)
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सिनौली की खोदाई में निकली ढाल। सौजन्य- सोशल मीडिया

वी के शुक्ला, नई दिल्ली। बागपत के सिनौली में खोदाई में मिले रथ, योद्धा की तलवार और ढाल काे खास महत्व मिलेगा ।भारत सरकार ने इन्हें राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित करने का फैसला लिया गया है।।ये पुरावशेष 4000 साल पुराने हैं।

खोदाई में मिली इस खोज को पूर्व वैदिक सभ्यता माना जा रहा है।इसे महाभारत काल से जोड़कर देखा जा रहा है। कुछ साल पहले सिनौली में खोदाई में ये पुरावशेष मिले थे।यहां मिले अन्य पुरावशेष को ग्रेटर नोएडा स्थित धरोहर भवन में प्रदर्शित किया जाएगा। माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक इन पुरावशेष को राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

पीएम ने भी धराेहर समिति की बैठक में किया था जिक्र

पूर्व वैदिक काल से संबंधित मिले साक्ष्यों के कारण भारत सरकार इसे लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी रविवार को धराेहर समिति की बैठक में दुनिया भर से आए अतिथियों के सामने सिनौली की खोदाई में मिले वैदिक काल के साक्ष्यों का प्रमुखता से जिक्र किया है।

2018 में चर्चा में आया था सिनौली

बता दें कि 2018 में सिनौली चर्चा में तब आया था, जब वहां खोदाई का एक और दौर शुरू हुआ था, जिसमें एक शाही शवाधान निकला था।जमीन में दबी शव पेटिकाओं के साथ दो रथ निकले थे। रथों में तांबे का बड़े स्तर पर उपयोग पाया गया है।

इनके पहिए ठोस हैं और तांबे के त्रिकोणीय टुकड़ों से जड़े हुए हैं। रथ के हल्के फ्रेम में गोल लकड़ी से बना घुमावदार चेसिस है। चेसिस में एक लंबा शाफ्ट लगा हुआ है। जोड़ को पतली तांबे की प्लेट से ढका गया है।

सिनौली भारत में रथ के साक्ष्य वाला पहला खोदाई स्थल 

रथ के सामने वाले हिस्से का ऊपरी छोर चालक को रथ चलाते समय स्थिर रहने में मदद के उद्देश्य से तैयार किया गया है।रथ की बनावट से पता चलता है कि ये रथ युद्ध या शिकार के लिए उपयोग में लाए जाते रहे होंगे।रथ पर सारथी के अलावा सवारी के रूप में राजा, महाराजा या योद्धा आदि रहता होगा। सिनौली भारत में रथ के साक्ष्य वाला पहला खोदाई स्थल है।

यहां से यह बात भी सिद्ध होती है कि उस समय में तांबे का उपयोग अधिक होता रहा होगा।यानी ये लोग सम्पन्न थे। एक और बात यह है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता को लेकर भारत से लेकर पाकिस्तान तक में हुई खोदाइयों में परिवहन के साधनों के रूप में बैलगाड़ी के प्रमाण मिलते हैं।

मगर यह पहली बार है कि इसी के समतुल्य एक सभ्यता में रथ का प्रयोग के प्रमाण मिल रहा है।वे यु्द्ध में तलवार, ढाल, हेलमेट और युद्ध के समय उपयोग में लाई जाने वाली महत्वपूर्ण और जरूरी जीचों का इस्तेमाल करते थे।एएसआइ के जानकार कहते हैं कि राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित किए जाने वाले पुरावशेषों के साथ एक सब जानकारी भी प्रदर्शित की जाएगी।

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