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‘लेटर्स फॉर चेंज’ अभियान से जुड़े देशभर के बच्चे, पत्रों के जरिये उठा रहे मुद्दे

बदलाव किसी उम्र का मोहताज नहीं। तभी तो मुंबई की 13 वर्षीय महिका मिश्रा ने अपने एक अनूठे प्रयास से समाज में परिवर्तन लाने का बीड़ा उठाया है। वह बच्चों की आवाज बनी हैं। उन्हें मंच देकर बदलाव लाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 08 Apr 2021 12:01 PM (IST)
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आज देश के तमाम राज्यों के बच्चे 'लेटर्स फॉर चेंज' अभियान का हिस्सा बन चुके हैं।
नई दिल्ली, अंशु सिंह। दिल्ली के संत नगर में रहने वाले अमित कुमार 15 साल के हैं। उन्हें पर्यावरण की काफी फिक्र रहती है। शहर का प्रदूषण परेशान करता है। क्योंकि इससे अस्थमा, कैंसर, टीबी जैसी अनेकानेक बीमारियां हो रही हैं। वह इस बात से खासे चिंतित हैं कि सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ रहा है। लोग धड़ल्ले से गाड़ियां खरीद कर रहे हैं। कई परिवारों में प्रत्येक सदस्य पर एक गाड़ी है। यह दिल्ली के प्रदूषण को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है। ऐसे में अमित का सुझाव है कि अगर लोग हफ्ते में दो दिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करें, तो कुछ हद तक प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है।

अमित ने अपने मन की ये सारी भावनाएं एक पत्र के माध्यम से महिका मिश्रा फाउंडेशन द्वारा चलाए जा रहे ‘लेटर्स फॉर चेंज’ को भेजी। उन्हें उम्मीद थी कि फाउंडेशन उनकी आवाज को अपने प्लेटफॉर्म पर उचित स्थान देगा। यही हुआ भी। अमित के पत्र को फाउंडेशन के फेसबुक एवं इंस्टाग्राम पेज पर देखा जा सकता है। आज इनकी तरह देश के कोने-कोने से बच्चे अलग-अलग मुद्दों व मसलों को पत्र के माध्यम से समाज के बड़े वर्ग व संबंधित संस्थान,अधिकारी व मंच तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।

मोबाइल गेम एडिक्शन से लेकर शिक्षा से जुड़े मुद्दे उठाए: दिल्ली की ही 15 वर्षीय छात्रा कृष्णा गर्ग ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को कुछ समय पूर्व एक पत्र लिखा था,‘मैं देख रही हूं कि मेरे ज्यादातर दोस्त पूरे-पूरे दिन पब्जी एवं ऐसे ही अन्य वीडियो गेम्स खेलते रहते हैं। गेम नहीं खेलते हैं, तो यूट्यूब पर उससे संबंधित वीडियोज देखते हैं। जब मैं उनसे बाहर या छत पर खेलने के लिए कहती हूं, तो वे साफ मना कर देते हैं। यह उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। कई बार तो वे अपनी पढ़ाई से भी समझौता करने लगते हैं। इसलिए गेम आदि को बैन करने के साथ ही बच्चों के स्क्रीन टाइम को भी नियंत्रित किया जाना चाहिए।

एक घंटे से ज्यादा मोबाइल देखने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। आपसे निवेदन है कि इस दिशा में जरूरी कदम उठाएं।'दूसरी ओर दिल्ली के ही 14 वर्षीय स्पर्श बंसल ने केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल के नाम एक पत्र लिखा है, जिसमें वह आग्रह करते हैं कि बच्चों पर परीक्षा के अनावश्यक दबाव को कम किया जाए। माता-पिता को समझाने के लिए वेबिनार आदि कराएं जाएं, ताकि अच्छा या उनके मनमाफिक परफॉर्म न करने या अंक न लाने की स्थिति में बच्चों पर वे दबाव न डालें। क्योंकि इससे कई बार बच्चे गलत कदम तक उठाने को मजबूर हो जाते हैं।

फाउंडेशन की वेबसाइट एवं इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट होते लेटर्स: महिका बताती हैं कि बच्चे हाथ से पत्र लिखकर उन्हें वाट्सएप करते हैं,जिसके बाद उनकी स्क्रूटनी की जाती है और पत्र को लेटर्स फॉर चेंज के वेबसाइट पर पोस्ट कर दिया जाता है। इसके अलावा, इंटरनेट मीडिया के अन्य प्लेटफॉर्म्स पर उन्हें पोस्ट किया जाता है, जिससे कि प्रशासनिक अधिकारी उन्हें पढ़ें व मुद्दे का समाधान निकाला जा सके। इस प्रकार, यह बच्चों का और बच्चों के लिए एक मूवमेंट है। दरअसल, बच्चों के अनेक मसले होते हैं,जिन पर कोई ध्यान नहीं देता। ऐसे में हम उन्हें पत्र लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। आखिर इस अभियान की प्रेरणा कैसे मिली? इस पर महिका बताती हैं कि जब सड़कों पर, ट्रैफिक के बीच बेवजह गाड़ियों के हॉर्न बजते थे, तो थोड़ा गुस्सा आता था। मैंने अपने डैड से यह बात शेयर की, जिन्होंने एक पत्र में अपने विचार लिखने को कहा। मैंने वह लिखा और उसे आनंद महिंद्रा को पोस्ट कर दिया। तब मैं 11 साल की थी। एक दिन वह पत्र एकदम से वायरल हो गया। इस तरह, वर्ष 2019 में शुरुआत हुई ‘लेटर्स फॉर चेंज’ इनिशिएटिव की,जिसका उद्देश्य बच्चों को एक ऐसा मंच देना है, जहां वे अपनी बातें, अपने मुद्दे पत्रों के जरिये शेयर कर सकें।'

बच्चों का, बच्चों के लिए अभियान: महिका की कम उम्र को देखते हुए पिता दुष्यंत उन्हें पूरा तकनीकी एवं प्रशासनिक सहयोग देते हैं। लेकिन अंतिम फैसला उनका ही होता है यानी महिका को अच्छी तरह मालूम होता है कि वह क्या और कैसे करना चाहती हैं। सिर्फ उसके एग्जीक्यूशन में पिता मदद करते हैं। इसके अलावा, कॉलेज स्टूडेंट्स वॉलंटियर के रूप में जुड़े हैं। अनपेड इंटर्नशिप के दौरान ही उन्होंने वेबसाइट डेवलप की। महिका कहती हैं, ‘हम सभी माइक्रोसॉफ्ट टीम्स से एक-दूसरे से जुड़ते हैं। प्लानिंग होती है। कौन-क्या करेगा, इसका निर्णय लिया जाता है। सब बच्चे-युवा काफी उत्साह से काम करते हैं। हमें अलग-अलग भाषाओं में लिखे बच्चों के पत्र मिलते हैं, जिसका ट्रांसलेशन किया जाता है। उन पत्रों को पढ़कर बहुत कुछ जानने को मिलता है कि वे खुद किसी विषय पर क्या सोचते हैं? क्या राय रखते हैं? कई बच्चे समस्याओं के साथ समाधान भी लिख भेजते हैं। मुझे खुशी है कि आज बच्चे विभिन्न मंचों से अपने विचार रख पा रहे हैं।' दुष्यंत के अनुसार, इंटरनेट मीडिया ने बच्चों के सामने विकल्प खोले हैं। लेकिन वही एकमात्र या आखिरी मंच नहीं है। जरूरी यह है कि बच्चों-किशोरों-युवाओं की बातों को सुना जाए,क्योंकि वही देश के भविष्य हैं। हां, बेशक बच्चों के पास मताधिकार नहीं है,लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि उन्हें अभिव्यक्ति की आजादी भी नहीं मिले।

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