Climate Change: आने वाली पीढियों को झेलना होगा भीषण गर्मी और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, ये रिसर्च कर देगी आपको हैरान
Climate Change एक शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन और भीषण गर्मी की रफ्तार को अगर नियंत्रण में नहीं रखा गया तो उसके बुरे प्रभावों को हमारी आने वाली पीढ़ियों तक को झेलना होगा। शोध प्रोसीडिंग्स आफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज (PNAS) में प्रकाशित हुआ है। उन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए जहां तापमान बढ़ने से गर्मी और आर्द्रता का स्तर मानव सीमा से अधिक हो सकता है।
By Jagran NewsEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Wed, 11 Oct 2023 09:04 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। Climate Change: एक नए शोध की मानें तो जलवायु परिवर्तन और भीषण गर्मी की रफ्तार को अगर नियंत्रण में नहीं रखा गया तो उसके बुरे प्रभावों को हमारी आने वाली पीढ़ियों तक को झेलना होगा। शोध प्रोसीडिंग्स आफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज (PNAS) में प्रकाशित हुआ है।
उन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए जहां तापमान बढ़ने से गर्मी और आर्द्रता का स्तर मानव सीमा से अधिक हो सकता है, शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस और 4 डिग्री सेल्सियस के बीच वृद्धि का मॉडल तैयार किया है।
ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि से क्या है खतरा?
इस शोध में पाया गया कि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के साथ, जिन क्षेत्रों में सबसे पहले उमस भरी गर्मी की लहरें अनुभव होंगी और बाद में प्रति वर्ष संचित गर्म घंटों में वृद्धि होगी, वे दुनिया की आबादी की सबसे बड़ी सांद्रता वाले क्षेत्र भी हैं, विशेष रूप से भारत और सिंधु नदी घाटी (जनसंख्या: 2.2 अरब), पूर्वी चीन (जनसंख्या: 1.0 अरब), और उप-सहारा अफ्रीका (जनसंख्या: 0.8 अरब)।इसमें पाया गया कि यदि उत्सर्जन अपने वर्तमान प्रक्षेप पथ पर जारी रहता है, तो मध्यम-आय और निम्न-आय वाले देशों को सबसे अधिक नुकसान होगा। यह दक्षिण और पूर्वी एशिया में बड़ी आबादी को भी दर्शाता है, जो कि पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 4°C अधिक गर्म दुनिया में, आर्द्र परिस्थितियों में क्रमशः लगभग 608 और 190 बिलियन व्यक्ति-घंटे की सीमा से अधिक का अनुभव करने का अनुमान है।
स्वास्थ्य समस्याओं का भी खतरा
इतना ही नहीं, बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण होने वाली अत्यधिक गर्मी और आर्द्रता अरबों लोगों को गर्मी से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे में डाल सकती है।इस शोध को किया है पेन स्टेट कालेज आफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट, पर्ड्यू यूनिवर्सिटी कालेज आफ साइंसेज और पर्ड्यू इंस्टीट्यूट फार आ ससटेनेबल फ्युचर के शोधकर्ताओं ने। इन्होंने चेतावनी दी है कि यदि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाता है, तो इसका दुनिया भर में मानव स्वास्थ्य पर तेजी से विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
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