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Climate Change: मानसून पर जलवायु परिवर्तन की मार, विश्लेषण में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य

भारत में पिछले पांच वर्षों में सामान्य से लेकर अधिशेष मानसूनी वर्षा देखी गई है लेकिन जलवायु विशेषज्ञों का अनुमान है कि मानसून के प्रदर्शन की परवाह किए बिना चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। ये सीधे तौर पर बढ़ते वैश्विक तापमान और परिवर्तित वर्षा पैटर्न से जुड़ी हैं। मौसम की घटनाओं की बढ़ती तीव्रता जैसा कि हिमाचल प्रदेश और अन्य उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में देखा गया है।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Wed, 23 Aug 2023 04:00 AM (IST)
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Climate Change: मानसून पर जलवायु परिवर्तन की मार, विश्लेषण में सामने आए चौंकाने वाले तथ्य
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। इस साल आधे से अधिक मानसून सीजन पार हो चुका है।आंकड़ों और वर्षा की मात्रा के मामले में यह एक सामान्य मानसून सीज़न ही प्रतीत हो रहा है। जुलाई के अंत तक तो देशभर में कुल वर्षा सामान्य से भी अधिक हो गई थी। एक जून से 31 जुलाई के बीच अपेक्षित 445.8 मिमी की तुलना में 467 मिमी बरसात के साथ पांच प्रतिशत की अधिकता दर्ज की गई। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो इस मानसून पर जलवायु परिवर्तन की छाप पहले से कहीं स्पष्ट और विघटनकारी हो गई है। महीनों में बात करें तो जून और जुलाई का हाल कुछ ऐसा ही रहा।

जून 2023: असामान्य उमस भरी गर्मी

देशभर के कुछ हिस्सों में अप्रत्याशित लू देखी गई। यह असामान्य घटना विशेष रूप से उन क्षेत्रों में महसूस की गई जहां मानसून देरी से आया था। क्लाइमेट सेंट्रल के एक विश्लेषण में सामने आया है कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण 14-16 जून तक उत्तर प्रदेश में लगातार तीन दिन गर्मी की तीव्रता दोगुनी थी। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 16 जून को तापमान 42.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, जिससे 34 लोगों की जान चली गई। बिहार में भी गर्मी का समान प्रभाव महसूस किया गया, जिसे कम करने के लिए स्कूल एवं कालेज बंद करने पड़ गए।

जुलाई 2023: भारी वर्षा

जुलाई की शुरुआत भारी वर्षा के साथ हुई, जिससे भारत के कई हिस्सों में बरसात की कमी पूरी हो गई। पानी के इस प्रवाह ने चरम मौसम की घटनाओं का एक झरना सामने ला दिया, जिससे अचानक बाढ़, भूस्खलन और भूस्खलन शुरू हो गया। पश्चिमी हिमालय एवं पड़ोसी उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र आठ से 13 जुलाई तक अत्यधिक भारी वर्षा की घटनाओं से प्रभावित हुए। हिमाचल प्रदेश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा, एक सप्ताह में 50 से अधिक भूस्खलन हुए। 18-28 जुलाई तक दस दिन मूसलाधार वर्षा ने पश्चिमी तट पर कहर बरपाया, जिसका प्रभाव गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक जैसे राज्यों पर पड़ा। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को भी 26 से 28 जुलाई तक बाढ़ का सामना करना पड़ा। जुलाई के महीने में अभूतपूर्व संख्या में भारी से बहुत भारी वर्षा की घटनाएं देखी गई। 1113 स्टेशनों पर भारी वर्षा और 205 स्टेशनों पर अत्यधिक भारी बरसात देखी गई।

आगे की चुनौतियां

भारत में पिछले पांच वर्षों में सामान्य से लेकर अधिशेष मानसूनी वर्षा देखी गई है, लेकिन जलवायु विशेषज्ञों का अनुमान है कि मानसून के प्रदर्शन की परवाह किए बिना चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। ये सीधे तौर पर बढ़ते वैश्विक तापमान और परिवर्तित वर्षा पैटर्न से जुड़ी हैं। मौसम की घटनाओं की बढ़ती तीव्रता, जैसा कि हिमाचल प्रदेश और अन्य उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में देखा गया है, देश के मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रेखांकित करती है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और तीव्र होगा, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि बाढ़, लू और चक्रवात जैसी चरम घटनाएं अधिक बार और गंभीर हो जाएंगी। इन घटनाओं से बढ़ते जोखिमों से निपटने के लिए तत्काल जलवायु कार्रवाई, अनुकूलन उपाय और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस कटौती पर सहयोग आवश्यक है।

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