केएमपी और केजीपी मार्ग अवरुद्ध करने से बढ़ेगा उद्योगों का संकट, परेशान होंगे दिल्ली-एनसीआर के लोग
Farmer Protests कुछ युवा किसानों द्वारा मंगलवार कुंडली-गाजियाबाद-पलवल (केजीपी) एक्सप्रेस वे तो बुधवार कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस वे को बंद कर दिया गया। अब इन दोनों ही मार्गो से राजमार्ग नंबर-44 पर उतरकर दिल्ली की ओर नहीं जाया जा सकता।
By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 24 Dec 2020 09:45 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। एक्सप्रेस वे बंद होने से टूट जाएगा हरियाणा सहित कई राज्यों का दिल्ली से संपर्कराज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : केंद्र सरकार से बातचीत के अभाव में अब किसान आंदोलन अलग दिशा की ओर बढ़ रहा है। कुछ युवा किसानों द्वारा मंगलवार कुंडली-गाजियाबाद-पलवल (केजीपी) एक्सप्रेस वे तो बुधवार कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेस वे को बंद कर दिया गया। अब इन दोनों ही मार्गो से राजमार्ग नंबर-44 पर उतरकर दिल्ली की ओर नहीं जाया जा सकता। इन मार्गों को बंद करने और अंबाला में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का काफिला रोकने की घटना इसका ताजा उदाहरण हैं। इन घटनाओं और आए दिन कुंडली-मानेसर-पलवल और कुंडली-गाजियाबाद-पलवल एक्सप्रेस-वे को किसी न किसी रूप में बंद करने का असर उद्योगों के उत्पादन तक पहुंच रहा है।
असल में एक दिन भी राष्ट्रीय राजमार्ग की कनेक्टिविटी बंद होने से मालवाहक वाहनों का आवागमन कई दिनों तक प्रभावित होता है। उद्यमियों का कहना है कि किसान आंदोलन के चलते केएमपी और केजीपी पर यातायात की सुरक्षा के लिए कड़े उपाय किए जाने चाहिए।
गुरुग्राम इंडस्टि्रयल एसोसिएशन के प्रधान जेएन मंगला का कहना है कि किसानों को केंद्र सरकार से बातचीत का रास्ता बंद नहीं करना चाहिए था। मंगला के अनुसार किसान आंदोलन अब जल्द खत्म होना चाहिए क्योंकि इसका असर उत्तर भारत के प्रमुख राज्यों पर पड़ने लगा है। हरियाणा सहित चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर तक से दिल्ली का संपर्क टूट रहा है।
उत्तेजित युवा किसानों के सामने असहाय हैं आंदोलनकारी
यूपी गेट पर भाकियू नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में चल रहे किसान आंदोलन को छोड़ दें तो हरियाणा-दिल्ली सीमा पर युवा किसान आए दिन कोई न कोई ऐसा काम करते हैं जिसके सामने आंदोलनकारी किसान भी असहाय नजर आते हैं। युवा किसान कभी किसी रास्ते को बंद कर देते हैं तो कभी सरकार के खिलाफ अनर्गल नारेबाजी पर उतर आते हैं। कई बार आंदोलन का उग्र रूप दिखाई देता है।
कृषि कानून की खामियों को सबसे पहले भारतीय किसान संघ ने सरकार के समक्ष रखा था। अब किसान आंदोलित हैं। रास्ता रोककर बैठे हैं। सरकार और किसान भी अपनी जिद पर अड़े हैं और दोनों के बीच गतिरोध कायम है। इससे आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है। रास्ते बंद होने के कारण आम लोगों की परेशानी बढ़ने लगी है। जिस तरह से आंदोलन बीच-बीच में उग्र हो जाता है और आवागमन के छोटे-छोटे रास्ते भी बंद कर दिए जाते हैं, इससे अब लोगों में सरकार और किसानों के प्रति भी रोष पनपने लगा है।
हमें शंका है कि कहीं इससे टकराव की स्थिति न बन जाए। इसका सरकार और प्रशासन को ध्यान रखना चाहिए। किसानों को भी इस बारे में सोचना चाहिए और आवागमन का कोई रास्ता देना चाहिए। - वीरेंद्र बढ़ खालसा।भारतीय किसान संघमैं भी किसान का बेटा हूं। हमने भी अपनी जमीन इंडस्ट्री लगाने के बाद अर्धबटाई पर दी हुई है। हमारी जमीन तो आज तक किसी ने नहीं हड़पी। असल में किसान आंदोलन को दूसरा रूप दिया जा रहा है। केंद्र सरकार की इसमें कोई गलती नहीं है। किसानों को बातचीत का रास्ता बंद नहीं करना चाहिए। बातचीत के बिना किसान अपनी बात कैसे मनवा पाएंगे। यह आंदोलन हिंसक रूप लेने की ओर है। इसलिए जो किसान संगठन फिलहाल आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, वे केएमपी-केजीपी या फिर राजमार्ग नंबर-44 को पूरी तरह खुलवा दें ताकि आम लोगों की भावनाएं आंदोलन के प्रति सकारात्मक रहें। किसान राजनीतिक दलों के बहकावे में आकर अपना नुकसान नहीं करें। ये कृषि कानून किसानों का जीवन बदल देंगे। - जीएस त्यागी,प्रधान, फरीदाबाद स्माल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशनCoronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
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