जाने-माने कॉमेडियन एहसान कुरैशी ने अब हलाला को लेकर कही बड़ी बात
औरत के बिना मर्द का जीवन ही क्या है? महिला को खिलौना मानने वाले पुरुष कैसे अपना जीवन खुशहाल बना सकते हैं?
By JP YadavEdited By: Updated: Tue, 24 Jul 2018 12:10 PM (IST)
फरीदाबाद (जेेननएन)। जाने-माने कॉमेडियन और फिल्म अभिनेता एहसान कुरैशी फरीदाबाद में दैनिक जागरण के दिल्ली-हरियाणा संस्करण की 28वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित कवि सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे थे। एहसान कुरैशी ने इस कवि सम्मेलन में मुस्लिम समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर अलग अंदाज में अपनी राय व्यक्त की। तीन तलाक, हलाला से लेकर उन्होंने पाकिस्तान पर भी अपना बेबाक नजरिया पेश किया। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता बिजेंद्र बंसल ने एहसान कुरैशी से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के खास अंश:
1. मौजूदा परिवेश में तीन तलाक पर छिड़ी बहस को आप किस रूप में देखते हैं? -पहले मैं एक सवाल पूछता हूं कि जब निकाह करना होता है, हम क्षमता के अनुसार दस-बीस से लेकर हजार लोग ले जाते हैं, मगर तलाक के समय इन्हें भूल जाते हैं, ऐसा क्यों? मेरी बात को अन्यथा न लिया जाए मगर क्या यह हमारी कोई बपौती है? निकाह के समय हम एक वकील, दो गवाह रखते हैं तो फिर तलाक अकेले में क्यों? मौजूदा तीन तलाक का मतलब एक झटके में किसी की जिंदगी तबाह करने जैसा है। टेलीफोन पर तीन तलाक जैसी घटनाओं को तो मैं अपने निजी स्वार्थ के लिए इस्लाम को बदनाम करने वाला मानता हूं।
2. हलाला को मुस्लिम महिलाएं सिरे से खारिज कर रही हैं। आप क्या सोचते हैं? -मेरा मानना है कि हलाला के जरिये महिला से ज्यादा पुरुष को सजा मिलती है। औरत के बिना मर्द का जीवन ही क्या है? महिला को खिलौना मानने वाले पुरुष कैसे अपना जीवन खुशहाल बना सकते हैं? मेरे सामने एक ऐसा उदाहरण बताएं, जिसमें हलाला से प्रभावित परिवार के पुरुष खुशहाल रह रहे हों? यह एक कुरीति है, जिसका महिलाओं से पहले पुरुष समाज को विरोध करना चाहिए।
3. अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड प्रत्येक जिला में शरीयत अदालत खोलने की बात क्यों कर रहा है? -सही मायनों में शरीयत अदालतें खाप पंचायतों जैसी हैं। इनमें जमीन-जायदाद जैसे पंचायती मामले सुलझने चाहिए। शरीयत में मजहबी मामले ले जाना ठीक नहीं। हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे हमारा भारत कमजोर हो।
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