चार दशकों में बढ़ा कंक्रीट का जंगल, हीट आईलैंड बनी दिल्ली; तापमान बढ़ने के चलते करना होगा घर की बनावट में बदलाव
Climate Change News राजधानी में गर्मी इसी साल एकाएक नहीं बढ़ी है बल्कि पिछले चार दशकों के दौरान इसमें निरंतर इजाफा हो रहा। 1980 से 2023 के दौरान बढ़ी इस गर्मी की प्रमुख वजह बढ़ती आबादी और उसकी जरूरतों के लिए हुआ निर्माण कार्य है। वर्ष 1987 सबसे गर्म साल था जब सालाना औसत तापमान 32.78 डिग्री सेल्सियस रहा था।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। राजधानी में गर्मी इसी साल एकाएक नहीं बढ़ी है बल्कि पिछले चार दशकों के दौरान इसमें निरंतर इजाफा हो रहा। 1980 से 2023 के दौरान बढ़ी इस गर्मी की प्रमुख वजह बढ़ती आबादी और उसकी जरूरतों के लिए हुआ निर्माण कार्य है। वर्ष 1987 सबसे गर्म साल था, जब सालाना औसत तापमान 32.78 डिग्री सेल्सियस रहा था।
सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने अपनी एक पूर्व रिपोर्ट “स्वैल्ट्रिंग नाइट्स: डीकोडिंग अर्बन हीट स्ट्रेस इन दिल्ली” में बताया है कि दिल्ली में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के चलते मौसम तेजी से बदल रहा है। तापमान ही नहीं, वातावरण में मौजूद नमी में भी तेजी से इजाफा हो रहा है।
पहले के मुकाबले ज्यादा गर्म हुआ शहर
अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन ने शहर को पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा गर्म और नम बना दिया है। इसमें बताया गया है कि दिल्ली में गर्मियों के सीजन में बदलाव का अनुभव हो रहा है।
दिल्ली में बढ़ा कंक्रीट का जंगल
दरअसल, पिछले चार दशकों में दिल्ली में कंक्रीट का जंगल भी बढ़ा है, जो अर्बन हीट आईलैंड प्रभाव में भी इजाफा कर रहा है। सन 2000 के बाद दिल्ली में तेजी से विकास कार्य हुए हैं। निर्माण कार्योँ में इजाफा हुआ। खाली पड़ी जमीन पर फ्लैटों का निर्माण हुआ है तो हरित क्षेत्र बढ़ाने के नाम पर भी झाड़ियां ज्यादा लगाई गई, वृक्ष कम।
सार्वजनिक परिवहन सेवा बेहतर जरूरी
सार्वजनिक परिवहन सेवा बेहतर न होने के कारण सड़कों पर वाहनों की संख्या भी काफी बढ़ गई है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसी के चलते शहर की खुद को ठंडा कर पाने की क्षमता में 12 से 21 प्रतिशत की कमी आई है।
1980 से 2022 तक सर्वाधिक गर्म सालों का सालाना औसत तापमान (डिग्री सेल्सियस में)
वर्ष तापमान
1987 - 32.73
2002 - 32.14
2006 - 32.30
2009 - 32.35
2010 - 32.09
2016 - 32.38
2017 - 32.17
2018 - 32.20
2022 - 32.01
2011 में दिल्ली की जनसंख्या 1.38 करोड़ थी जो अब 2.05 करोड़ आंकी गई है। इसकी बसावट के लिए डीडीए ने जहां द्वारका, नरेला और रोहिणी में हजारों फ्लैट बनाए हैं तो 2014 में 1731 अनधिकृत कालोनियों की संख्या अब करीब दो हजार तक पहुंच गई।
2011 में दिल्ली में वाहनों की संख्या करीब 80 लाख थी। हर साल इसमें तीन से चार प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। वर्तमान में यह संख्या करीब 1.10 करोड़ तक पहुंच चुकी है। करीब 15 लाख वाहन रोजाना एनसीआर से भी दिल्ली में आते हैं।
फ्लोर या फ्लैट तैयार करते समय भी रखें यह ध्यान...
शहर की भौगोलिक स्थिति और स्थानीय मौसम को भी ध्यान में रखना जरूरी है। खिड़कियों को ओपन स्पेस की तरफ बनाना चाहिए। बिल्डिंग को इस तरह से डिजाइन किया जाना जाए कि अधिक से अधिक फ्लैटों को ओपन स्पेस की तरफ खिड़कियां मिलें। खिड़कियों के साइज भी कमरों के साइज के हिसाब से तय करने होंगे ताकि कमरों के अंदर की हवा ताजी हवा से बदल सके।
शहरों में बढ़ती गर्मी का प्रबंधन करने के लिए हमें इससे जुड़े रुझानों को समझना और ध्यान में रखना जरूरी है। इसमें गर्मी के तनाव को कम करने के लिए इमारतों के बेहतर डिजाइन और सामग्री का चयन भी शामिल है।
दिल्ली को सिर्फ कागजों पर नहीं बल्कि जमीनी समाधानों की जरूरत है। जल स्रोतों और हरित क्षेत्र में भी इजाफा करने की जरूरत है। साथ ही वाहनों में कमी, बिल्डिंग के बेहतर निर्माण, वेंटिलेशन, बिजली की खपत में गिरावट जैसे उपाय जरूरी हैं। -अनुमिता राय चौधरी, कार्यकारी निदेशक, सीएसई।