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दिल्‍ली के दिल में बसा Connaught Place इन खास बाजारों के बगैर है अधूरा, पढ़ें रोचक स्‍टोरी

रिवोली सिनेमा और शिव मंदिर के बीच स्थित मोहन सिंह प्लेस का जींस से पुराना नाता रहा है। ऐसा नहीं है कि यहां और कुछ नहीं मिलता। यहां के रेस्त्रां में आप भोजन का लुत्फ उठा सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 21 Sep 2019 12:27 PM (IST)
दिल्‍ली के दिल में बसा Connaught Place इन खास बाजारों के बगैर है अधूरा, पढ़ें रोचक स्‍टोरी
विवेक शुक्ला। बेशक कनॉट प्लेस दिल्ली की पहचान है, पर इसे समृद्ध करने में इसके आसपास के बाजारों का भी भरपूर योगदान रहा है। शंकर मार्केट, मोहन सिंह प्लेस, पालिका बाजार, जनपथ ये सब बाजार इसके आसपास ही हैं। इस वर्ष शंकर मार्केट अपनी स्थापना के 55 साल पूरे कर रहा है, जबकि मोहन सिंह प्लेस और पालिका बाजार क्रमश: 50 और 40 साल। शंकर मार्केट तो महिलाओं की पसंदीदा मार्केट रही है। सलवार-कमीज, साड़ी या कुर्ते की खरीदारी करनी हो तो महिलाएं यहां आना पसंद करती हैं। सात ब्लॉकों में बंटी शंकर मार्केट को 1964 में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्लयूडी) ने बनाया था। इसके चार और पांच नंबर ब्लॉक तो एक तरह से आधी आबादी के लिए ही आरक्षित है।

शब्दों के शैदाई भी कम नहीं

रामगोपाल शर्मा एंड संस नाम की दुकान उन लोगों के लिए किसी खजाने से कम नहीं जो पुस्तकों और शब्दों के प्रेमी है। प्रेमचंद, श्रीलाल शुक्ल, गुलशन नंदा, डेनियल स्टील, जेफरी, आर्चर, नोरा रोर्बोट, एल्फ्रेड और हिचकाक जैसे लोकप्रिय उपन्यासकारों की कृतियां यहां सहज ही उपलब्ध हैं। कुछ पुरानी पत्रिकाएं भी यहां मिल जाएंगी। यहां पर मिल्स एंड बून की पूरी सीरीज मौजूद है। इन किताबों, उपन्यासों और पत्रिकाओं को अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो उसकी पूरी कीमत देकर आप एक हफ्ते के लिए उन्हें घर ले जा सकते हैं। एक सप्ताह बाद उसे लौटाने पर आपको 90 फीसद रकम वापस वापस मिल जाएगी। दिल्ली-एनसीआर के हजारों पाठक यहां से किताबें पढ़ने के लिए ले जाते हैं।

लाजवाब है स्ट्रीट फूड

शंकर मार्केट में जाकर अगर आपने गोलगप्पे नहीं खाए तो समझो शॉपिंग अधूरी है। यहां एक से बढ़कर एक लाजवाब स्ट्रीट फूड का सुस्वाद ले सकते हैं। टिक्की, पापड़ी और आलू चाट तो बेमिसाल है। महिलाएं खरीदारी करने के बाद इनका आनंद लेना कभी नहीं भूलतीं। दिन भर घूमने के बाद आप कुछ हैवी खाने के मूड में हैं तो भी आप यहां बेफिक्र रहें। सुपर बाजार में राजमा-चावल, छोले-भटूरे, कढ़ी-चावल खा सकते हैं। 60-70 रुपये में भरपेट का आनंद ले सकेंगे। अगर कुछ मीठा खाने का मन करे तो कुल्फी, रबड़ी और फलूदा चख कर सकते हैं। अब तो यहां कूरियर कंपनियों के भी कई दफ्तर खुल गए हैं।

मोहन सिंह प्लेस में साहित्यिक चर्चा

रिवोली सिनेमा और शिव मंदिर के बीच स्थित मोहन सिंह प्लेस का जींस से पुराना नाता रहा है। ऐसा नहीं है कि यहां और कुछ नहीं मिलता। यहां के रेस्त्रां में आप निरामिष भोजन का लुत्फ उठा सकते हैं। लेकिन जींस की यहां कम से कम दो दर्जन दुकानें हैं। इस मार्केट का नाम सरदार मोहन सिंह के नाम पर रखा गया था। वे देश के बंटवारे के बाद सरहद के उस पार से दिल्ली आए थे। छोटा-मोटा कारोबार करने के बाद उन्होंने यहां कोला-कोला की फैक्ट्री लगाई साथ ही शरणार्थियों के पुनर्वास में लगे रहे। उन्हीं के प्रयासों से सेना से सेवानिवृत्त हुए अफसरों के लिए साउथ दिल्ली में डिफेंस कॉलोनी स्थापित हुई थी। उनका सिख और पंजाबी समाज में विशेष सम्मान था। एक सिलेंडर विस्फोट में उनकी मृत्यु हो गई। उनके पुत्र चरणजीत सिंह 1980 में दक्षिणी दिल्ली सीट से कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे।

जब कॉफी हाउस शुरू हुआ तब मोहन सिंह प्लेस की किस्मत खुली और इसकी तीसरी मंजिल पर कॉफी हाउस शुरू हुआ। इमरजेंसी के दौर में कनॉट प्लेस में चल रहे कॉफी हाउस को तोड़कर पालिका बाजार बना दिया गया और कॉफी हाउस मोहन सिंह प्लेस में शिफ्ट हो गया। इससे मोहन सिंह प्लेस भी गुलजार रहने लगा। विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर, भीष्म साहनी जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ-साथ पंकज विष्ट, बलराम, प्रताप सहगल, रूप सिंह चंदेल जैसे उभरते हुए साहित्यकार भी यहां पहुंचने लगे। फिर तो साहित्य, समाज और सामयिक बिंदुओं पर कॉफी की प्याली संग चर्चा का बेहतरीन ठिकाना बन गया। इसकी खुली छत पर किशन कत्याल नाम के शख्स भी लंबे समय से आ रहे हैं। उन्हें देखते ही आसपास के कौवे धड़धड़ाते हुए चले आते हैं। दरअसल वे इन्हें एक अरसे से अंडा भुजिया जो खिलाते आ रहे हैं।

क्यों खोला पालिका बाजार

देश में 1975 में इमरजेंसी लगने के बाद कनॉट प्लेस में एक और बाजार खोलने का निर्णय हुआ। इस फैसले से बहुत से जानकार खुश थे, क्योंकि यहां पर पहले से ही जनपथ, मोहन सिंह प्लेस, शंकर मार्केट और सुपर बाजार थे ही। पालिका बाजार का निर्माण एनडीएमसी ने किया था। इधर सबसे पहले पंचकुइयां रोड के दुकानदारों, जिनकी दुकानें कनॉट प्लेस से सुचेता कृपलानी अस्पताल तक थीं को जगह दी गई थी। जहां पर पालिका बाजार बना, वहां पर थियेटर कम्युनिकेशन बिल्डिंग थी। इसमें बहुत स्वयंसेवी संस्थाओं के दफ्तर चलते थे। इसके साथ ही कॉफी हाउस भी था। 

पालिका में सैलानियों की भीड़

चूंकि ये भूमिगत और वातानुकूलित है, इसलिए दिल्ली वाले यहां आकर घंटों शॉपिंग के साथ आराम भी करते हैं। पालिका 1978 के अंत में बनकर तैयार हुआ था और इसकी विधिवत शुरुआत 1979 में हुई थी। यानी इसने चालीस सालों का सफर पूरा कर लिया है। पालिका बाजार ने सस्ते आयातित इलेक्ट्रॉनिक सामान, रेडीमेड कपड़ों और फुटवियर की सफल मार्केट के रूप में तुरंत अपनी पहचान बना ली थी। लेकिन बीते कुछ सालों में स्थानीय लोगों के बीच इसका आकर्षण कुछ कम हुआ है, पर सैलानियों की भीड़ अभी भी लगी रहती है। आज जहां पालिका बाजार स्थित है वहां पर कभी कॉफी हाउस हुआ करता था। जहां पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, राम मनोहर लोहिया, इंद्र कुमार गुजराल, मधु लिमये सरीखी राजनीतिक हस्तियों से लेकर लेखक, कवि, पत्रकार, मजदूर और छात्र घंटों बैठकर देश-दुनिया के मुद्दों पर बातें करते थे। तब पांच रुपये में उम्दा डोसा और कॉफी मिल जाया करती थी। पालिका बाजार के पास जहां आज पार्किंग है, वहां पर रेंबल नाम का एक बेहद खूबसूरत ओपन एयर रेस्त्रां था। उसमें विदेशी टूरिस्ट बड़ी संख्या में पहुंचते थे।

लेखक और नई दिल्ली नगर पालिका (एनडीएमसी) के पूर्व निदेशक मदन थपलियाल बताते हैं कि उस दौर में दिल्ली में कॉफी हाउस कल्चर जिंदा था। पालिका बाजार के बनने के बाद पुराने कॉफी हाउस को मोहन सिंह प्लेस में स्पेस मिला, पर उसमें पहले वाली बात कभी नहीं आई।

[लेखक व इतिहासकार]

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