Court News: 11 साल पहले झगड़ा, सात साल चली सुनवाई, अब हुए दोषी करार, 10 अक्टूबर को सजा पर होगी बहस
Court News त्रिलोकपुरी ब्लाक-29 में रहने वाले सुनील अपने घर पर दोस्त सूरज के साथ तीन मई 2011 को रात में शराब पी रहे थे। तभी पड़ोसी रवि अपने साथी भीमा और मुनेश के साथ उनके पास पहुंच कर कहने लगा कि शराब पिलाओ।
By JagranEdited By: Vinay Kumar TiwariUpdated: Fri, 30 Sep 2022 10:20 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। Court News: ग्यारह साल पहले मयूर विहार थाना क्षेत्र के त्रिलोकपुरी में दो लोगों पर नुकीली चीज से जानलेवा हमला हुआ था, इस मामले में अब कड़कड़डूमा कोर्ट ने तीन आरोपितों को हत्या का प्रयास करने के लिए दोषी ठहराया है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश दीपाली शर्मा ने आदेश में कहा कि पीड़ितों को लगी चोट और तथ्यों को देखने से स्पष्ट है कि दोषियों ने मारने के लिए समान मंशा से हमला किया था। इस मामले में सजा पर बहस दस अक्टूबर को होगी।
त्रिलोकपुरी ब्लाक-29 में रहने वाले सुनील अपने घर पर दोस्त सूरज के साथ तीन मई 2011 को रात में शराब पी रहे थे। तभी पड़ोसी रवि अपने साथी भीमा और मुनेश के साथ उनके पास पहुंच कर कहने लगा कि शराब पिलाओ।
सुनील के मना करने पर रवि और उसके दोनों साथी गुस्सा हो गए। तीनों ने मिलकर सुनील और सूरज से हाथापाई शुरू कर दी और किसी नुकीली चीज से हमला कर दिया था। दोनों को लहूलुहान करने के बाद तीनों हमलावर फरार हो गए थे। पुलिस ने पीड़ित सुनील की शिकायत पर हत्या के प्रयास के आरोप में प्राथमिकी की थी। वारदात के 12 दिन बाद इन आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
कोर्ट में सुनवाई होने पर आरोपितों ने खुद के निर्दोष होने का दावा करते हुए आरोप लगाया था कि उनको झूठे मामले में फंसाया गया है, लेकिन अपनी बात के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं रखा। कोर्ट ने तथ्यों और गवाहों के बयान के आधार पर निर्णय सुनाते हुए आरोपित रवि, भीमा और मुनेश को हत्या के प्रयास का दोषी ठहराया। कोर्ट ने माना कि तीनों ने समान मंशा से पीड़ितों को मारने के लिए हमला कियाथा।
सात साल से ज्यादा सेशन कोर्ट में चली सुनवाई हत्या के प्रयास के इस मामले में पुलिस जांच से लेकर सुनवाई पूरी होने तक ज्यादा समय लगा। वर्ष 2012 में पुलिस ने आरोपपत्र दंडाधिकारी के कोर्ट में दाखिल किया था। इस कोर्ट में सुनवाई के बाद जनवरी 2015 में मामले को सेशन कोर्ट में भेजा गया। सेशन कोर्ट में सात साल सात माह का वक्त निर्णय में लगा।
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