'वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष होती हैं 33 हजार मौतें', CPCB ने लैंसेट अध्ययन पर उठाए सवाल
सीपीसीबी ने एनजीटी में लैंसेट अध्ययन के निष्कर्षों का विरोध किया है जिसमें दावा किया गया था कि खराब वायु गुणवत्ता ने 10 प्रमुख भारतीय शहरों में मृत्यु दर को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। सीपीसीबी ने अध्ययन के आंकड़ों को सटीक न बताते हुए कहा कि मौतों के लिए अकेले प्रदूषण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एनजीटी में लेंसेट अध्ययन के निष्कर्षों का विरोध किया है। इस अध्ययन में दावा किया गया था कि खराब वायु गुणवत्ता ने 10 प्रमुख भारतीय शहरों में मृत्यु दर को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
सीपीसीबी ने और क्या कहा...
अध्ययन के आंकड़ों को सटीक न बताते हुए सीपीसीबी ने कहा कि मौतों के लिए अकेले प्रदूषण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और इसमें प्रयुक्त आंकड़े ठीक नहीं है। एनजीटी ने एक समाचार पत्र में प्रकाशित अध्ययन का स्वत: संज्ञान लिया था, जिसमें कहा गया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों से अधिक वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 33,000 मौतें होती हैं।
इन शहरों को किया गया शामिल
अध्ययन में दिल्ली, अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी शहरों को शामिल किया गया था। सीपीसीबी ने चार नवंबर को दिए अपने जवाब में कहा कि अध्ययन में 2008 से 2020 के बीच देश भर में एक वर्ग किलोमीटर स्थानिक (स्पेटिकल) सूक्ष्मकणों पर दैनिक औसत पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 सांद्रता का विश्लेषण किया गया है।
इसमें 10 शहरों के प्रत्येक नगर निगम से प्राप्त मृत्यु दर के ब्यौरे का भी उपयोग किया गया है। सीपीसीबी की रिपोर्ट में दावा किया गया कि अध्ययन का निष्कर्ष है कि भारत में पीएम 2.5 के संपर्क से मृत्यु का उच्च जोखिम जुड़ा हुआ है। स्थानीय स्तर पर उत्पन्न वायु प्रदूषकों के लिए ये संबंध अधिक मजबूत थे।
हालांकि, अध्ययन की अपनी सीमाएं हैंज। उसने दावा किया कि मृत्यु के कारण संबंधी आंकड़ों के अभाव में कई बार अनुमान लगाया जाता है। इसलिए, मौतों को केवल वायु प्रदूषण के कारण नहीं माना जा सकता और इससे सही तुलना नहीं हो सकती है।
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