अनुसूचित जाति और जनजाति में आरक्षण के लिए उपवर्गीकरण पर एकमत नहीं दलित चिंतक, विद्वानों ने दिए कई सामयिक तर्क
जागरण संवादी में ‘दलित संविधान और आरक्षण’ विषय पर आयोजित सत्र में मंच के साथ ही श्रोता भी उत्साहित थे। मंच पर कई बार प्रो. विवेक कुमार व वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी के बीच तीखी बहस हुई। कई श्रोता भी बीच-बीच में खड़े होकर विवेक कुमार की बातों का समर्थन कर रहे थे। उन्होंने जय भीम के नारे भी लगाए।
संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में उपवर्गीकरण को लेकर दलित चिंतक एकमत नहीं हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विवेक कुमार और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन ने इसका विरोध किया है। वहीं, जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान झूंसी (प्रयागराज) के निदेशक प्रोफेसर बदरी नारायण ने इसका समर्थन करते हुए कहा, उपवर्गीकरण होगा, इसे कोई रोक नहीं सकता है।
जागरण संवादी में ‘दलित, संविधान और आरक्षण’ विषय पर आयोजित सत्र में मंच के साथ ही श्रोता भी उत्साहित थे। मंच पर कई बार प्रो. विवेक कुमार व वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी के बीच तीखी बहस हुई। कई श्रोता भी बीच-बीच में खड़े होकर विवेक कुमार की बातों का समर्थन कर रहे थे। उन्होंने जय भीम के नारे भी लगाए। जवाब में अन्य छात्रों ने जय श्रीराम का उद्घोष किया।
सरकार को आरक्षित पदों को लेकर श्वेतपत्र लाना चाहिए: विवेक कुमार
विवेक कुमार ने कहा, "आरक्षण को गरीबी उन्मूलन से जोड़ना अनुचित है। यह अधिकारों से वंचित लोगों को सत्ता के सभी संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व देने का माध्यम है, लेकिन आज तक यह नहीं मिला। सरकार को आरक्षित पदों को लेकर श्वेतपत्र लाना चाहिए। आरक्षण को लेकर अमेरिका में दिए राहुल गांधी के बयान की उन्होंने आलोचना की। उन्होंने कहा, "पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी आरक्षण का विरोध किया था।"
संविधान में अस्पृश्यता उन्मूलन का प्रावधान: प्रो. श्योराज सिंह
प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन ने कहा, "संविधान में अस्पृश्यता उन्मूलन का प्रविधान है। कानूनी रूप से इसका निवारण तो हुआ, लेकिन व्यावहारिक रूप से नहीं। मानसिक और बौद्धिक अस्पृश्यता के नाम पर अनुसूचित जाति को अवसर से वंचित किया जा रहा है। संविधान में सामाजिक कल्याण की बात तो है, लेकिन इसे लागू करने वालों में वंचित वर्ग के शामिल नहीं होने से नकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। आरक्षण में उपवर्गीकरण व क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इसका उदाहरण है।"
अनुसूचित जातियों में उपवर्गीकरण सामयिक विषय: प्रो. बदरी नारायण
प्रो. बदरी नारायण ने कहा कि भारत में अनुसूचित जातियों में उपवर्गीकरण सामयिक विषय है। कुछ जातियों को ही आरक्षण का लाभ मिल रहा है। कई जातियां पीछे छूट गई हैं। इन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। अनुसूचित जाति में कई जातियां इस वर्ग की अन्य जातियों को अस्पृश्य मानती हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए उपवर्गीकरण जरूरी है।
आरक्षण को गरीबी उन्मूलन से जोड़ना अनुचित है। यह अधिकारों से वंचित लोगों को सत्ता के सभी संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व देने का माध्यम है, लेकिन आज तक यह नहीं मिला। - प्रो. विवेक कुमार
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