Blood Cancer की जांच के लिए दिल्ली AIIMS ने की नए बायो मार्कर की पहचान, 200 मरीजों के सैंपल पर किया शोध
ब्लड कैंसर की बीमारी एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) की पहचान के लिए एम्स के डॉक्टरों ने एक नए बायो मार्कर आइजीएफ2बीपी1 की पहचान की है। मरीजों के ब्लड या बोन मैरो के सैंपल में इस बायो मार्कर की जांच कर एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया बीमारी की पहचान हो सकेगी।
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। ब्लड कैंसर की बीमारी एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) की पहचान के लिए एम्स के डॉक्टरों ने एक नए बायो मार्कर आइजीएफ2बीपी1 (इंसुलिन लाइक ग्रोथ फैक्टर 2 एमआरएनए बाइंडिंग प्रोटीन1) की पहचान की है। मरीजों के ब्लड या बोन मैरो के सैंपल में इस बायो मार्कर की जांच कर एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया बीमारी की पहचान हो सकेगी।
एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि इस बायो मार्कर से जांच आसान हो सकेगी। जांच के परिणाम 85 प्रतिशत सटीक पाए गए हैं, जो मौजूदा समय में जांच की तकनीक से बेहतर है।
बायोकेमिस्ट्री विभाग के डॉक्टर जयंत कुमार पलानीचामी ने बताया कि एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) एक प्रकार का ब्लड कैंसर है। इससे बच्चे अधिक पीड़ित होते हैं। यह बच्चों में ब्लड कैंसर का सबसे सामान्य कारण है। इसके 85 प्रतिशत मामले बी-सेल से संबंधित होते हैं। यह बीमारी किस वजह से विकसित होती है अभी तक इसका ठीक से विश्लेषण नहीं किया जा सका है।
इसके मद्देनजर एम्स में 200 मरीजों के सैंपल लेकर शोध किया गया। इस दौरान यह पाया गया कि ज्यादातर मरीजों में आइजीएफ2बीपी1 की संख्या बढ़ी हुई थी। इसके आधार डॉक्टर निष्कर्ष पर पहुंचे कि आइजीएफ2बीपी1 के एक्सप्रेशन में बदलाव बी सेल- एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया का अहम कारण है।
शोध में यह पाया गया कि कैंसर की पहचान में यह बायो मार्कर 93 प्रतिशत तक सक्षम और 85 प्रतिशत सटीक है। आइजीएफ2बीपी1 आरएनए बाइंडिंग प्रोटीन समूह का हिस्सा है, जो शरीर में विभिन्न जीन के एक्सप्रेशन को नियंत्रित करता है।
उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया की जांच के लिए नीडल डालकर बोन मैरो का सैंपल लेना पड़ता है। इस वजह से दो-ढाई वर्ष के बच्चों से पर्याप्त मात्रा में सैंपल लेना मुश्किल होता है। जबकि नए मार्कर के 0.5 माइक्रोग्राम सैंपल से जांच हो सकेगी। इसके अलावा ब्लड के सैंपल से भी जांच हो सकेगी।
उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों से एम्स में इस पर शोध चल रहा है। इस शोध के आधार पर टारगेट थेरेपी के नए विकल्प सामने आ सकते हैं। ओवेरियन कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एक दवा का चूहों पर ट्रायल किया गया है। इस दौरान एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के इलाज में भी उसका बेहतर परिणाम देखा गया। इंसानों पर अभी ट्रायल होना बाकी है।