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आंख के कैंसर के लिए वरदान है गामा नाइफ सर्जरी, देश में पहली बार AIIMS में इस तकनीक से बचाई आंखों की रोशनी

वयस्क लोगों की आंखों के कैंसर की बीमारी कोरोइडल मैलोनोमा का एम्स ने गामा नाइफ सर्जरी से इलाज शुरू किया है। संस्थान के डॉक्टर्स का दावा है कि एम्स देश का पहला संस्थान है जहां बगैर चीरा लगाए गामा नाइफ सर्जरी से आंखों के कैंसर के इलाज की सुविधा है। इस तकनीक से अस्पताल में अब तक इलाज पाने वाले 80 प्रतिशत मरीजों की आंख और रोशनी दोनों बच गई।

By Ranbijay Kumar Singh Edited By: Geetarjun Updated: Mon, 18 Mar 2024 08:13 PM (IST)
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एम्स में लगी गामा नाइफ रेडियो सर्जरी की मशीन। सौजन्य-एम्स
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। वयस्क लोगों की आंखों के कैंसर की बीमारी कोरोइडल मैलोनोमा का एम्स (AIIMS) ने गामा नाइफ सर्जरी से इलाज शुरू किया है। संस्थान के डॉक्टर्स का दावा है कि एम्स देश का पहला संस्थान है जहां बगैर चीरा लगाए गामा नाइफ सर्जरी से आंखों के कैंसर के इलाज की सुविधा है।

एम्स ने अपने अध्ययन में पाया है कि इस तकनीक से अस्पताल में अब तक इलाज पाने वाले 80 प्रतिशत मरीजों की आंख और रोशनी दोनों बच गई। एम्स ने इस अध्ययन को अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल में भी प्रकाशित किया है। इसलिए एम्स के डॉक्टर्स का कहना है कि गामा नाइफ सर्जरी से आंखों के कैंसर से पीड़ित व्यस्क मरीजों की रोशनी बचाई जा सकती है।

व्यस्क लोगों में आंखों का कैंसर दुर्लभ

एम्स में आंखों के कैंसर की विशेषज्ञ डॉ. भावना चावला ने बताया कि व्यस्क लोगों में आंखों का कैंसर बहुत दुर्लभ होता है। इसके मामले बहुत कम होते हैं। वयस्क लोगों में आंखों के कैंसर में सबसे सामान्य कोरोइडल कैंसर होता है। जबकि बच्चों की आंखों में रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर ज्यादा होता है।

हो सकता है जानलेवा, आंख भी निकालनी पड़ती है

कोरोइडल कैंसर में आंख के पीछे हिस्से में ट्यूमर होता है। इस ट्यूमर का शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैलने का खतरा रहता है। इसलिए यह जानलेवा भी होता है। सामान्य तौर पर इसकी सर्जरी कर ट्यूमर के साथ-साथ आंख भी निकालनी पड़ती है। यदि शुरुआती स्टेज में ट्यूमर छोटा हो तो प्लाक ब्रेकीथेरेपी से इलाज कर आंख की रोशनी बचाई जाती है। ट्यूमर थोड़ा बड़ा होने प्लॉक ब्रेकीथेरेपी इस्तेमाल नहीं होती।

गामा नाइफ सर्जरी से इलाज संभव

ऐसे मरीजों की गामा नाइफ सर्जरी से इलाज हो सकता है। एम्स में यह दोनों तकनीक उपलब्ध है। एम्स में हर माह आंखों के इस कैंसर से पीड़ित दो से तीन वयस्क मरीज पहुंचते हैं। एम्स में अब तक इस बीमारी से पीड़ित 18 मरीजों की गामा नाइफ से रेडियो सर्जरी की गई। जिसमें से 80 प्रतिशत मरीजों के आंखों का ट्यूमर नियंत्रित हो गया और रोशनी बच गई। सिर्फ 20 प्रतिशत मरीजों को बाद में परेशानी हुई और रोशनी नहीं बचाई जा सकी।

क्या होती है गामा नाइफ रेडियो सर्जरी

गामा नाइफ से आंखों के कैंसर के इलाज के लिए नेत्र विज्ञान विशेषज्ञ के अलावा न्यूरो सर्जरी की जरूरत पड़ती है। नेत्र विशेषज्ञ डाक्टर मरीज की आंख में लोकल एनेस्थीसिया लेकर इलाज के लिए तैयार करते हैं। इसके बाद न्यूरो सर्जन गामा नाइफ रेडियो सर्जरी करते है। एम्स के न्यूरो सर्जरी के प्रोफेसर और गामा नाइफ सर्जरी के विशेषज्ञ डॉ. दीपक अग्रवाल ने बताया कि अस्पताल में अत्याधुनिक गामा नाइफ मशीन लगाई गई है।

इसमें रेडिएशन के लिए कोबाल्ट-60 सोर्स इस्तेमाल किया जाता है। इस मशीन से रेडिएशन की 200 किरणें निकलकर एक जगह ट्यूमर पर सीधा वार करती हैं। इससे मरीज को बिना कोई चीरा लगाए रेडियो एक्टिव किरणों से ट्यूमर को नष्ट किया जाता है।

बीमारी के कारण

डॉक्टर्स के अनुसार स बीमारी का सबसे बड़ा कारण जेनेटिक खराबी होता है। पश्चिमी देशों में यह बीमारी अधिक होती है। क्योंकि गोरे लोगों में यह बीमारी होने का खतरा अधिक होता है। लेकिन यहां ऐसा ट्रेंड नहीं दिखा है। यदि आंखों तिल हो उसे भी आगे चलकर ट्यमर में बनने का खतरा रहता है।

इसके अलावा अल्ट्रा वायलेट किरणों के दुष्प्रभाव से भी यह कैंसर होने का खतरा रहता है। पश्चिमी देशों में 60-65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में यह बीमारी होती है। भारत में 40-42 वर्ष के युवा लोगों में भी यह बीमारी देखी जा रही है।

एम्स में 14 वर्ष की उम्र के एक किशोर में भी यह बीमारी देखी गई है। इस बीमारी के कोई खास शुरुआती लक्षण नहीं होते। कुछ मरीजों की आंखों की रोशनी कम हो सकती है। कई बार आंखों की नियमित जांच में भी यह बीमारी पता चल जाती है।

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