Air Pollution: बाहर से ज्यादा घर के अंदर का वायु प्रदूषण खतरनाक, इन वजहों से अधिक फैलता है घरों में पाल्यूशन
Air Pollution Effect अगर आप सोचते हैं कि स्कूल-कालेज बंद करने या वर्क फ्राम होम के जरिये प्रदूषण की मार से बचा जा सकता है तो आप एकदम गलत हैं। लगातार जहरीली होती आबोहवा आपको घर के भीतर भी बीमार बना रही है।
By sanjeev GuptaEdited By: GeetarjunUpdated: Sat, 05 Nov 2022 08:29 PM (IST)
नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। अगर आप सोचते हैं कि स्कूल-कालेज बंद करने या वर्क फ्राम होम के जरिये प्रदूषण की मार से बचा जा सकता है तो आप एकदम गलत हैं। लगातार जहरीली होती आबोहवा आपको घर के भीतर भी बीमार बना रही है। कड़वा सच तो यह है कि इनडोर प्रदूषण कहीं ज्यादा घातक है। इसके बावजूद आज तक रोकथाम के लिए कोई रूपरेखा नहीं बनी है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने केवल एक ड्राफ्ट बनाकर और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ बैठकें करके ही इस बाबत अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली है। इंडियन पाल्यूशन कंट्रोल एसोसिएशन (आइपीसीए, IPCA) के एक शोध में सामने आया है कि घर में पीएम 2.5 का स्तर सुबह छह से नौ और रात नौ से 12 बजे के बीच सबसे ज्यादा होता है।
इसकी प्रमुख वजह सड़कों पर वाहनों की भीड़ और उनका धुआं तथा दूसरी तरफ सफाई व रसोई में खाना बनाना है। सोसायटी फार इनडोर एन्वायरमेंट (एसआइई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में इनडोर प्रदूषण को लेकर करीब 108 अध्ययन हो चुके हैं।
घरों में इस वजह से भी होता है प्रदूषण 54 प्रतिशत शहरी, 17 प्रतिशत ग्रामीण, 29 प्रतिशत अध्ययन शहरी-ग्रामीण क्षेत्र में किए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में जहां इसकी सबसे बड़ी वजह प्रदूषित ईंधन है। शहरी क्षेत्र में घरों में मच्छर भगाने की अगरबत्ती जलाना, पूजा के लिए धूप-अगरबत्ती, झाड़ू मारना व खाना बनाने के तौर तरीके इनडोर प्रदूषण की वजहों में शामिल हैं।
इनडोर प्रदूषण सांस के जरिये शरीर में जाता रहता है और टीबी, कैंसर, अस्थमा सहित समय पूर्व मौतों का कारक भी बन रहा है। दुनिया के अधिकांश देशों में इसकी गाइडलाइंस भी बन चुकी हैं, लेकिन भारत में इसके लिए कुछ नहीं है।अभी तक हुआ बस यह वर्ष 2014 में सीपीसीबी ने इस दिशा में पहल करते हुए एक ड्राफ्ट बनाया। इसमें आवासीय, व्यावसायिक और संवेदनशील भवनों की पहचान करने, इनडोर प्रदूषण को लेकर भवनों का एक आडिट करने, स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाने, प्रमुख प्रदूषक तत्वों की पहचान करने, मानक तय करने तथा इससे होने वाले आर्थिक नुकसान का भी आकलन करने का सुझाव दिया।
पिछले आठ वर्षों में भी यह ड्राफ्ट न फाइनल हुआ और न ही स्वीकृत सीपीसीबी की पहल के बाद सन 2018-2019 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से इस दिशा में कुछ बैठकें की गईं। इनमें इनडोर प्रदूषण के क्षेत्र में काम कर रही एजेंसियों को भी बुलाया गया। इनडोर प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए गाइडलाइंस तैयार करने पर चर्चा की गई और सभी से सुझाव मांगे गए, लेकिन यह कवायद भी बस यहीं तक सिमटकर रह गई।
एसआइई ने फरवरी 2019 में इनडोर प्रदूषण पर 45 पृष्ठों की एक रिपोर्ट तैयार कर मंत्रालय को सौंपी। इस रिपोर्ट में इनडोर प्रदूषण की स्थिति, इसके दुष्प्रभाव और विदेश में इस निमित्त बनी गाइडलाइंस सहित भारत के लिए गाइडलाइंस जारी करने की दिशा में सुझाव भी दिए गए, लेकिन मामला वहीं अटककर रह गया।
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आइपीसीए ने शोध में पाया कि एयर प्यूरीफायर लगाने पर भी स्थिति बिगड़ रही है। एयर प्यूरीफायर प्रदूषित हवा को तो साफ करता है, लेकिन आक्सीजन घटाता है और कार्बन डाइआक्साइड बढ़ाता है। इसीलिए श्वास, अस्थमा, दमा के मरीज तथा बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गो को सर्दियों के दौरान घर में भी एलर्जी की शिकायत बनी रहती है।सीपीसीबी सदस्य डा. अनिल गुप्ता ने बताया कि जहरीली होती आबोहवा से कहीं भी बचना नामुमकिन है। यह तभी संभव है जब किसी हिस्से को पूरी तरह से सील करके उसमें रहा जाए। ऐसा हो नहीं सकता। वेंटिलेशन-आक्सीजन के लिए खिड़की दरवाजे होने जरूरी हैं। इसी से बाहर की हवा अंदर भी चली जाती है। बेहतर होगा कि अधिक से अधिक पौधे लगाएं और आबोहवा को बेहतर बनाने के प्रयास किए जाएं।-डा. राधा गोयल, उप निदेशक, आइपीसीएकोटइनडोर प्रदूषण की गाइडलाइंस समय की मांग बन चुकी हैं। इसे जल्द से जल्द फाइनल करने और लागू करने की जरूरत है। सीपीसीबी के अधिकारियों से बात कर इस लंबित मामले को आगे बढ़ाया जाएगा।
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