Delhi Air Pollution: अभी भी विश्व का सबसे प्रदूषित शहर है दिल्ली, जानिए क्यों खत्म नहीं हो रहा सांसों का संकट
Delhi Air Pollution स्विस एजेंसी आइक्यू एयर की हालिया रिपोर्ट ने दिल्ली को अभी भी विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया है। कहने को एक्यूआइ का स्तर आंकड़ों में जरूर कम हुआ है लेकिन लेकिन यह किसी भी तरह की राहत या प्रसन्नता का विषय कतई नहीं है। केंद्र और राज्य सरकार सहित एजेंसियों के भी अनेकानेक प्लान बनाने के बावजूद अब भी यह स्थिति होना खासतौर पर विचारणीय है।
By sanjeev GuptaEdited By: Abhi MalviyaUpdated: Sat, 16 Sep 2023 07:22 PM (IST)
नई दिल्ली, संजीव गुप्ता। Delhi Air Pollution: स्विस एजेंसी आइक्यू एयर की हालिया रिपोर्ट ने दिल्ली को अभी भी विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर बताया है। कहने को एक्यूआइ का स्तर आंकड़ों में जरूर कम हुआ है, लेकिन यह किसी भी तरह की राहत या प्रसन्नता का विषय कतई नहीं है।
केंद्र और राज्य सरकार सहित एजेंसियों के भी अनेकानेक प्लान बनाने के बावजूद अब भी यह स्थिति होना खासतौर पर विचारणीय है। कहने को दिल्ली सरकार ने पिछले साल 10 सूत्रीय विंटर एक्शन प्लान भी बनाया, किन्तु उसका भी असर कुछ नजर नहीं आया।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयाेग (सीएक्यूएम) के उपाय भी उपाय कम और अदालती दिशा- निर्देशों का पालन अधिक नजर आते हैं। जानकारों की मानें तो समस्या की इन सभी जड़ प्लानों का जमीनी स्तर पर क्रियान्वित नहीं होना है।
निजी वाहनों पर निर्भरता अभी भी समस्या
दिल्ली में प्रदूषण के लिए पराली का धुआं और बायोमास जलना ही नहीं, वाहनों का धुआं भी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। साल दर साल 5.81 प्रतिशत की दर से राजधानी में निजी वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह संख्या डेढ़ करोड़ के आंकड़े को छू रही है।
दिल्ली में सबसे अधिक दोपहिया वाहन और उसके बाद कारें पंजीकृत है। जहां तक डीजल वाहनों की बात है तो इनकी संख्या निजी वाहनों में अच्छी खासी है जो प्रदूषण में इजाफे के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। स्पष्ट है कि वाहनों की इस बढ़ी संख्या और इससे वायुमंडल पर हो रहे असर को कतई नहीं नकारा जा सकता।
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आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।बहु निकाय व्यवस्था भी बड़ी अड़चन
दिल्ली के संदर्भ में एक समस्या यह भी है कि यहां बहु निकाय व्यवस्था है। मतलब, कुछ विभाग दिल्ली सरकार के अधीन हैं और कुछ केंद्र सरकार के अधीन। अनेक एजेंसियां और विभाग स्वायत्त संस्थान की तरह काम करते हैं। ऐसे में इन सबके बीच सामंजस्य नहीं रह पाता।राजनीतिक मतभेद भी आड़ आ जाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि कोई भी योजना अपने मूल मकसद को पूरा नहीं कर पाती। अब चाहे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत बनाने का मामला हो या नियमों का उल्लंघन करने वाले सरकारी विभागों और एजेंसियों पर निष्पक्ष ढंग से कार्रवाई करने का... कुछ भी ढंग से नहीं हो पाता। यही हाल विंटर और समर एक्शन प्लान का है। अंतिम छोर तक तो लोगों को इस प्लान के बारे में ही नहीं पता होता। कार्रवाई करने वाली एजेंसियां भी बस लीपापोती तक सिमटकर रह जाती हैं।यह भी पढ़ें- Air Pollution: रविवार को दिल्लीवासियों ने ली 11 माह की सबसे साफ हवा में सांस, जानिए कब तक रहेगी राहत बरकरारसरकारी उदासीनता का आलम बयां करते निम्न उपाय
- -एक जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक की 19 वस्तुओं पर प्रतिबंध लग गया। लेकिन कागजों में यह भले ही प्रतिबंध लग गया, जमीनी स्तर पर इसका पालन कहीं नहीं हो पाया है। विभिन्न स्तरों पर नियमों का उल्लंघन देखा जा रहा है।
- -राउज एवेन्यू में तैयार हुई सुपर साइट इस साल जनवरी के अंत में शुरू तो हो गई, लेकिन मिल रही जानकारी पर आगे कोई कार्रवाई नहीं हो रही। रियल टाइम सोर्स अपार्शन्मेंट अध्ययन भी शुरू हो गया है। इससे पता चल रहा है कि कहां पर किस वजह से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
- -पौधारोपण और स्माग टावर, दोनों की ही रिपोर्ट आई। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के मुताबिक स्थिति संतोषजनक रही। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं था।
- -बायो डीकंपोजर के इस्तेमाल पर सवाल उठे। पंजाब में इसके प्रयोग से परहेज किया गया।
- -इलेक्ट्रिक वाहन नीति कई वर्ष पूर्व लागू होने के बावजूद इलेक्ट्रिक वाहनों को अभी भी बहुत बढ़ावा नहीं मिल रहा।
- -वन विभाग द्वारा हाई कोर्ट में जमा की गई रिपोर्ट में सामने आया कि दिल्ली में हर घंटे तीन पेड़ काटे जाते हैं।
इस साल जनवरी से जुलाई तक पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर (माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर में)
माह | पीएम 10 | पीएम 2.5 |
जनवरी | 284 | 177 |
फरवरी | 211 | 98 |
मार्च | 170 | 75 |
अप्रैल | 197 | 69 |
मई | 185 | 65 |
जून | 136 | 45 |
जुलाई | 77 | 35 |
रिपोर्ट इनपुट- संजीव गुप्ता