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दिल्ली में प्रदूषण के कारण अनेक, लेकिन लगा दिया जाता वाहनों पर 'ब्रेक'; ये हैं पॉल्यूशन के नए स्रोत

Delhi Air Pollution News विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार राष्ट्री राजधानी दिल्ली में लगातार प्रदूषण के कारक बढ़ रहे हैं। इन कारकों पर रोक लगाने के बजाए हर बार जन-जीवन को अस्त व्यस्त करने वाले निर्णय ले लिए जाते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariUpdated: Tue, 06 Dec 2022 08:31 AM (IST)
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Delhi Pollution: दिल्ली में प्रदूषण के कारण अनेक, लेकिन लगा दिया जाता वाहनों पर 'ब्रेक'
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली की वायु गुणवत्ता ''बेहद खराब'' से ''गंभीर'' श्रेणी में पहुंचते ही एक बार फिर से राजधानी में बीएस- 3 पेट्रोल और बीएस 4 डीजल वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी गई है। इस रोक ने जहां एक ओर लाखों वाहन चालकों के सामने समस्या खड़ी कर दी है वहीं वायु प्रदूषण की रोकथाम के सरकारी उपायों पर भी सवालिया निशान लगा दिया है।

सफर इंडिया की शोध रिपोर्ट चौंकाने वाली

विशेषज्ञों का भी कहना है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारक निरंतर बढ़ रहे हैं जबकि स्थायी उपाय अपनाने की जगह जब तक तात्कालिक प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं। 2010 से लेकर 2020 तक एक दशक के दौरान प्रदूषण के बढ़ते दायरे पर तैयार केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन सफर इंडिया की शोध रिपोर्ट इस संबंध में चौंकाने वाली तस्वीर सामने रखती है।

इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण के परंपरागत स्रोतों की हिस्सेदारी जहां इस समयावधि में काफी बदली है वहीं 26 नए स्रोत भी जुड़ गए हैं। ऐसे में प्रदूषण की प्रभावी रोकथाम के लिए इन कारकों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।

दिल्ली के पीएम 2.5 में परिवहन से इतर किस क्षेत्र की कितनी हिस्सेदारी (प्रतिशत में)स्रोत हिस्सेदारी1. उद्योग 22.32. ऊर्जा 3.13. आवासीय 5.74. निर्माण स्थल 18.15. अन्य स्रोत 11.7(ठोस कचरा, खुले में आग लगाना, ईंट भट्ठे इत्यादि)। इसके साथ ही प्रदूषण के परंपरागत स्रोतों में एक दशक के दौरान बदलाव आया है।

दिल्ली में प्रदूषण के नए स्रोत और उनके कारक

1. परिवहन : सड़कों पर अतिक्रमण और घंटो लंबा यातायात जाम

2. गंदी बस्ती : खाना पकाने के लिए प्रयुक्त ईंधन और उसकी मात्रा

3. ईंट भट्ठे : चलाने की प्रौद्योगिकी और प्रयुक्त ईंधन की मात्रा

4. रेहड़ी-खोमचे : प्रदूषित ईंधन, तंदूर के लिए कोयला

5. होटल (ढाबा) : ईंधन का प्रकार और खाना पकाने के लिए उपयोग की जाने वाली मात्रा

6. स्पीड ब्रेकर : स्पीड ब्रेकरों की संख्या, प्रति किमी सड़क का प्रकार

7. प्रमुख अस्पताल : बाहरी रोगियों की संख्या, वाहन लोड और डीजी सेट

8. पर्यटक स्थल : पर्यटक भार- वाहन भार

9. शापिंग माल : पार्क किए गए वाहनों की संख्या

10. यातायात जंक्शन : यातायात जंक्शनों की संख्या

11. रेलवे स्टेशन : यात्री भार, वाहनों का भार

12. हवाई अड्डा : वाहन संख्या (स्थानीय और बाहरी)

13. उद्योग : श्रेणी, प्रौद्योगिकी और प्रयुक्त ईंधन

14. स्थानीय परिवहन (ओला/उबर/टैक्सी) : प्रति दिन किमी सफर और संख्या

15. घरेलू : प्रयुक्त ईंधन का प्रकार

16. अपशिष्ट जलना : प्रति व्यक्ति मात्रा

17. बायोमेडिकल वेस्ट : उत्पन्न मात्रा

18. बिजली संयंत्र : इस्तेमाल की गई तकनीक, इस्तेमाल किया गया कोयला

19. श्वदाह गृह : स्थान, मामलों की संख्या

20. बड़े होटल : खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ईंधन

21. बड़े स्कूल/कालेज : छात्र संख्या, वाहन संख्या

22. हवा : सड़क पर उड़ती धूल, सड़क की स्थिति, वाहन भार आदि

23. डीजल जनरेटर : ईंधन का प्रयोग, कितने घंटों तक

24. मोबाइल टावर : प्रयुक्त ईंधन और संख्या

25. नियमित दूध और सब्जी वैन : वाहनों की संख्या (बाहरी)

क्या करते हैं एक्सपर्ट?

सफर इंडिया के परियोजना निदेशक डा गुरफान बेग ने बताया कि इसके अलावा ईंधन का प्रकार, वाहनों की संख्या, लोगों की भीड़, खाना बनाने के तौर तरीके... यह सब किसी भी स्थान को प्रदूषण का हाट स्पाट बनाने में सहायता करते हैं। अगर कहीं कोयला, केरोसीन, लकड़ी जलाई जाती है, वाहन की स्पीड एकदम मंदी करके तेज की जाती है, कहीं पर बहुत ज्यादा वाहनों का आवागमन होता है तो निस्संदेह इन सबसे प्रदूषण बढ़ता है। इनमें से किसी भी कारक की अनदेखी नहीं की जा सकती।

आटो एक्सपर्ट टुटू धवन ने बताया कि बीएस 3 और बीएस 4 वाहनों पर प्रतिबंध सीधे तौर पर सरकारों की नाकामी है। प्रदूषण इन वाहनों के चलने से नहीं बल्कि बार बार इनके जाम में फंसने और धीमी गति पर चलने से होता है। लेकिन वोट बैंक के लालच में सरकार न यातायात जामी समस्या सुलझा पाती है और न अतिक्रमण हटा पाती है। अगर ब्रिटिशकाल या फिर भूटान की तरह लालबत्ती ही खत्म कर दी जाए तो वाहनों से होने वाले यह प्रदूषण रह ही नहीं जाएगा। आइआइटी कानपुर की एक रिपोर्ट में आया भी है कि वाहनों का प्रदूषण केवल 9 से 10 प्रतिशत तक है, जबकि बाकी अन्य वजहों से होता है।

आइआइटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रो. एस एन त्रिपाठी ने कहा कि दिल्ली सरकार को जाम की समस्या सुलझाने के लिए सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइन सुधारने, बाटलनेक खत्म करने और सड़कों के आसपास अतिक्रमण हटाने की दिशा में भी गंभीरता से प्रयास करना चाहिए, जो अमूमन नजर नहीं आता। इसके अलावा प्रदूषण फैलाने संबंधी अन्य कारकों पर भी गंभीरता से काम करने की जरूरत है। जब तब तात्कालिक उपाय अपनाने से जनता परेशान होती है जबकि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भागती नजर आती है।

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