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Delhi: मुसीबतों से जूझ खुद गढ़ा भविष्य, दृष्टि बाधित विकास गुप्ता और जितेंद्र मिश्रा ने ऐसे हासिल की सफलता

विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में इन्हें भी नियुक्तिपत्र दिए गए। जितेंद्र मिश्रा को नियुक्ति पत्र लेने के लिए सहारा देकर जब मंच पर ले जाया तो सबसे अधिक तालियां बजीं। इस समारोह में नियुक्ति पत्र दिए गए थे या दिए जाने थे। विकास गुप्ता और जितेंद्र मिश्रा दो ऐसे दृष्टि बाधित किरदार हैं जिनकी मेहनत के सामने अन्य की मेहनत फीकी पड़ जाती है।

By Jagran NewsEdited By: Nitin YadavUpdated: Sat, 01 Jul 2023 09:50 AM (IST)
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Delhi: मुसीबतों से जूझ खुद गढ़ा भविष्य, दृष्टि बाधित विकास गुप्ता और जितेंद्र मिश्रा ने ऐसे हासिल की सफलता।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। मुसीबतें चाहें कितनी बड़ी क्यों न हो, अगर कोई कुछ करने की ठान ले तो वह इसमें सफलता जरूर पा लेता है, भले ही उसे आंखों से दिखाई भी नहीं पड़ता हाे। विकास गुप्ता और जितेंद्र मिश्रा दो ऐसे दृष्टि बाधित किरदार हैं, जिनकी मेहनत के सामने अन्य की मेहनत फीकी पड़ जाती है।

विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में इन्हें भी नियुक्तिपत्र दिए गए। जितेंद्र मिश्रा को नियुक्ति पत्र लेने के लिए सहारा देकर जब मंच पर ले जाया तो सबसे अधिक तालियां बजीं, तालियां बजाने वाले भी वहीं नवनियुक्त कर्मचारी थे, जिन्हें इस समारोह में नियुक्ति पत्र दिए गए थे या दिए जाने थे।

इन दृष्टि बाधितों के लिए मंच पर आशीन नौकरशाह भी तालियां बजाने से अपने को नहीं राेक सके। विकास गुप्ता का परिवार कभी गुलावठी में रहता था, अब कई सालों से भजनपुरा में है। नगर निगम में कनिष्ठ सचिवालय सहायक की नौकरी मिली है। यह जन्म से दृष्टि बाधित हैं।

कहते हैं कि शुरू से ही परेशानी झेली है। कुछ साल के हुए थे, समझ पाए थे कि मां क्या होती है कि इसी दाैरान बचपन में ही मां का निधन हो गया। दो छाेटी बहनें हैं। पापा ने बड़ी मुश्किल से हम सभी को पाला।

कहते हैं कि 20 साल के हुए थे पापा का भी निधन हो गया। चाचा राजेश गुप्ता ने इनकी और इनके बहनों की देख रेख की है। विकास ने कहा कि उनके चाचा ने भी उनके लिए बहुत कष्ट झेले हैं। अब सरकारी नौकरी मिल गई है तो लगता है सब कष्ट दूर हो जाएंगे। वह इस नौकरी के लिए 2015 से लगे हुए थे। डीयू से स्नातक और इग्नू से स्नातकोत्तर किया है।

वह कहते हैं कि शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को आज भी समाज में बोझ समझा जाता है, लोगों का यह नजरिया बदलना चाहिए। मेरी जिद की थी अपने पैरों पर खड़ा हाेकर दिखाऊंगा।

जितेंद्र मिश्रा को भी नगर निगम में कनिष्ठ सचिवालय सहायक की नौकरी मिली है। वह अयोध्या के हैं रोहिणी में पिता-माता के साथ रहते हैं। 2012 में शादी हो गई थी मगर ठीक पांच साल बाद 2017 में अचानक आंखों की राेशनी चली गई। अब समस्या अपनी और परिवार का खर्च उठाने की भी सामने आ गई। सरकारी नौकरी पाने की काेशिश शुरू की।

अब सफलता मिली है, सरकारी नौकरी पाकर खुश हैं। वह इसके लिए उपराज्यपाल को भी धन्यवाद देते हैं कि इतने जल्द परीक्षा हाेने के बाद परिणाम आया है और नियुक्तपत्र भी मिल गया है।

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