पुस्तक प्रेमी जरूर पढ़ें यह खबर, अगले साल से लगेगा ये बड़ा झटका
एफआइपी के मुताबिक बिना सरकारी मदद के मेले में एक स्टॉल लगाने का खर्च भी 80 से 90 हजार रुपये तक बैठता है। अगर स्टॉल बड़ा हो तो यह खर्च लाख रुपये से भी अधिक पहुंच जाता है।
नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। पाठकों का घटता पुस्तक प्रेम कहें या बाजार का तकाजा, लेकिन दिल्ली पुस्तक मेला अब सिमटने को है। 24 साल बाद मेला आयोजक भारतीय प्रकाशक संघ (एफआइपी) ने अगले वर्ष से मेला अवधि चार दिन घटाने का निर्णय लिया है। शनिवार को ही एक बैठक में इस पर औपचारिक मुहर लग जाएगी। एफआइपी के मुताबिक युवा वर्ग में घटता पुस्तक प्रेम और ई-पुस्तकों के प्रति बढ़ता आकर्षण भी पुस्तक मेले में आने वाले पाठकों की संख्या में कमी कर रहा है। इन्हीं सब कारणों को ध्यान में रखते हुए एफआइपी ने मेला अवधि घटाने का निर्णय लिया है। इस आशय का प्रस्ताव भारतीय व्यापार संवर्धन परिषद को भी भेजा जा चुका है और वहां भी सहमति बन गई है। 2019 से दिल्ली पुस्तक मेला केवल पांच दिनों का होगा।
दिल्ली-एनसीआर के पुस्तक प्रेमियों की साहित्यिक अभिरुचि को ध्यान में रख दिल्ली पुस्तक मेले का आयोजन सन 1995 में प्रगति मैदान से ही शुरू किया गया था। नौ दिवसीय यह मेला एफआइपी व आइटीपीओ के तत्वावधान में संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है। लेकिन, विश्व पुस्तक मेले की तर्ज पर इस पुस्तक मेले को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से कोई आर्थिक अनुदान नहीं मिलता, इसीलिए बदलते दौर में इस मेले का आयोजन महंगा साबित होने लगा है।
एफआइपी के मुताबिक बिना सरकारी मदद के मेले में एक स्टॉल लगाने का खर्च भी 80 से 90 हजार रुपये तक बैठता है। अगर स्टॉल बड़ा हो तो यह खर्च लाख रुपये से भी अधिक पहुंच जाता है। दूसरी तरफ शनिवार-रविवार के बाद सोमवार, मंगलवार व बुधवार को मेले में पुस्तक प्रेमियों की संख्या बहुत ही कम रह जाती है। स्टॉल संचालकों के लिए मुनाफा तो दूर, पुस्तक मेले में भागीदारी का खर्च निकालना भी मुश्किल होता जा रहा है। आज हालत यह है कि इसे पुस्तक मेला कम, जबकि स्टेशनरी फेयर ज्यादा कहा जाता है।
दिल्ली पुस्तक मेले में भी छाए हैं अटल
24वें दिल्ली पुस्तक मेले में भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी छाए हुए हैं। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रलय के अधीन प्रकाशन विभाग का स्टॉल उनको ही समर्पित किया गया है। प्रगति मैदान के हॉल नं. सात में लगे इस स्टॉल की ओर पाठक अनायास ही आकर्षित हो जाते हैं। यहां उनके भाषणों का संकलन अंग्रेजी और हिन्दी में छह खंडों में उपलब्ध हैं। इसके अलावा उनकी लिखी कुछ किताबें ‘नए विश्व की ओर’ तथा ‘विकसित अर्थव्यवस्था की ओर’ भी मिल रही हैं। स्टॉल प्रभारी दिनेश तंवर ने बताया कि अटल जी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनाओं और भाषणों को खूब पसंद किया जा रहा है। कई पाठक उनकी आत्मकथा की भी मांग कर रहे हैं।