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क्यों चर्चा में है मुख्यमंत्री का बंगला? जुड़ गया मनहूस शब्द; खूबियां ऐसी कि जीत लेंगी दिल

Delhi News दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के लिए आवंटित किया गया बंगला पिछले कई सालों से चर्चा में है। इस बंगले से मनहूस शब्द भी जुड़ गया है। ये भी बताया गया कि इस बंगले में आज तक कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। वहीं साहिब सिंह वर्मा ने मुख्यमंत्री बनने पर यह बंगला लेने से मना कर दिया था।

By Jagran News Edited By: Kapil Kumar Updated: Mon, 14 Oct 2024 03:57 PM (IST)
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दिल्ली में मुख्यमंत्री का बंगला चर्चा में है। फाइल फोटो

वी के शुक्ला, नई दिल्ली। दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री के लिए आवंटित बंगला सिविल लाइन का 6-फ्लैग स्टाफ रोड बंगला पिछले कई साल से चर्चा में है। मगर दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री के लिए आवंटित बंगला भी चर्चा में रहा है। इसे लेकर चर्चा इतनी ज्यादा हो गई कि इसे भुतहा बंगला तक कहा जाने लगा है। अब पिछले पांच साल से यह बंगला खाली है।

यह एक अजीब संयोग ही है कि इस बंगले में जो भी मुख्यमंत्री, अधिकारी या नेता रहे वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। शीला सरकार के मंत्री की यहां रहने के दौरान मृत्यु भी हो गई थी। हम सिविल लाइन के 33- शामनाथ मार्ग बंगले की बात कर रहे हैं। 6-फ्लैग स्टाफ रोड बंगला और यह बंगला दोनों ही आजादी के पहले के हैं।

6-फ्लैग स्टाफ रोड के बंगले से कुछ दूरी पर स्थित इस बंगले को पहली बार दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के ब्रहमसिंह को 1952 में आबंटित किया गया था, मगर कुछ ऐसे हालात बने कि वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा।1993 में भाजपा के मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने तो उन्हें आवंटित हुआ था।

मगर यह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। इनके बाद साहिब सिंह वर्मा ने मुख्यमंत्री बनने पर यह बंगला लेने से मना कर दिया। इसी तरह 1998 में जब कांग्रेस की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं तो उन्हें इस बंगले का लेने से मना कर दिया। मगर बाद में साल 2003 में उनकी सरकार में मंत्री दीपचंद बंधू ने सहयोगियों की सलाह को नजरअंदाज करते हुए इसे अपना निवास बनाया था।

कई साल तक बंगला खाली रहा

वे अंधविश्वासी नहीं थे और बंगले में शिफ्ट हो गए, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वो बीमार पड़ गए, उन्हें मेनिनजाइटिस हो गया। जिससे उनकी अस्पताल में मौत हो गई। फिर इसे किसी सीएम या मंत्री ने नहीं लिया। कई साल तक बंगला खाली रहा। बाद में साल 2013 में वरिष्ठ नौकरशाह शक्ति सिन्हा ने इसमें रहने का फैसला किया।

सिन्हा भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे। इसके बाद इस अफवाह ने और जोर पकड़ लिया कि ये बंगला मनहूस है। इसके बाद किसी नेता या अफसर ने इस बंगले को अपना घर नहीं बनाया। 2015 में इस नौ जून को इस बंगले को फिर से नया निवासी मिला। केजरीवाल सरकार को नीतिगत सलाह देने वाले दिल्ली संवाद आयोग के उपाध्यक्ष आशीष खेतान ने इसे अपना दफ्तर बना दिया।

बंगले के साथ मनहूस शब्द जुड़ा

उन्होंने जब बताया गया कि बंगले के साथ मनूहस शब्द जुड़ा है तो उनका जवाब था कि जब हम डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं, स्पेस में सैटेलाइट भेज रहे हैं, ऐसे समय में इस मनहूसियत को तोड़ना जरूरी है। खेतान को इस बंगले को हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि इसे लेने वाला कोई नहीं था।मगर उनके यहां आने के बाद कुछ ऐसे हालात बने कि वह भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।

वहीं, बाद में इसी आयोग के बनाए गए उपाध्यक्ष जस्मिन शाह ने इसी बंगले में कार्यालय जारी रखा। हालांकि, उन्होंने दिल्ली सचिवालय में भी अपना एक कार्यालय बनाया था। मगर यह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।

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बता दें कि यह एक खूबसूरत दो मंजिला बंगला है, घुमावदार सीढ़ियों पर लगा सफेद संगमरमर चमकता है। एक बड़ा कान्फ्रेंस रूम है। एक बड़ा बगीचा है, बगीचे में फव्वारे हैं। सारे बेडरूम दफ्तर के कमरों में बदल दिए गए हैं। इसके मेन हाल में बोलने पर आवाज गूंजती है।

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