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दिल्ली की अदालत ने पूर्व कांग्रेस विधायक जय किशन को किया आरोप मुक्त, कोविड काल से जुड़ा है मामला

दिल्ली की अदालत ने कांग्रेस के पूर्व विधायक जय किशन को आरोप मुक्त करते हुए कहा कि तस्वीरों में केवल विरोध प्रदर्शन करती एक बड़ी भीड़ दिखाई देती है लेकिन रिकॉर्ड पर ऐसा कोई स्पष्ट सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी प्रदर्शनकारियों में शामिल था। उसकी पहचान केवल भीड़ की तस्वीरों से नहीं की जा सकती।

By Sonu Suman Edited By: Sonu Suman Updated: Sat, 21 Sep 2024 03:06 PM (IST)
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दिल्ली की अदालत ने पूर्व कांग्रेस विधायक जय किशन को किया आरोप मुक्त।

एएनआई, नई दिल्ली। राउज एवेन्यू कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व कांग्रेस विधायक जय किशन को निषेधाज्ञा और महामारी रोग अधिनियम के प्रावधानों के कथित उल्लंघन के मामले में आरोप मुक्त कर दिया। यह मामला अगस्त 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान एक विरोध प्रदर्शन में उनकी भागीदारी से जुड़ा था, जहां कथित तौर पर वे सामाजिक दूरी के दिशा-निर्देशों का पालन करने में विफल रहे थे। 28 अगस्त 2020 को संसद मार्ग पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तान्या बामनियाल ने बचाव पक्ष के वकील और सरकारी वकील द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रस्तुतियों की समीक्षा करने के बाद पूर्व विधायक जय किशन के खिलाफ कार्यवाही रोक दी।

जय किशन के खिलाफ कार्यवाही बंद करने के आदेश

एसीजेएम बमनियाल ने 20 सितंबर को पारित आदेश में कहा, "उपर्युक्त चर्चा, तथ्यों की व्याख्या और अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री की व्यापक समीक्षा के बाद इस अदालत को कार्यवाही जारी रखने का कोई आधार नहीं मिला, इसलिए आरोपी जय किशन के खिलाफ कार्यवाही बंद करने का आदेश दिया जाता है। इसके बाद उन्हें आरोपमुक्त कर दिया जाएगा।"

एक तस्वीर में घटना का पूरा जिक्र नहीं: अदालत

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने एक तस्वीर पर भरोसा किया था जिसमें एक बैरिकेड पर चेतावनी नोटिस दिखाया गया था। हालांकि, यह तस्वीर न तो कथित घटना की तारीख को और न ही यह पुष्टि कर रही है कि यह उस घटना के स्थान से जुड़ी है। इसके अलावा, तस्वीर में संसद मार्ग के एसीपी द्वारा 4 अगस्त, 2020 को जारी किए गए आदेश से कोई संबंध नहीं दिखाया गया। इसके अतिरिक्त, अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी (आईओ) द्वारा सीआरपीसी की धारा 144 लागू करने के संबंध में आरोपी को व्यक्तिगत संचार का कोई सबूत नहीं दिया गया।

जांच में कई खामियां और कमियां उजागर

अदालत ने कहा, "आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध के लिए सरकारी कर्मचारी द्वारा जारी किए गए आदेश के बारे में आरोपी का ज्ञान एक आवश्यक तत्व है। आईओ स्पष्ट रूप से इसे प्रथम दृष्टया स्थापित करने के लिए कोई भी दस्तावेजी सबूत पेश करने में विफल रहा है।" अदालत ने आगे कहा कि आरोप पत्र और साथ में दिए गए दस्तावेजों ने जांच में कई खामियों और कमियों को उजागर किया, जिसने अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर कर दिया।
अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरोप पत्र 20 अगस्त, 2020 को कथित घटना में आरोपी की पहचान के मुद्दे को संबोधित करने में विफल रहा। इसने इस बात पर भी जोर दिया कि आईओ द्वारा आरोपी का कोई विवरण दर्ज नहीं किया गया था।

आरोपी प्रदर्शनकारियों में शामिल था, स्पष्ट सबूत नहीं: अदालत

कोर्ट ने कहा, "तस्वीरों में केवल विरोध प्रदर्शन करती एक बड़ी भीड़ दिखाई देती है, लेकिन रिकॉर्ड पर ऐसा कोई स्पष्ट सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी प्रदर्शनकारियों में शामिल था। उसकी पहचान केवल भीड़ की तस्वीरों से नहीं की जा सकती, खासकर तब जब कथित घटना के स्थान पर उसकी मौजूदगी की पुष्टि करने वाले किसी भी ठोस सबूत का अभाव है।"