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Heavy Rain in Delhi: बेतहाशा विकास के कारण पीछे छूटती गई जल निकासी प्रणाली, 48 साल पुरानी व्यवस्था के सहारे दिल्ली

लोक निर्माण विभाग के पूर्व प्रमुख अभियंता दिनेश कुमार का कहना है कि दिल्ली में जलजमाव की समस्या दूर करने के लिए समग्र रूप से योजना बनाकर उसके ऊपर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। दिल्ली की भूगौलिक स्थिति ऐसी है कि जलजमाव की समस्या हल करने के लिए पूरी दिल्ली के लिए एक साथ काम करना होगा। अब जरूरत के अनुसार इसमें बदलाव किया जाना चाहिए।

By Santosh Kumar Singh Edited By: Sonu Suman Updated: Fri, 28 Jun 2024 09:06 PM (IST)
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दिल्ली में जल निकासी प्रणाली का सही से नहीं हो सका विकास।
संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। राजधानी में हल्की वर्षा से ही जलभराव की समस्या शुरू हो जाती है। कुछ दो-तीन घंटे वर्षा होने पर जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है। सड़कों पर पानी भरने से यातायात व्यवस्था पूरी तरह से चरमराने लगती है। मथुरा रोड, विकास मार्ग, एनएच 24 के सर्विस लेन, महिपालपुर रोड, लाला लाजपत राय मार्ग सहित 45 से अधिक प्रमुख सड़कों पर यह समस्या होती है। इसका मुख्य कारण अनियोजित विकास, जल निकासी प्रणाली की कमी व उसके रखरखाव का अभाव और त्रुटिपूर्ण सड़कों की बनावट है।

दिल्ली में वर्षा के पानी की निकासी के लिए अलग से पाइपलाइन नहीं है। सीवर लाइन और नालों के माध्यम से यह वर्षा का पानी यमुना तक पहुंचता है। रखरखाव और नियमित सफाई के अभाव के कारण वर्षा के दिनों में 50 प्रतिशत से अधिक सीवर लाइन में ओवरफ्लो की समस्या शुरू हो जाती है। इसी तरह से नालों की भी ठीक से सफाई नहीं होती है। इस कारण इससे भी वर्षा का पानी बाहर नहीं निकल पाता है। वर्षा के कारण जलजमाव की समस्या पर वर्ष 2018 में हाईकोर्ट ने नाराजगी जताने के साथ अधिकारियों को फटकार लगाई थी, परंतु छह वर्ष बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं है।

48 वर्ष पुरानी व्यवस्था के सहारे है दिल्ली

दिल्ली को विश्व स्तरीय शहर बनाने की बात की बात तो होती है, परंतु जल निकासी व्यवस्था सुधारने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं हो रहा है। पिछले 15 वर्षों से आदेश व अध्ययन से बात आगे नहीं बढ़ सकी है। वर्ष 1911 में दिल्ली का पहला मास्टर ड्रेनेज प्लान तैयार किया गया था। वर्ष 1968 में इसकी समीक्षा हुई और वर्ष 1976 में ड्रेनेज प्रणाली तैयार की गई थी। उस समय दिल्ली की जनसंख्या थी 60 लाख। अब जनसंख्या तीन करोड़ के करीब है। बढ़ी हुई जनसंख्या, आवासीय, व्यवसायिक व औद्योगिक क्षेत्रों की जरूरत के अनुसार इसमें बदलाव नहीं किया गया।

आईआईटी ने तैयार की थी रिपोर्ट

पुरानी व्यवस्था दिल्ली की ड्रेनेज समस्या के समाधान के लिए वर्ष 2009 में तत्कालीन उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना ने सिविक एजेंसियों को ड्रेनेज सिस्टम का नया मास्टर प्लान बनाने का निर्देश दिया था। इस काम की शुरुआत करने में ही तीन वर्ष लग गए थे। वर्ष 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने आईआईटी दिल्ली को यह काम सौंपा था। लगभग चार वर्षों बाद आईआईटी ने इसकी ड्राफ्ट रिपोर्ट और वर्ष 2018 में अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी।

रिपोर्ट में बरसाती नालों में सीवेज गिरने पर रोक लगाने, सीवेज लाइन व वर्षा का पानी यमुना तक ले जाने के लिए अलग व्यवस्था करने, बरसाती नालों की देखरेख एक एजेंसी को देने की सलाह दी गई थी। वर्तमान में यह जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और दिल्ली छावनी के पास है। इनमें आपस में सामंजस्य नहीं होने से नालों के रखरखाव सफाई में परेशानी होती है।

दिल्ली सरकार ने रिपोर्ट को किया खारिज

दिल्ली सरकार ने आईआईटी की रिपोर्ट में विसंगति होने की बात कहकर उसे खारिज कर दिया। परंतु, उसके बाद अब तक ड्रेनेज मास्टर प्लान तैयार नहीं हो सका।

लोक निर्माण विभाग के पूर्व प्रमुख अभियंता दिनेश कुमार का कहना है कि दिल्ली में जलजमाव की समस्या दूर करने के लिए समग्र रूप से योजना बनाकर उसके ऊपर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। दिल्ली की भूगौलिक स्थिति ऐसी है कि जलजमाव की समस्या हल करने के लिए पूरी दिल्ली के लिए एक साथ काम करना होगा। ड्रेनेज प्रणाली बहुत पुरानी है। अब जरूरत के अनुसार इसमें बदलाव किया जाना चाहिए।

कागजों में है ड्रेनेज मास्टर प्लान-2021

जलजमाव की समस्या को दूर करने के लिए दिल्ली ड्रेनेज मास्टर प्लान-2021 बनाने की प्रक्रिया अभी फाइलों तक सिमित है। इसके लिए सलाहकार नियुक्त करने के लिए वर्ष 2021-22 में टेंडर जारी किया गया, परंतु अब तक इस दिशा में कोई ठोस काम नहीं हुआ।

50 मिमी से अधिक वर्षा होने पर परेशानी

पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों के अनुसार वर्षों पुरानी ड्रेनेज प्रणाली 24 घंटे में 50 मिलीमीटर वर्षा झेल सकती है। इससे अधिक वर्षा होने पर परेशानी शुरू हो जाती है। इस कारण बृहस्पतिवार व शुक्रवार को हुई रिकार्डतोड़ वर्षा से दिल्ली की कई सड़कें पानी में डूब गईं।

अतिक्रमण के कारण 44 बड़े नाले लुप्त हो गए

ड्रेनेज मास्टर प्लान 1976 में शहर से वर्षा का पानी यमुना में ले जाने वाले 201 बड़े नालों का उल्लेख है। दिल्ली सरकार के सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग ने वर्ष 2014-15 में राष्ट्रीय हरित न्यायधिकरण (एनजीटी) में बताया था कि 201 बड़े नालों में से 44 लुप्त हो गए हैं।

विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन नालों पर अतिक्रमण कर निर्माण कर लिया गया। कुछ नालों पर सड़क व अन्य निर्माण हो गए। दिल्ली में इस समय लगभग 12 सौ किलोमीटर लंबाई के बड़े और तीन हजार किलोमीटर लंबे छोटे नाले हैं। इनके रखरखाव की जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों के पास है। समस्या के लिए मिलकर काम करने की जगह सभी एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते हैं।

अनियमित कॉलोनियों में नहीं जल निकासी की व्यवस्था

दिल्ली का बड़े हिस्से में अनियोजित विकास हुआ है। 1777 अनधिकृत कॉलोनियां हैं। लगभग इन सभी कॉलोनियों में ड्रेनेज सिस्टम नहीं है। नालियों के माध्यम से इनका पानी सीवर लाइन में जाकर गिरता है। वहीं, चांदनी चौक, नई सड़क, सदर बाजार, दया बस्ती, शकूरबस्ती, सब्जी मंडी जैसे क्षेत्रों में लगभग एक सौ वर्ष पुरानी व्यवस्था है।

778 कॉलोनियों में सीवर लाइन नहीं

दिल्ली में 8100 किलोमीटर लंबी आंतरिक और दो सौ किलोमीटर लंबी मुख्य सीवर लाइन है। अभी भी 778 अनधिकृत कॉलोनियों और 77 गांवों में सीवर लाइन की सुविधा नहीं है।

सड़कों की बनावट पर नहीं दिया गया ध्यान

सड़कों के निर्माण के समय जल निकासी की व्यवस्था पर ध्यान नहीं दिए जाने से भी समस्या हो रही है। कई सड़कों और उसके साथ बनी नालियों के ढलान सही नहीं है। इससे पानी सड़क पर भर जाता है। इन नालियों की नियमित सफाई नहीं होने से भी परेशानी होती है।

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